विष्णु के आग्रह पर शिवालिक पहाडियों पर स्वयंभू रूप से प्रकट हुई थी माँ शाकंभरी
अंकुर सैनीम /सहारनपुर: उत्तर प्रदेश के पश्चिम में स्थित सहारनपुर जनपद की शिवालिक पहाड़ियों में माँ शाकंभरी देवी का मंदिर आस्था का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है. माँ शाकंभरी को दुर्गा का अवतार माना जाता है, और दुर्गाशप्तशती में भी उनकी महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है. यह शक्तिपीठ सहारनपुर जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर बेहट क्षेत्र में स्थित है और यह मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं की कोई भी मुराद खाली नहीं जाती.
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में भगवान ब्रह्मा से वरदान में चारों वेद पाकर दुर्गम नामक राक्षस ने देवताओं और मानव जाति को परेशान करना शुरू कर दिया. राक्षसों के अत्याचार से पृथ्वी पर घोर पाप फैल गया, जिससे अकाल पड़ गया और वनस्पति समाप्त हो गई. देवताओं ने इस संकट से निपटने के लिए माता भगवती की तपस्या की. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर आदिशक्ति माँ शाकंभरी ने दुर्गम राक्षस का संहार किया और पृथ्वी को अकाल से मुक्ति दिलाई. माता के आंसुओं से पृथ्वी पर जलधारा फूटी, जिसे आज बाण गंगा के नाम से जाना जाता है. इसके बाद पृथ्वी पर भारी वर्षा हुई और वनस्पति पुनः उग आई, जिससे पृथ्वी हरी-भरी हो गई.
राक्षस वध के बाद से यहां विराजमान हैं मां शाकंभरी देवी
मां शाकंभरी देवी पीठ के शंकराचार्य महंत सहजानंद के अनुसार, शिवालिक की पहाड़ियों में अनादि काल से माँ शाकंभरी देवी का वास है. कथा के अनुसार, दुर्गम राक्षस ने ब्रह्मा जी से चारों वेद प्राप्त कर रसातल में छिपा दिए थे, जिससे पृथ्वी पर धार्मिक क्रियाएँ बंद हो गईं और जल का अभाव हो गया. तब ऋषि-मुनियों ने माँ शताक्षी की तपस्या की, और उन्होंने प्रकट होकर पृथ्वी पर जल की व्यवस्था की. इसके बाद, माँ शताक्षी ने शाकंभरी रूप धारण कर पृथ्वी पर साग, सब्जी और फल आदि उत्पन्न किए, जिससे सभी प्राणियों की भूख शांत हुई. माँ शाकंभरी ने अपनी तीन शक्तियों भीमा, भ्रामरी, और शताक्षी को प्रकट किया और दुर्गम राक्षस का वध कर चारों वेद ब्रह्मा जी को लौटा दिए.
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FIRST PUBLISHED :
October 22, 2024, 12:56 IST
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