Last Updated:February 05, 2025, 17:24 IST
महिला ने 1999 में पहली शादी की थी. फिर वर्ष 2000 में अफेयर से उसे एक लड़का पैदा हुआ. इसके बाद 2005 में पहले पति से वह अलग हो गई और दो दिन बाद ही पड़ोस के शख्स से शादी कर ली. फिर 2012 में उससे भी रिश्ता तोड़ते ह...और पढ़ें
हाइलाइट्स
- सुप्रीम कोर्ट ने दूसरी शादी के बाद भी महिला को भत्ता देने का आदेश दिया.
- महिला को ₹5,000 मासिक भत्ता मिलेगा, हाईकोर्ट ने पहले इसे रद्द कर दिया था.
- यह फैसला समाज में बेसहारा महिलाओं को न्याय दिलाने की दिशा में एक कदम है.
महिला अपनी पहली शादी कानूनी तौर पर मान्य रहने के बावजूद अपने दूसरे पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है. सुप्रीम कोर्ट ने आज यह फैसला सुनाते हुए कहा कि वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत इस भरण-पोषण से इनकार नहीं कर सकता, भले ही उसकी पहली शादी कथित तौर पर कानूनी अर्थों में चल रही हो. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा, ‘यह ध्यान में रखना चाहिए कि धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण का अधिकार पत्नी को प्राप्त लाभ नहीं, बल्कि पति की तरफ से निभाया जाने वाला कानूनी और नैतिक कर्तव्य है.’
इससे पहले हाईकोर्ट ने इस मामले में 13 अप्रैल 2017 को महिला को मिलने वाले 5000 रुपये के मासिक भत्ते को रद्द कर दिया था. कोर्ट ने तब कहा था कि महिला को उस शख्स की कानूनी तौर पर पत्नी नहीं माना जा सकता, क्योंकि उसकी पहली शादी कानूनी रूप से भंग नहीं हुई थी. महिला ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जहां से उसे बड़ी राहत मिली है.
क्या है पूरा मामला
यह मामला हैदराबाद की एक महिला का है, जिसने 30 अगस्त, 1999 को पहली शादी की थी. इस बीच 15 अगस्त, 2000 को विवाहेतर संबंध से उसे एक लड़का पैदा हुआ. फरवरी, 2005 में दंपति के अमेरिका से लौटने के बाद उनके बीच विवाद पैदा हो गया. आखिरकार, 25 नवंबर, 2005 को दंपति के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया, जिससे उनकी शादी टूट गई.
इस बीच, महिला की अपने पड़ोसी से जान-पहचान हुई, जो प्रेम संबंध में बदल चुकी थी. फिर पहले पति से अलग होने के 2 दिन बाद ही यानी 27 नवंबर, 2005 को दोनों ने शादी कर ली. रजिस्ट्रार ऑफ मैरिज ने इस दूसरी को प्रमाणित भी किया. दोनों की एक बेटी भी हुई, लेकिन बाद में संबंध बिगड़ने पर महिला उससे भी अलग हो गई और 2012 में उससे गुजारा भत्ते के लिए आवेदन कर दिया.
कोर्ट ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने रेखांकित किया कि प्रतिवादी को महिला के पहले विवाह के बारे में पूरी जानकारी थी. फिर भी उसने उससे दूसरी शादी की और बाद में दायित्वों से बचना चाहा. महिला ने पहले पति के साथ MoU दिखाया, जिससे साबित हुआ कि दोनों का रिश्ता वास्तव में खत्म हो चुका था। हालांकि यह कानूनी तलाक नहीं था, लेकिन कोर्ट ने इसे “डी फैक्टो अलगाव” माना.
कोर्ट ने साफ किया कि महिला पहले पति से भत्ता नहीं ले रही, इसलिए दूसरे पति को भत्ता देने में कोई विरोधाभास नहीं. पीठ ने बादशाह बनाम उर्मिला बादशाह गोडसे (2014) और द्वारिका प्रसाद सतपथी बनाम बिद्युत प्रभा दीक्षित (1999) जैसे मामलों का उल्लेख किया, जहां दूसरी पत्नी को भत्ता दिया गया था. कोर्ट ने कहा कि भत्ते के मामले में विवाह का सबूत आईपीसी की धारा 494 (द्विविवाह) जितना सख्त नहीं होता.
सुप्रीम कोर्ट ने महिला को ₹5,000 मासिक भत्ता बहाल करते हुए कहा कि ‘प्रतिवादी ने शादी के फायदे उठाए, लेकिन जिम्मेदारियों से भाग रहा है. यह फैसला समाज में बेसहारा महिलाओं को न्याय दिलाने की दिशा में एक कदम है.’ हालांकि, बेटी को भत्ता पहले से ही मिल रहा था, जिसे बरकरार रखा गया. यह फैसला उन महिलाओं के लिए एक राहत भरा संदेश है, जो तकनीकी कानूनी पेचों के कारण न्याय से वंचित रह जाती हैं.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
February 05, 2025, 17:24 IST