'नीतीश मॉडल'...ना बाबा! महाराष्ट्र में 'बिहार फॉर्मूले' से BJP का इनकार क्यों?

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हाइलाइट्स

महाराष्ट्र महायुति में मुख्यमंत्री पद को लेकर फंसा है पेंच! क्या देवेंद्र फडणवीस इस बार बन पाएंगे महाराष्ट्र के सीएम? क्या एकनाथ शिंदे के नाम पर ही फिर बन जाएगी सहमति? क्या एनसीपी अजीत पवार फड़णवीस के लिए करेगी खेल?

पटना. महाराष्ट्र में महायुति को स्पष्ट जनादेश मिला है और इसमें भारतीय जनता पार्टी 132 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. वहीं, शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी की बड़ी भागीदारी है, जिनको क्रमशः 57 और 41 सीटें मिलीं हैं. महाराष्ट्र में 288 सदस्यों की विधानसभा है जिसमें सरकार बनाने का आंकड़ा 144 है. स्पष्ट है कि सरकार तो महायुति की बनने जा रही है, लेकिन सीएम कौन होगा यह सवाल अभी भी महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में गूंज रहा है. महायुति अभी तक किसी नाम पर एकमत नहीं हो पाया है और ना ही इसको लेकर कोई किसी दल की ओर से खुलकर कुछ कहा गया है. हालांकि, सभी पार्टियों की ओर से अपनी ओर से दावेदारी जरूर जताई जा रहा है. इस दावेदारी के साथ ही चर्चा बिहार में एनडीए सरकार के ‘नीतीश मॉडल’ की होने लगी है.

दरअसल, शिवसेना शिंदे गुट के नरेश महास्क ने सोमवार को कहा कि एकनाथ शिंदे को ही महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बने रहना चाहिए, क्योंकि उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का हवाला देते हुए बिहार की एनडीए सरकार के मॉडल का उदाहरण देते हुए कहा कि हमें लगता है कि शिंदे को मुख्यमंत्री बनना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे बिहार में भाजपा ने संख्या बल को नहीं देखा फिर भी जदयू नेता नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे को लेकर महायुति के वरिष्ठ नेता आखिरकार फैसला लेंगे. शिवसेना शिंदे गुट के प्रवक्ता ने कहा कि हरियाणा में भाजपा ने नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ा, ठीक वैसे ही महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फड़णवीस और अजीत पवार के नेतृत्व में लड़ा गया, ऐसे में गठबंधन के नेतृत्व का सम्मान किया जाना चाहिए.

महाराष्ट्र में बिहार मॉडल नहीं चलेगा
शिवसेना शिंदे गुट के दावे से अगल भाजपा के प्रवक्ता प्रवीण दारकेकर ने साफ तौर पर कहा कि सीएम पद के लिए देवेंद्र फडणवीस ही बेहतर हैं और वह महाराष्ट्र का नेतृत्व करने में सबसे सक्षम नेता हैं. वहीं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने साफ तौर पर कहा कि बिहार मॉडल और महाराष्ट्र में मॉडल में बिल्कुल ही फर्क है, क्योंकि बिहार में हमने नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था और महाराष्ट्र में हमने सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा ना कि किसी एक चेहरे पर. इसलिए, देवेंद्र फडणवीस सबसे बड़े दल के नेता हैं और उन्होंने कैंपेन भी सबसे जोरदार किया था. उनके ही नेतृत्व में इतनी बड़ी जीत मिल पाई है, इसलिए उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री होना चाहिए, यहां नीतीश कुमार वाली स्थिति नहीं है और महाराष्ट्र में बिहार मॉडल नहीं चलेगा.

क्या है बिहार मॉडल जिसकी है चर्चा
अब जब महाराष्ट्र की सियासत में बिहार मॉडल और नीतीश मॉडल की चर्चा हो रही है तो हमें यह जान लेना भी जरूरी है कि आखिर यह नीतीश मॉडल है क्या? दरअसल, बिहार में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने नीतीश कुमार के नेतृत्व पर भरोसा जताया है और उन्हें सीएम बनाया है. बीजेपी उनका समर्थन अभी कर रही है और आगामी विधानसभा चुनाव जो 2025 में लड़ा जाएगा, उसके लिए भी मोटे तौर पर यह तय हो चुका है कि नीतीश कुमार ही फेस होंगे और उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा. बता दें कि वर्तमान में 243 सदस्य वाली बिहार विधानसभा में एनडीए के पास 127 विधायक हैं, जिनमें भाजपा की संघ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है और उसके विधायकों की संख्या 80 है. वहीं, नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड के 45 विधायक हैं, यानी गठबंधन में वह दूसरे नंबर पर है. लेकिन, यहां गौर करने वाली बात है कि नीतीश कुमार की पार्टी दूसरे नंबर पर है लेकिन मुख्यमंत्री वह हैं. अब इसी मॉडल की चर्चा महाराष्ट्र की राजनीति में भी हो रही है.

