नई दिल्ली:
एक वह समय था जब भारत की विदेशी पूंजी का एक बड़ा हिस्सा मोबाइल फोन के आयात पर खर्च हो जाता था. इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों का आयात हजारों करोड़ रुपए का होता था. भारत में इस्तेमाल होने वाले अधिकांश मोबाइल फोन आयात किए जाते थे. फार्मा और फूड प्रोसेसिंग में भारत का एक बड़ा हिस्सा आयात पर निर्भर था. लेकिन कोविड काल में सरकार की एक योजना ने इन बड़े क्षेत्रों में एक क्रांति कर दी.
यह योजना है पीएलआई या प्रोडक्शन लिंक्ड प्रोत्साहन. इसका उद्देश्य भारत में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना था. योजना खासतौर से कुछ ऐसे क्षेत्रों को ध्यान में रख कर बनाई गई जहां मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने की आवश्यकता थी, ताकि घरेलू स्तर पर नौकरियां पैदा हो सकें, निवेश बढ़ सके और सरकार के राजस्व में वृद्धि हो सके. दरअसल, कोविड काल में यह महसूस किया गया कि भारत समेत अधिकांश देश अपने यहां महत्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर और कल-पुर्जों के आयात के लिए एक ही देश पर निर्भर हैं. जब कोविड की पाबंदियों के कारण सप्लाई चेन बाधित हुई तब घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को तेजी से बढ़ावा देने की जरूरत महसूस की गई.
अप्रैल 2020 में शुरू की गई यह योजना सबसे पहले तीन क्षेत्रों में लागू की गई थी. मोबाइल और उसके पुर्जों का निर्माण, इलेक्ट्रिक कंपोनेंट और मेडिकल उपकरण. बाद में इसे 14 क्षेत्रों में भी लागू किया गया. इसके तहत भारत में ही निर्माण करने के लिए घरेलू और विदेशी कंपनियों को सरकार की ओर से कई तरह की रियायतें दी जाती हैं. यह उनके राजस्व पर पांच साल तक के लिए चार से छह प्रतिशत तक दी जाती है.
अब जबकि पीएलआई योजना को शुरू हुए साढ़े चार से अधिक समय हो गया है, भारत के मेन्युफैक्चरिंग क्षेत्र पर इसका व्यापक और प्रभावी असर सीधे तौर पर महसूस किया जा रहा है.
पीएलआई योजनाओं की 755 लाभार्थी कंपनियां हैं और इसके अंतर्गत आने वाले 14 क्षेत्रों में अगस्त तक 1.46 लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ है. बिक्री के मामले में उत्पादन में 12.5 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है और लगभग 10 लाख लोगों को रोजगार मिला है.
अगर तीन बड़े क्षेत्रों की बात करें तो इनमें चार लाख करोड़ रुपए से अधिक का निर्यात किया गया है. उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं द्वारा निर्यात 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और फूड प्रोसेसिंग जैसे प्रमुख क्षेत्रों का महत्वपूर्ण योगदान है.
इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में, भारत मोबाइल फोन के आयातक से शुद्ध निर्यातक बन गया है. मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग अब भारत के कुल उत्पादन का आधा हिस्सा है, वित्त वर्ष 2020-21 से निर्यात में 3 गुना वृद्धि हुई है.
भारत अब मात्रा के हिसाब से दवाओं और फार्मास्यूटिकल्स में दुनिया का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण देश है. फार्मास्यूटिकल उद्योग ने थोक दवाओं और जटिल जेनेरिक दवाओं के घरेलू उत्पादन को पुनर्जीवित किया है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हुई है. चिकित्सा उपकरण उद्योग में सीटी स्कैनर जैसे महत्वपूर्ण उपकरणों के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण हुआ है, जिससे स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिला है.
