गांधी जी के एक अपील की झलक...
Gandhi Jayanti Special: महात्मा गांधी का नाम सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. बलिया की धरती का भी गांधी जी के साथ एक गहरा संबंध रहा. यह वही धरती है जहां गांधी जी ने स्वयं सभा को संबोधित किया था. बलिया वह स्थान है, जहां गांधी जी की अपील पर विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई थी.
बलिया से गांधी जी का संबध
इतिहासकार डॉक्टर शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने बताया कि महात्मा मोहनदास करमचंद गांधी आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं. बलिया की पवित्र भूमि ने महात्मा गांधी को भी प्रेरणा दी और उन्होंने इस भूमि पर आकर लोगों को प्रेरित किया. 1921 में गांधी जी बिहार के बक्सर में आयोजित एक कार्यक्रम में आए थे. उस समय बलिया से कांग्रेस के जिलाध्यक्ष ठाकुर जगन्नाथ सिंह के नेतृत्व में भारी भीड़ उनका भाषण सुनने गई थी.
गांधी जी का बलिया दौरा
जब गांधी जी का सभा समाप्त हो गई, तब बलिया के लोगों ने उनसे अपने जिले में आने का निवेदन किया. गांधी जी ने इसे स्वीकार करते हुए बलिया आने का वादा किया था. 1922 में गांधी जी ने अपने बेटे देवदास को बलिया भेजा. जब देवदास ने बलिया की स्थिति के बारे में गांधी जी को बताया तो गांधी जी ने बलिया आने का निश्चय किया. फरवरी 1922 में गांधी जी ने अपने नवजीवन (गुजराती अंक) में “बलिया में दमन” शीर्षक से एक लेख लिखा, जो असहयोग आंदोलन के दौरान चौरी चौरा कांड के बाद बलिया में पुलिसिया दमन पर आधारित था.
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बलिया की जनसभा में गांधी जी का संबोधन
अपने वादे को निभाते हुए, गांधी जी 16 अक्टूबर 1925 को बलिया के गवर्नमेंट मेस्टन कॉलेज (वर्तमान एलडी/एससी कॉलेज) के मैदान में जनसभा को संबोधित करने आए. उस समय बलिया में लाउडस्पीकर नहीं था, और हजारों की भीड़ के बीच गांधी जी ने मंच पर पहले पंद्रह मिनट तक चरखा चलाया. बांस से बने मंच के हिलने के बावजूद, जब गांधी जी ने बोलना शुरू किया, तो पूरे मैदान में शांति छा गई और उनकी आवाज पीछे तक सुनाई देने लगी. इस जनसभा में गांधी जी ने कहा,
“बलिया संयुक्त प्रांत का बिहार की सरहद पर स्थित एक गरीब जिला है. यहाँ के लोग उत्साही, सीधे-सादे और भोले हैं. देशभक्ति यहाँ के लोगों में कूट-कूट कर भरी है. विदेशी वस्त्र छोड़कर घर-घर में चरखे पर सूत काटें और खादी वस्त्र अपनाएं. नशा गरीब बनाता है, इसलिए नशा करना बंद करें.”
गांधी जी की अपील के बाद दिखा था बदलाव
गांधी जी की अपील के बाद बलिया में जगह-जगह पर विदेशी कपड़ों की होली जलने लगी. इतिहासकार डा. कौशिकेय ने बताया कि नगरा के लक्ष्मीनारायण कान्दू जैसे बड़े गांजा थोक लाइसेंसी ने अपने सारे स्टॉक का गांजा जला दिया. इसके बाद घर-घर में चरखे चलाए गए और लोग सूत काटने लगे. इस प्रकार बलिया ने गांधी जी के आवाहन पर देशव्यापी आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.
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FIRST PUBLISHED :
October 2, 2024, 09:38 IST