सैकड़ों साल पहले जब भारत में लड़कियां भेजती थीं गुलाब तो क्या होता था मतलब

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Last Updated:February 08, 2025, 16:46 IST

Red Rose Day: भारत में सैकड़ों साल पहले बसंत के आने के साथ ही हवा में प्यार के रंग घुलने लगते थे. मदन का उत्सव शुरू होता था. तब जब युवतियां गुलाब का फूल किसी को भेजती थीं तो इससे क्या संदेश देती थीं.

सैकड़ों साल पहले जब भारत में लड़कियां भेजती थीं गुलाब तो क्या होता था मतलब

हाइलाइट्स

  • प्राचीन भारत में लड़कियां गुलाब से प्रेम संदेश भेजती थीं
  • बसंत ऋतु में प्रेम और रोमांस का मौसम होता था
  • लिव-इन जैसी परंपरा भी प्राचीन भारत में थी

वैलेंटाइन से पहले कई तरह के दिन सेलिब्रेट किए जाते हैं. आज का दिन रेड रोज डे यानि लाल गुलाब दिवस है. दरअसल वैलेंटाइन वीक की शुरुआत ही रोज़ डे के साथ होती है.  प्राचीन ग्रंथों और नाटकों को पढ़ें तो लगता है कि प्यार और इसका प्रदर्शन हमारी संस्कृति में भी रहा है. प्राचीन भारत की परंपराएं प्यार और शादी के मामले में बहुत आगे की रही हैं. प्राचीन भारत में भी गुलाब के जरिए लड़कियां प्रेम संदेश भेजती थीं.

कालीदास के एक नाटक में स्पष्ट उल्लेख है कि कैसे एक प्रेमिका बसंत के दौरान लाल रंग के फूल के जरिए प्रेमी के पास प्रणय निवेदन भेजती है. अथर्ववेद तो और आगे की बात करता है. वो कहता है कि प्राचीन काल में अभिभावक सहर्ष अनुमति देते थे कि लड़की अपने प्रेम का चयन खुद करे.

यूरोप में वैलेंटाइन 14 फरवरी को होता है. ठीक इसी दौरान हमारे देश में बसंत ऋतु आई हुई होती है. जिसे मधुमास या कामोद्दीपन ऋतु भी कहते हैं. इस मौसम में हमारे यहां हमेशा हवा में प्रणय और रोमांस के गुलाल घुलते रहे हैं. बसंत को सीधे सीधे प्रेम से जोड़ा जाता रहा है.

…और लाल फूल के साथ ये प्रस्ताव भेजा गया
माना जाता है कि कालीदास ईसापूर्व 150 वर्ष से 600 वर्षों के बीच हुए. कालिदास ने द्वितीय शुंग शासक अग्निमित्र को नायक बनाकर मालविकाग्निमित्रम् नाटक लिखा. अग्निमित्र ने 170 ईसापूर्व में शासन किया था. इस नाटक में उन्होंने उल्लेख किया कि किस तरह रानी इरावती बसंत के आने पर राजा अग्निमित्रा के पास लाल फूल के जरिए प्रेम निवेदन भेजती है.

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कालीदास के नाटक में लिखा गया है कि किस तरह रानी इरावती बसंत के आने पर राजा अग्निमित्रा के पास लाल फूल के जरिए प्रेम निवेदन भेजती है.

रोमांस का मौसम होता था वसंत 
कालीदास के दौर में वसंत के आगमन पर रोमांस की भावनाएं पंख लगाकर उड़ने लगती थीं. प्रेम प्रसंग में डूबे तमाम नाटकों के प्रदर्शन के लिए ये आदर्श समय था. इसी समय स्त्रियां अपने पतियों के साथ झूला झूलती थीं. तन-मन में बहार से पुलकित हो जाता था. शायद उसी वजह से इसे मदनोत्सव भी कहा गया. इसी ऋतु में कामदेव और रति की पूजा का रिवाज है.

लिवइन जैसी परंपरा भी थी
हिंदू ग्रंथ ये भी कहते हैं कि प्राचीन भारत में लड़कियों को खुद अपने पतियों को चुनने का अधिकार था. वो अपने हिसाब से एक दूसरे से मिलते थे. सहमति से साथ रहने पर भी राजी हो जाते थे. यानि अगर एक युवा जोड़ा एक दूसरे को पसंद करते थे तो एक दूसरे से जुड़ जाते थे. यहां तक कि उन्हें अपने विवाह के लिए अभिभावकों की रजामंदी की जरूरत भी नहीं होती थी. वैदिक किताबों के अनुसार ऋग वैदिक काल में ये विवाह का सबसे शुरुआती और सामान्य तरीका होता था. लिव इन रिलेशनशिप जैसी परंपरा भी थी.

अथर्ववेद का एक अंश कहता है, अभिभावक आमतौर पर लड़की को छूट देते थे कि वो अपने प्यार का चयन खुद करे. सीधे तौर पर वो उसे प्रेम सबंधों के लिए उत्साहित करते थे.

तब गंधर्व विवाह को सबसे बेहतर मानते थे
अथर्ववेद का एक अंश कहता है, अभिभावक आमतौर पर लड़की को छूट देते थे कि वो अपने प्यार का चयन खुद करे. सीधे तौर पर वो उसे प्रेम सबंधों के लिए उत्साहित करते थे.

जब मां को लगता था कि बेटी युवा हो चुकी है और अपने लिए पति चुनने लायक हो चुकी है तो वो खुशी-खुशी उसे ये करने देती थी. इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं था. अगर कोई धार्मिक परंपरा के बगैर होने वाले गंधर्व विवाह को करता था तो उसे सबसे बेहतर विवाह मानते थे

कई जनजातीय समाजों में आज भी ऐसा है
अगर लड़का और लड़की एक दूसरे पसंद कर लेते थे तो एक तय के लिए साथ रहते थे. फिर समाज उनकी शादी के बारे में सोचता था. देश में आज भी छत्तीसगढ़ से लेकर उत्तर पूर्व और कई जनजातीय समाज में इस तरह के तरीके चल रहे हैं.

क्या होता है मदनोत्सव
मदनोत्सव, प्राचीन काल में मनाया जाने वाला एक उत्सव है. यह उत्सव काम की कुंठाओं से मुक्त होने के लिए मनाया जाता था.इसमें प्रेम को शारीरिक सुख से ज़्यादा मन की भावना से जोड़ा जाता है.
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, वसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव हृदय में प्रेम का संचार किया था. तभी से इस दिन को मदनोत्सव या वसंतोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा. एक महीने तक चलने वाले इस उत्सव का समापन होली के उल्लास के साथ होता है. मदनोत्सव को रंगों का पर्व भी माना जाता है. इसलिए इस उत्सव का आखिरी दिन रंगपंचमी के दिन मनाया जाता है. दशकुमार चरित में होली का उल्लेख ‘मदनोत्सव’ के नाम से किया गया है.
मदनोत्सव को रति और कामदेव की उपासना का पर्व कहा जाता है. इसलिए वसंत पंचमी पर सरस्वती उपासना के साथ-साथ रति और कामदेव की उपासना के गीत भारत की लोक शैलियों में आज भी विद्यमान हैं. प्राचीन ग्रंथों में ‘सुवसंतक’ और ‘मदनोत्सव’ का सबसे ज़्यादा ज़िक्र किया गया है. पहले देशभर में बसंत के मौके पर एक महीने तक मदनोत्सव मनाया जाता था.

Location :

Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh

First Published :

February 08, 2025, 16:46 IST

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