पटनाः बिहार की सियासत अन्य राज्यों के मुकाबले अलग है, जहां जातिवाद से लेकर परिवारवाद हावी है. सूबे में सियासी समीकरण के बदलाव का बयार लगातार चलता रहता है. बिहार में राजनीतिक ऊंट किस तरफ करवट लेगा, ये सवाल हमेशा बना रहता है. हालांकि 1 सितंबर तक बिहार में केवल दो विकल्प था. एक एनडीए तो दूसरा महागठबंधन. लेकिन 2 सितंबर को बिहार में एक तीसरे विकल्प की एंट्री हो गई, जिसका नाम है जन सुराज पार्टी. सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने आखिरकार वो चाल चल ही दी, जिसके लिए वो करीब दो साल से बिहार की गलियों में घूम रहे थे. लेकिन प्रशांत किशोर के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं, जिनसे पार पाना आसान नहीं होगा तो ये जरूर कहा जा सकता है कि बिहार के सियासी चक्रव्यूह में नए अभिमन्यु की एंट्री हो गई है.
प्रशांत किशोर के सामने बड़ी चुनौती
हालांकि उनकी यह मेहनत कितनी रंग लाएगी, ये तो चुनाव में प्रदर्शन के बाद पता चलेगा. लेकिन उससे पहले उन्होंने एक बड़ी जंग जीत ली है और वो है उपहास की जंग. बुधवार को हुई जन सुराज की रैली में जितनी भीड़ थी, उससे साफ पता चलता है कि धरातल पर मेहनत की गई है. हालांकि बिहार के सियासी चक्रव्यूह को भेदना इतना आसान नहीं है. प्रशांत किशोर के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं, जिससे उनको पार पाना होगा. क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में पुष्पम प्रिया चौधरी ने नई पार्टी बनाकर लोगों को तीसरा विकल्प दिया था, जिसे सिरे से खारिज कर दिया गया था. बिहार की पॉलिटिक्स जाति पर आकर खत्म हो जाती है, ये कहने में कोई गुरेज नहीं करता है. चाहे टिकट बंटवारे का मामला हो या फिर पार्टियों में पदों का बंटवारा हो. प्रशांत किशोर विकास, शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य की बात करते हैं लेकिन जब टिकट बंटवारा होगा तब वो क्या जाति को महत्व देंगे, ये आने वाले समय में पता चलेगा.
रैली में दिखा अनुशासन और शिष्टाचार
प्रशांत किशोर की इस रैली में केवल ताकत ही नहीं दिखी. बल्कि शिष्टाचार और अनुशासन की बेहतर तस्वीर भी सामने आई. ना किसी तरह की नारेबाजी और ना ही रास्तों में दूसरे आने-जाने वाले लोगों के लिए परेशानी खड़ी करना. प्रशांत किशोर ने इस रैली के जरिए अपने आप को एक सफल संगठनकर्ता के तौर पर पेश किया है. प्रशांत किशोर की इस ऐतिहासिक रैली में युवाओं की ज्यादा भागीदारी थी. बताया जा रहा है कि चंपारण, मगध और शाहाबाद से इस रैली में ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया. जबकि प्रशांत किशोर ने अपने दो साल की इस बिहार यात्रा में उत्तर बिहार पर ज्यादा ध्यान दिया था.
प्रशांत किशोर को लेकर विरोध के सुर एक जैसे
प्रशांत किशोर ने जब बिहार में जनसुराज अभियान की शुरुआत की तो अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं ने हाथों-हाथ लेते हुए उनपर जमकर निशाना साधा. लेकिन प्रशांत किशोर लगातार मेहनत करते रहे. गौर करने वाली बात यह है कि एनडीए और महागठबंधन के नेताओं के विरोध के सुर एक जैसे ही हैं. बुधवार को रैली होने के बाद विपक्षी नेताओं ने जमकर निशाना साधा. प्रशांत किशोर की रैली का मंच इतना बड़ा था कि एक साथ हजारों लोग बैठ सकते थे. अपनी रैली में प्रशांत किशोर ने बिहार में शिक्षा के बदलाव पर जोर दिया.
शराब के पैसे से आने वाला टैक्स शिक्षा पर खर्च होगा
प्रशांत किशोर ने जबसे अपनी यात्रा शुरू की है, वो तबसे शिक्षा की ही बात करते रहे हैं. प्रशांत किशोर यह जानते हैं कि बदलाव का एकमात्र जरिया शिक्षा ही है. इसके अलावा प्रशांत किशोर ने शराबबंदी को हटाने की भी बात कही. प्रशांत किशोर दावा करते हैं कि शराबबंदी से हर साल बिहार सरकार को 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है. प्रशांत किशोर ने यह वादा किया है कि शराब से मिलने वाले टैक्स के पैसे केवल शिक्षा पर ही खर्च होंगे.
क्या भेद पाएंंगे जातीय समीकरण का चक्रव्यूह?
हालांकि इन वादों के बीच प्रशांत किशोर को एक बड़ा चक्रव्यूह भेदना होगा, वो है जाति का चक्रव्यूह. हालांकि इसके लिए उन्होंने अपनी पहली चाल चल दी है. भारतीय विदेश सेवा के रिटायर्ड अधिकारी मनोज भारती को कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया है. साथ ही उन्होंने यह भी ऐलान किया है कि जातीय आबादी के हिसाब से काबिलियत के आधार पर हिस्सेदारी का फार्मूला वह पार्टी में लागू करेंगे. पीके यह भी दावा करते हैं कि बिहार की सियासत में जातीय बैरियर को तोड़ने में वह सफल रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED :
October 3, 2024, 07:36 IST