अवार्ड लेती प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता
Sagar News: डॉ. नीलिमा गुप्ता, सागर सेंट्रल यूनिवर्सिटी की कुलपति और जल विशेषज्ञ हैं. उन्होंने नदियों के प्रदूषण पर शोध ...अधिक पढ़ें
- News18 Madhya Pradesh
- Last Updated : November 25, 2024, 14:24 IST
सागर. नदियों में बढ़ता हुआ प्रदूषण न केवल इंसान और पर्यावरण के लिए घातक साबित हो रहा है बल्कि यह अंदर पाई जाने वाली मछलियों पर भी बुरा प्रभाव छोड़ रहा है. यूरोप की एक रिसर्च में पाया गया कि वहां की नदियों में जो मछलियां हैं, वह लगातार दुबली होती जा रही हैं. इसी को लेकर एक प्रोग्राम किया गया. जिसमें 40 साल से जलीय जीवविज्ञान पर काम कर रही भारत की प्रोफेसर डॉक्टर नीलिमा गुप्ता को भी इनवाइट किया गया था.
इस पर उन्होंने अपने शोध के आधार पर बताया कि नदियों में प्रदूषण होने की वजह से परजीवियों की संख्या बढ़ जाती है और मछलियों की हेल्थ पर भी इसका काफी गहरा असर होता है. अगर नदियों में प्रदूषण को काम किया जाए तो वापस रिकवरी की जा सकती है. इसी तरह किए गए नदियों के काम के लिए हाल ही में उन्हें श्रीलंका में थर्ड नदी कांग्रेस में प्रो. एस. आर. बसु अंतर्राष्ट्रीय लाइफटाइम अवार्ड से सम्मानित किया गया है.
सागर सेंट्रल यूनिवर्सिटी की कुलपति हैं नीलिमा गुप्ता
प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता वर्तमान में मध्य प्रदेश के डॉक्टर हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी की कुलपति हैं. वह एक विश्व विख्यात वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने चार दशक से अधिक समय तक गंगा नदी के प्रदूषण पर शोध करके प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड, डब्लूडब्लूएफ, एनजीटी को अपने बहुमूल्य शोध परिणामों को उपलब्ध करवाया और भारत सरकार यूजीसी, आईएनएसए, डीएसटी, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तथा राज्य सरकार (उत्तर प्रदेश सरकार, उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद) द्वारा स्वीकृत कई परियोजनाएं सफलतापूर्वक संचालित किया.
रामगंगा नदी के पॉल्यूशन लोड पर काम किया
नदियों पर किए गए रिसर्च को लेकर नीलिमा गुप्ता बताती हैं- “छोटी-छोटी रिसर्च से मैंने काम शुरू किया, मैं तो सोचती थी की रामगंगा (गंगा की उप नदी) के लोकल पॉइंट पर काम करूं, लेकिन जब प्रेजेंटेशन दिया तो फिर कहा गया कि आपने इतना अच्छा काम किया है फिर पूरी रामगंगा पर काम कीजिए. यह मेरे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था. यह 600 किलोमीटर की रेंज थी. उस चैलेंज को मैंने लिया. उसमें 6 साइट अलग-अलग लेकर डिफरेंट लेवल पर कालागढ़ से लेकर कन्नौज तक जहां वह गंगा से मिलती है. पूरे पॉल्यूशन लोड पर हमने काम किया. बहुत बाद में इसकी इतनी वैल्यू हो गई कि प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड, डब्लूडब्लूएफ, एनजीटी ने उस डाटा को लिया.
इसको काफी आगे तक हम लोग लेकर गए, उसके बाद हमने मछलियों के हेल्थ पर काम किया क्योंकि मैं एनिमल साइंस की छात्रा रही हूं. मछली पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? पोल्यूटेड वॉटर का उसमें हमें बहुत इंटरेस्टिंग चीजें मिली, जिसमें पाया कि उसमें पॉल्यूशन की वजह से परजीवी बढ़ रहे थे. “
मछली बहुत बड़ी इकोनामिक सोर्स है
आगे उन्होंने कहा- “हम सभी जानते हैं कि आज मछली एक इकोनामिक सोर्स है. उसमें विटामिन ए, विटामिन डी, फिस ऑयल और कोडलिवर ऑयल है. यह सभी बहुत ही बहुमूल्य हैं. पूरा विश्व इनका यूज करता है लेकिन प्रदूषण के कारण मछलियों की कीमत बहुत कम हो जाती है. हमने शोध के आधार पर पाया कि पाल्यूशन से उनकी क्वालिटी भी खराब हो जाती है. जैसे कि वह बीमार हो जाती हैं. ग्रस्त हो जाती हैं. उनकी गिल्स खराब हो जाती हैं. उनकी स्किन खराब हो जाती है. इससे इनकी इकोनामिक वैल्यू भी कम हो जाती है. अवार्डों की बात करें तो अलग-अलग तरह के और भी अवार्ड मुझे दिए गए लेकिन जो अंतरराष्ट्रीय अवार्ड मुझे श्रीलंका में मिला उसके लिए मैं बहुत आभारी हूं.”
Edited By- Anand Pandey
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FIRST PUBLISHED :
November 25, 2024, 14:24 IST