नवजोत सिंह सिद्धू के दावों में कितनी हकीकत, कैंसर के डॉक्टर ने बताई एक-एक बात

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Navjot Singh Sidhu Wife Cancer Cure: नामचीन हस्ती नवजोत सिंह सिद्धू ने कैंसर को लेकर अपने बड़े दावों से मेडिकल प्रोफेशनल के साथ पंगा ले लिया है. सिद्धू ने दावा किया है उनकी पत्नी का कैंसर नीम, हल्दी, नींबू, पानी, चुकंदर जैसी खाने की चीजों से ठीक हुई है. इन दावों को देश के बड़े-बड़े डॉक्टरों ने पहले ही खारिज कर दिया है. हमने यह जानने की कोशिश की कि आखिर नीम और हल्दी में क्या-क्या गुण होते हैं और इसका कैंसर के साथ क्या लेना-देना है. इसे लेकर न्यूज 18 ने सर गंगाराम अस्पताल में देश के बड़े कैंसर विशेषज्ञ डॉ. श्याम अग्रवाल से बात की. उन्होंने इस संबंध में एक-एक बात से पर्दा उठाने की कोशिश की.

हल्दी-नीम से नहीं ठीक होता कैंसर
डॉ. श्याम अग्रवाल ने कहा कि चाहे कैंसर जैसे भी ठीक हुआ हो हम नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी को शुभकामनाएं देते हैं लेकिन सिद्धू ने क्या दावा किया है, इसके बजाय विज्ञान क्या कहता है, इस संबंध हम लोगों को बताना चाहेंगे. सबसे पहले तो विज्ञान में आज तक कोई ऐसी रिसर्च नहीं है जिसमें कहा गया हो कि नींबू-पानी या नीम-हल्दी से कैंसर ठीक हो सकता है. इसलिए हर किसी को यह बात अच्छी तरह गांठ बांध लेनी चाहिए. अगर कैंसर के लक्षण दिखते हैं तो सबसे पहले कैंसर स्पेशलिस्ट के पास जाएं. अगर कोई सिद्धू जी का बात को मान लें और नींबू-पानी या हल्दी-नीम से कैंसर को ठीक करने लगे तो यह उनके लिए बेहद हानिकारक साबित होगा.

5 साल से पहले कैंसर फ्री कंफर्म हो ही नहीं सकता
दरअसल, नवजोत सिंह सिद्धू ने बताया कि उनकी पत्नी ब्रेस्ट कैंसर के चौथे स्टेज में थीं और अब कैंसर से पूरी तरह फ्री हो गई. डॉ. श्याम अग्रवाल ने बताया कि कैंसर को डिटेक्ट करने का अब तक का पूरी दुनिया में जो सबसे एडवांस टेक्नोलॉजी है, वह है पैट सीटी स्कैन. पैट सीटी स्कैन में 5 मिलीमीटर यानी आधे सेंटीमीटर से ज्यादा में कैंसर कोशिकाएं होती है, तभी यह पकड़ में आती है. अगर इससे कम है तो कैंसर कोशिकाओं की मौजूदगी को परखा नहीं जा सकता है. ऐसे में यदि किसी मरीज का पैट सीटी स्कैन नॉर्मल है तो यह नहीं कहा जा सकता है वह कैंसर से पूरी तरह क्योर हो गया है या मुक्त हो गया है. मेडिकल टर्म में हम यह कहते हैं कि मरीज का रेमीशन हो गया है. यानी अभी तो कैंसर नहीं है लेकिन बाद में हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है. आमतौर पर अगर 5 एमएम से कम एरिया में जब कैंसर कोशिकाएं जिंदा रहती है तो इस बात का रिस्क ज्यादा है कि उसे 5 साल के बाद दोबारा से कैंसर कोशिकाएं उभर जाए. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे शरीर के एक मिलीमीटर एरिया में एक करोड़ कोशिकाएं होती हैं. ऐसे में अगर 5 एमएम से कम एरिया में कैंसर की एक कोशिकाएं भी जिंदा है तो इसे 5 साल के बाद उभरने की आशंका है. ब्रेस्ट कैंसर के मामले में तो 10 साल के बाद भी कैंसर वापस आ जाती है.

