रीढ़ की हड्डी में था ट्यूमर..फिर भी आस्था ने की दिन-रात मेहनत, बन गईं प्रोफेसर

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Last Updated:January 19, 2025, 13:48 IST

Inspiring Story: आस्था को रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर था. डॉक्टर ने केस देख हार मान ली. लेकिन आस्था ने मेहनत करना नहीं छोड़ा और प्रोफेसर बन गईं.

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"सिर्फ 2% लोगों को होती है ये बीमारी, फिर भी आस्था सिंह ने नहीं मानी हार!"

Inspiring Story: आस्था सिंह के साथ बहुत कुछ हुआ. डॉक्टर ने हार मान लिए. लेकिन वो नहीं हारी. साल 2017 में जब उनकी पोस्ट ग्रेजुएशन खत्म हुई तो उनके पैरों परेशानी आने लगी. वह कई बार फिजियोथेरेपी और IMS बनारस के न्यूरोसर्जन के पास गईं, लेकिन कोई ठोस कारण समझ नहीं आया. इस दौरान उनके गिरने की घटनाएं बढ़ने लगीं. वह कैंपस में, वॉशरूम में और यहां तक कि घर पर भी गिरने लगीं. हर बार उठने की कोशिश में दर्द असहनीय हो जाता.

जब वह नेट परीक्षा देने गईं तो इस दर्द और गिरने की समस्या के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. तीन घंटे के उस एग्जाम में उन्हें इतना दर्द हुआ कि लिखने में भी मुश्किल हो रही थी, लेकिन वो परीक्षा देती रहीं.

बीमारी का पता लगाना बना पहेली
बनारस से दिल्ली तक के सफर में उन्होंने कई न्यूरोसर्जन और डॉक्टरों से संपर्क किया. MRI भी कराई गई, लेकिन बीमारी का पता लगाना मुश्किल हो रहा था. आस्था बताती हैं कि रेडिएशन के दुष्प्रभावों को देखते हुए बार-बार MRI कराना भी जोखिम भरा था. उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी. हर दिन उनके लिए एक नई चुनौती लेकर आता था.

इसके बाद उन्हें वसंत कुंज (दिल्ली) स्थित इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में उन्हें ले जाया गया, जहां जापानी तकनीक वाली कलर्ड MRI से पता चला कि उनकी रीढ़ की हड्डी में एक दुर्लभ ट्यूमर था. डॉक्टरों ने बताया कि यह ट्यूमर सिर्फ 2-3% मामलों में होता है और इसे पहचानना बेहद कठिन है.

वीडियोज देख हुईं इंस्पायर
इलाज के बाद आस्था को तीन महीने का रेस्टिंग पीरियड दिया गया. यह दौर उनके लिए शारीरिक ही नहीं, मानसिक रूप से भी चुनौतीपूर्ण था. डिप्रेशन में जाने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. किताबें, गाने और मोटिवेशनल वीडियो उनके लिए सहारा बने. आस्था सिंह लोकल 18 को बताती हैं कि स्टीफन हॉकिंग उनके लिए एक प्रेरणा की तरह रहे.

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जब मिली सफलता
उनकी मेहनत और हिम्मत ने उन्हें राजीव गांधी नेशनल फेलोशिप में 7वीं रैंक दिलाई. राजीव गांधी नेशनल फेलोशिप में पूरे भारत से 200 लोग सिलेक्ट होते हैं. उनकी जिंदगी का एक बड़ा मोड़ था. उनकी पहली पोस्टिंग आगरा में हुई, लेकिन व्हीलचेयर यूजर होने के कारण उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. इस दौरान उनकी माता जी बनारस में रहती थीं. पिताजी उनके साथ अकेले आगरा में रहकर उनकी देखभाल करते थे. पीएम और सीएम ऑफिस को मेल लिखने के बाद उनका ट्रांसफर गाजीपुर पीजी कॉलेज में हुआ. आज आस्था सिंह न सिर्फ एक प्रोफेसर हैं बल्कि दिव्यांगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

आस्था सिंह सरकार से मांग करती हैं कि दिव्यांगों के लिए ऐसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं. जहां चार लोगों की मदद की जरूरत न हो. दिव्यांगों के लिए अलग से लिफ्ट रैंप और अन्य बुनियादी संसाधन बनाए जाएं. ताकि वो भी एक आम इंसान की तरह अपनी जिंदगी जी सकें और आत्मनिर्भर बन सकें.

Location :

Ghazipur,Uttar Pradesh

First Published :

January 19, 2025, 13:48 IST

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रीढ़ की हड्डी में था ट्यूमर..फिर भी आस्था ने की दिन-रात मेहनत, बन गईं प्रोफेसर

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