प्रसन्नजीत की बहन संघमित्रा
बालाघाट. मेरा भाई प्रसन्नजीत 7 साल पहले घर से लापता हुआ था. हमने उसे काफी ढूंढा लेकिन कहीं न मिला. हमने उसके मिलने की आस छोड़ दी थी. लेकिन साल 2021 के आखिर में हमें एक फोन आया. इस फोन के आने से जितनी खुशी हुई, उतना ही बड़ा झटका लगा. पता चला भाई तो जिंदा है लेकिन पाकिस्तान की जेल में बंद है. ऐसा बताते-बताते प्रसन्नजीत की बहन संघमित्रा की आंखों से मोटे-मोटे आंसू आ गए…
दरअसल, संघमित्रा खोब्रागड़े लगभग तीन साल से अपने भाई को पाकिस्तान से वापस लाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रही है. प्रसन्नजीत रंगारी की बहन संघमित्रा बताती है कि वह मानसिक रूप से बीमार रहता था. ऐसे में वह बार-बार घर से भाग जाता था. ऐसे ही एक बार वह लगभग सात साल पहले घर से निकल गया था. ऐसे में वह घर से निकला फिर कभी नहीं मिला. घर वालों ने उन्हें काफी ढूंढा लेकिन नहीं मिला. इसके बाद उनके घर वालों ने उन्हें मरा हुआ मान लिया और उसकी खोज बंद कर दी.
संघमित्रा ने बताया कि फिर 3 साल बाद उन्हें फोन आया और पता चला कि भाई पाकिस्तान की जेल में बंद है. तब से लेकर अब तक भाई को भारत वापस लाने के लिए दफ्तरों के चक्कर लगा रही हूं. मां मानसिक रूप से बीमार रहती हैं. मां को लगता है बेटा जबलपुर कॉलेज में ही है. बाबूजी ने बेटे का इंतजार करते-करते दम तोड़ दिया.
साल 2021 कठुआ से फोन आया और सब कुछ बदल गया
संघमित्रा ने बताती हैं कि साल 2021 में जम्मू कश्मीर के कठुआ के रहने वाले कुलदीप सिंह कछवाहा का फोन आया. इसके बाद भाई के जिंदा होने की खुशी और पाकिस्तान की जेल में बंद का सदमा भी लगा. आपको बताते चलें कि जम्मू कश्मीर के कुलदीप सिंह कछवाहा पाकिस्तान के लाहौर की सेंट्रल लखपत जेल में 29 साल तक बंद रहे. वहां उनकी मुलाकात प्रसन्नजीत रंगारी से हुई थी. शुरू में वह मानसिक रूप से बीमार था. जैसे-जैसे हालत में सुधार हुआ उन्होंने अपने बारे में कुलदीप सिंह को बताया.
लाहौर की जेल में बंद है प्रसन्नजीत
संघमित्रा खोब्रागड़े ने बताया कि भाई साल 2019 से पाकिस्तान की कोट लखपत नगर लाहौर सेंट्रल जेल में बंद है. उस पर किसी प्रकार का आरोप और सजा तय नहीं हुई है. गृह मंत्रालय ने हाल ही में परिजनों से प्रसन्नजीत के पाकिस्तानी जेल में बंद होने की पुष्टि करवाई है. आपको बता दें कि प्रसन्नजीत रंगारी ने जबलपुर के खालसा इंस्टीट्यूट से बैचलर ऑफ फार्मेसी की पढ़ाई की है.
संघमित्रा सरकारी दफ्तरों के लगा रहीं चक्कर
संघमित्रा खोब्रागड़े ने बताया कि वह अपने भाई को भारत लाने के लिए कलेक्टोरेट से लेकर भोपाल के कई दफ्तरों के चक्कर लगा चुकी हैं. वहीं, संघमित्रा मजदूरी का काम करती हैं. ऐसे में उनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है. वह अपना और परिवार का गुजारा ही बमुश्किल कर पाती है. ऐसे में सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने के कारण आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
बेटे का इंतजार करते-करते पिता की मौत
प्रसन्नजीत के पिता लोपचंद रंगारी लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे. वह लगभग तीन साल से अपने बेटे का इंतजार करते रहे. लेकिन बीमारी के चलते अप्रैल 2024 में उनकी मौत हो गई . वहीं, उनकी मां को लगता है उनका बेटा अब भी जबलपुर में है. वह मानसिक रूप से बीमार है और पड़ोसियों से खाना लेकर अपना गुजारा कर रही है.
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FIRST PUBLISHED :
November 27, 2024, 09:43 IST