बिहार से महाराष्ट्र की स्थिति अलग
दरअसल, एकनाथ शिंदे गुट की ओर से कहा जा रहा है कि चूंकि एकनाथ शिंदे पहले से सीएम हैं और जब चुनाव लड़ा गया तब भी वह सीएम थे. ऐसे में निश्चित तौर पर वह गठबंधन का चेहरा भी हुए और एकनाथ शिंदे का गुटका दवा है कि इस कारण अगला सीएम भी उन्हीं को होना चाहिए. हालांकि, राजनीति के जानकार इस दावे से थोड़ा अलग राय रखते हैं. महाराष्ट्र और बिहार की राजनीति में थोड़ा फर्क है कि एनडीए ने हमेशा ही बिहार में नीतीश कुमार को ही चेहरा बनाया है और उनके नेतृत्व में बीते दो दशक से कई चुनाव लड़े गए हैं. जब एनडीए साथ नहीं था तो तब भी दूसरे गठबंधन में भी नीतीश कुमार ही चेहरा थे. वह बिहार की सियासत के बैलेंसिंग फैक्टर हैं क्योंकि बीते दो दशक में यही देखा गया है कि जिधर नीतीश कुमार चले जाते हैं,सत्ता भी उधर ही चली जाती है. इसलिए, नीतीश कुमार के कद से तुलना करते हुए बिहार मॉडल और एकनाथ शिंदे की सियासी कद के आधार पर बिहार और महाराष्ट्र की सियासी स्थिति में काफी अंतर है.

महाराष्ट्र में बीजेपी का हाथ ऊपर
बिहार मॉडल से महाराष्ट्र की स्थिति इसलिए भी अलग है कि इसी गठबंधन की तीसरी बड़ी पार्टी अजीत पवार की एनसीपी ने बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस के नाम का समर्थन किया है. एनसीपी अजीत गुट ने यह भी कहा है कि अगर एकनाथ शिंदे गुटका दावा करता है तो फिर स्ट्राइक रेट के लिहाज से अजीत गुट भी सीएम पद की दावेदारी ठोक देगा. जाहिर तौर पर यहां की स्थिति में ट्विस्ट है, ऐसे में यहां बिहार मॉडल की बात सूटेबल नहीं है. बड़ी बात यह है कि भाजपा की यह मजबूरी भी है कि वह अपने दम पर महाराष्ट्र में सरकार में आना चाहती है, क्योंकि उसके विधायकों की संख्या 132 है और अगर महज और 12 विधायक उनके साथ आ जाएं तो सरकार बन जाएगी. राजनीतिक स्थिति ऐसी है कि भारतीय जनता पार्टी अगर हाथ खड़े कर दे तो किसी भी पक्ष से, चाहे वह इंडिया गठबंधन का ही कोई दल क्यों ना हो, वह बीजेपी के साथ आने के लिए तैयार हो सकता है. ऐसे ही ऐसी स्थिति में बीजेपी का अपर हैंड (यहां बड़े भाई की भूमिका में) है, और उसकी सियासी स्थिति बेहतर है.

नीतीश जैसी डिपेंडेंसी नहीं चाहती बीजेपी
बीजेपी की रणनीति दूसरी भी है कि बिहार मॉडल वह महाराष्ट्र में नहीं दोहराना चाहती है. दरअसल, बिहार में अधिकतर समय जेडीयू ही बड़े भाई की भूमिका में रही है और बीजेपी छोटे भाई की. यह पहला मौका है कि नीतीश कुमार की पार्टी की बीजेपी से कम सीटें हैं. भले ही संख्या बल में जेडीयू छोटी है, लेकिन यह भी हकीकत है कि भारतीय जनता पार्टी की निर्भरता नीतीश कुमार के चेह पर रही है इससे इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. वहीं, महाराष्ट्र की स्थिति इतर है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी सत्ता के लिए एकनाथ शिंदे गुट के साथ जरूर हैं, लेकिन उसकी निर्भरता कभी भी शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट पर नहीं रही. हां, सत्ता परिवर्तन की राह शिंदे गुट को साथ लेने से जरूर बनती थी जिसका प्रयोग किया गया. वहीं, अब बीजेपी मानती है कि महाराष्ट्र में अगर बिहार मॉडल दोहराएगी तो फिर एकनाथ शिंदे या कोई अन्य नेताओं पर पार्टी की निर्भरता बढ़ जाएगी और बीजेपी के लिए आने वाली राजनीति आसान नहीं रहेगी, क्योंकि इससे उसके कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर पड़ेगा.

FIRST PUBLISHED :

November 26, 2024, 11:12 IST

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