प्रतीकात्मक तस्वीर
पश्चिम चम्पारण. बिहार के किसान अब ऐसी फसलों एवं फलों की बागवानी करने लगे हैं, जिसे अबतक देश के कुछ बड़े राज्यों या फिर विदेशों में ही उपजाया जाता रहा है. एवोकाडो तथा बारहमासी आम के बाद सूबे के सबसे बड़े ज़िले पश्चिम चम्पारण के किसान अब रोज एप्पल की भी सफल खेती करने लगे हैं. जानकार बताते हैं कि रोज एप्पल की बागवानी मुख्य रूप से साउथ ईस्ट एशिया के देशों की जाती है. भारत में इसे उड़ीसा, महाराष्ट्र, केरल तथा कोलकाता जैसे राज्यों में भी उपजाया जाता रहा है लेकिन अब बिहार के कुछ ज़िलों में भी इसकी बागवानी सफल तरीके से की जाने लगी है.
बिहार में ही रही रोज एप्पल की बागवानी
ज़िले के मझौलिया प्रखंड स्थित, बनकट मुसहरी गांव के रहने वाले रविकांत पांडे ने सफेद जामुन की बागवानी सफलता पूर्वक की है. उन्होंने लोकल 18 की टीम से इस फल की बागवानी तथा इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुणों के बारे पूरी जानकारी साझा की है. रविकांत बताते हैं कि सफेद जामुन के बारे में लोगों को बेहद कम जानकारी है. यह एक कीमती फल है, जिसकी आकृति घंटीनुमा और तैयार होने के बाद रंग गुलाबी तथा सफेद होता है.
दूसरे वर्ष से ही होने लगता है फलन
रविकांत बताते हैं कि भारत में रोज एप्पल मुख्य रूप से देश के दक्षिणी और उत्तरपूर्वी हिस्सों में पाए जाते हैं. इसके पेड़ ज्यादातर कर्नाटक, तमिलनाडु, असम और केरल में नजर आते हैं. इसकी बागवानी के लिए 15 से 38 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान उत्तम है. धूप वाली जगहों पर पर्याप्त दूरी देकर पेड़ लगाने से अच्छी उपज होती है. जानकार बताते हैं कि रोज एप्पल का पौधा लगाने के दूसरे वर्ष से ही पेड़ों पर फलन शुरू हो जाता है. 3-4 साल बाद पेड़ के बड़े होने पर, हर साल एक पेड़ से क़रीब 150 से 250 किलोग्राम फलों का फलन होने लगता है.
बागवानी से कर सकते हैं फायदेमंद व्यवसाय
कृषि वैज्ञानिकों की माने तो, रोज एप्पल के पेड़ पर मार्च–अप्रैल में फूल आते हैं. जून में फलों की तुड़ाई का सिलसिला शुरू हो जाता है. मॉनसून आने से पहले तक इन फलों को पेड़ों से तोड़ लिया जाता है. सफेद जामुन का बाजार मूल्य प्रति किलो 150 रुपये से अधिक होता है, जिससे एक पेड़ से 20 से 30 हजार रुपये तक की आमदनी हो सकती है. इस प्रकार, उचित देखभाल और तकनीक से सफेद जामुन की बागवानी एक लाभदायक व्यवसाय साबित हो सकती है.
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FIRST PUBLISHED :
November 25, 2024, 10:17 IST