अहमदाबाद: साल 1411 में सुल्तान अहमद शाह ने साबरमती नदी के किनारे अहमदाबाद शहर की स्थापना की. यह शहर आज अपने प्राचीन स्मारकों और वास्तुकला के लिए विश्व प्रसिद्ध है. इन्हीं धरोहरों में से एक है जमालपुर इलाके के गीता माता मंदिर के सामने ‘मोचिनी वाड़ी’ में स्थित हिंदू हरदास की समाधि. सवाल यह है कि एक हिंदू होने के बावजूद हरदास की समाधि क्यों बनी?
हरदास और अहमदाबाद का एक अनोखा इतिहास
बता दें कि यह समाधि अहमदाबाद के इतिहास का एक अनोखा पक्ष दिखाती है. हरदास, एक हिंदू भक्त ने अपनी कुलदेवी के मंदिर को बचाने के लिए धर्म परिवर्तन किया. मोचिनी वाड़ी, जिसे ‘अहमदाबाद सिटी लहंदार मोची जाती संस्था हरदास चित्रानी वाड़ी’ भी कहते हैं, गीता मंदिर बस स्टैंड के पास स्थित है.
मोची जाति का अद्भुत चित्रकार
लोकल 18 से बात करते हुए इतिहासकार डॉ. माणेकलाल पटेल बताते हैं कि हरदास चित्रारा, जो मोची जाति से थे, 1411 में पाटन से अहमदाबाद आए. पेशे से मोची होने के साथ-साथ हरदास एक कुशल चित्रकार भी थे और बहुचार माता में उनकी गहरी आस्था थी. उनकी कला के बारे में सुनकर सुल्तान ने हरदास को अपनी बेगम का चित्र बनाने के लिए बुलाया.
बहुचार माता मंदिर का निर्माण
हरदास ने सुल्तान की बेगम का ऐसा अद्भुत चित्र बनाया कि सुल्तान बेहद प्रसन्न हुए और हरदास को इनाम मांगने को कहा. हरदास ने बहुचार माता का मंदिर बनाने और रहने के लिए जमीन देने का आग्रह किया. सुल्तान ने यह जमीन उन्हें ताम्रपत्र पर लिखकर दी.
महमूद बेगड़ा और धर्म परिवर्तन की घटना
कुछ समय बाद महमूद बेगड़ा का शासन आया. उन्होंने कई हिंदू मंदिरों को तोड़ दिया. जब उनके सैनिक हरदास द्वारा बनाए गए माता के मंदिर को तोड़ने आए, तो हरदास ने ताम्रपत्र दिखाकर मंदिर बचाने की गुहार लगाई. बेगड़ा ने शर्त रखी कि अगर हरदास इस्लाम कबूल कर लें, तो मंदिर को नहीं तोड़ा जाएगा. हरदास ने माता की भक्ति को सर्वोपरि मानते हुए इस्लाम स्वीकार कर लिया.
समाधि और मंदिर में सेवा
हरदास ने धर्म परिवर्तन के बावजूद माता की सेवा करना नहीं छोड़ा. उन्होंने मंदिर परिसर में ही मुस्लिम फकीर की तरह जीवन व्यतीत किया. उनके अंतिम समय में उनकी इच्छा के अनुसार, उन्हें और उनके परिवार को मंदिर परिसर में ही दफनाया गया. आज भी उनकी दरगाह पर चादर चढ़ाई जाती है और उनकी समाधि पर ‘हिंदू हरदास चित्रारा की समाधि’ लिखा है.
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ज़वेर्चंद मेघानी द्वारा वर्णित कहानी
गुजरात के प्रसिद्ध लेखक ज़वेर्चंद मेघानी ने इस घटना को अपने लेख ‘विलोपन’ (10-06-1946) में लिपिबद्ध किया. यह कहानी हरदास की अटूट भक्ति और हिंदू देवी-देवताओं के प्रति उनकी आस्था को दर्शाती है.
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FIRST PUBLISHED :
November 27, 2024, 19:07 IST