कब कैंसर हो जाता है क्योर
आज तक कोई तरीका नहीं है जिसमें यह कहा जाए कि जिसमें 5 साल से पहले यह कहा जाए कि अब यह कैंसर फ्री हो गया. इसलिए जब पैट सीटी स्कैन नॉर्मल होता है तो इसे क्योर नहीं कहा जाता है, यह रेमीशन होता है. अगर पांच साल बाद भी पैट सीटी स्कैन नॉर्मल आया तब बोलते हैं अब इसका कैंसर क्योर हो गया. यानी अब कैंसर नहीं होगा.

कैसे होती है रिसर्च
जहां तक रिसर्च की बात है तो कुछ लैब रिसर्च हुए हैं जिनमें नीम या हल्दी में एंटी-कैंसर गुण पाए गए हैं. लेकिन अब तक इंसानों पर इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है.किसी भी रिसर्च में लंबे समय की दरकार होती है. उसके लिए अभी हमें बहुत समय देना होगा. डॉ. श्याम अग्रवाल ने बताया कि रिसर्च के कई कंपोनेंट्स होते हैं. सबसे पहले लैब में रिसर्च की जाती है. मान लीजिए यह कहा जाता है कि हल्दी में एंटी-कैंसर गुण है तो लैब में हल्दी से मुख्य तत्व को निकालकर कैंसर कोशिकाओं पर इसका परीक्षण किया जाता है. इसे टेस्ट ट्यूब परीक्षण कहते हैं. अगर इसमें कामयाबी मिल गई तो फिर चूहे आदि जीवों पर इसका परीक्षण किया जाता है. इसमें डोज को पहचाना जाता है कि कितने डोज देने से कैंसर कोशिकाएं मर जाएंगी. इसके बाद यह भी देखा जाता है कि यह दवा सुरक्षित है या नहीं. अगर चूहे पर भी असर बढ़िया होता है तो फिर इंसानों पर इसका लंबा प्रयोग किया जाता है. यह मुख्यतया तीन चरणों में संपन्न होता है. इंसानों पर पहले स्टेज में हम यह देखते हैं कि इस दवा का कोई साइड इफेक्ट तो नहीं. यह दवा सुरक्षित है कि नहीं. अगर है तो कितना डोज दिया जाना चाहिए. अगर पहला स्टेज सफल हो जाता है तो हम दूसरे स्टेज में जाते हैं. दूसरे स्टेज में हम यह देखते हैं कि हमारे पास पहले से इस बीमारी की जो दवा है वह इससे बेहतर है या नहीं. अगर है तो हम फाइनल स्टेज में जाते हैं. फाइनल स्टेज में सरकार या दवा नियामक संस्था अंतिम रूप से इस दवा को मंजूरी देती है.

नीम-हल्दी नहीं डॉक्टर के पास जाएं
डॉ. श्याम अग्रवाल ने बताया कि मुश्किल यह है कि वैक्लपिक चिकित्सा पद्धिति इसी लैब रिसर्च को पढ़कर दावा करने लगते हैं कि हल्दी या नीम से कैंसर को हराया जा सकता है. जबकि होना यह चाहिए कि उन्हें पूरी रिसर्च का इंतजार करना चाहिए और उसके बाद इसे अपनाना चाहिए. इसलिए यह कह देना कि हल्दी और नीम से कैंसर खत्म हो जाता है पूरी तरह से गलत है. न सिर्फ गलत है बल्कि हानिकारक भी है. ऐसे में अगर कैंसर के लक्षण दिखते हैं तो तुरंत उन्हें डॉक्टर के पास जाना चाहिए. अगर शुरुआती दौर में कैंसर है तो इसका पूरा इलाज किया जा सकता है.

Tags: Health, Health tips, Navjot singh sidhu

FIRST PUBLISHED :

November 25, 2024, 12:04 IST

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