दूरसंचार क्षेत्र में, भारत पीएलआई की स्थापना के तीन वर्षों के भीतर 4जी और 5जी दूरसंचार उपकरणों का निर्यातक बन गया है. ऑटोमोबाइल क्षेत्र में, वैश्विक उद्योगों ने देश में पर्याप्त निवेश के साथ इलेक्ट्रिक वाहन पेश किए हैं. खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र ने टिकाऊ कृषि पद्धतियों और बाजरा एवं जैविक उत्पादों के उत्पादन में योगदान दिया. ड्रोन जैसे उभरते क्षेत्रों में एमएसईएम और स्टार्टअप्स के कारण कारोबार में सात गुना वृद्धि हुई है. सोलर पीवी मॉड्यूल और विशेष इस्पात उद्योग भी महत्वपूर्ण निवेश और स्थानीय उत्पादन के साथ मजबूत वृद्धि देख रहे हैं.
दूरसंचार क्षेत्र में क्रांति
दूरसंचार पीएलआई योजना ने शुरुआत के पहले तीन वर्षों में 3,400 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया है, जो वित्त वर्ष 2019-20 के आधार वर्ष की तुलना में 370 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है. दूरसंचार उपकरण उत्पादन में 50,000 करोड़ रुपये के मील के पत्थर को पार कर गया है, जबकि निर्यात लगभग 10,500 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.
इस उपलब्धि के कारण 17,800 से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियां और कई अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं, जो भारत के दूरसंचार विनिर्माण क्षेत्र की मजबूत वृद्धि और प्रतिस्पर्धात्मकता को रेखांकित करता है. कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों पर नजर डाल लेते हैं-
2014-15 में 5.8 करोड़ मोबाइल फोन का उत्पादन और 21 करोड़ यूनिट का आयात करने वाले भारत ने 2023-24 में घरेलू स्तर पर 33 करोड़ फोन का निर्माण किया. मोबाइल फोन निर्यात 2014-15 में 1,556 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 1,28,982 करोड़ रुपये हो गया. पिछले पांच वर्षों में दूरसंचार में व्यापार घाटा ₹68,000 करोड़ से घटकर ₹4,000 करोड़ रह गया है.
पीएलआई ने स्मार्टफोन उत्पादन में एक नया मुकाम हासिल कराने में मदद की है. स्मार्टफोन पीएलआई योजना सरकार के लिए राजस्व का बड़ा स्रोत बन गई है, जिससे पिछले चार वित्तीय वर्षों में इस योजना के तहत प्रोत्साहन राशि के वितरण की तुलना में 19 गुना अधिक राशि अर्जित हुई है.
स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग उद्योग ने सरकारी खजाने में 1.10 लाख करोड़ रुपये का योगदान दिया. वित्त वर्ष 2021 से वित्त वर्ष 2024 के बीच 12.55 लाख करोड़ रुपये के सामान का उत्पादन किया, जिसके दौरान सरकार ने प्रोत्साहन के रूप में 5,800 करोड़ रुपये वितरित किए. इसका मतलब है कि सरकार ने पीएलआई वितरण के बाद 1,04,200 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया. इस दौरान कई बड़े मील के पत्थर हासिल किए गए.
जैसे- उद्योग ने चार वर्षों के दौरान मोबाइल पार्ट्स और घटकों पर 48,000 करोड़ रुपये का शुल्क चुकाया, जबकि इंक्रीमेंटल जीएसटी से 62,000 करोड़ रुपये की आय हुई. इस योजना के शुभारंभ के बाद मोबाइल फोन उद्योग ने स्मार्टफोन इकोसिस्टम में लगभग 300,000 प्रत्यक्ष नौकरियां और 600,000 अप्रत्यक्ष नौकरियां पैदा की हैं.
इस योजना से उद्योग मध्यम-कुशल, ब्लू-कॉलर नौकरियों में महिलाओं के लिए सबसे बड़ा रोजगार सृजन और कौशल स्रोत भी बन गया है. चार साल की पीएलआई अवधि के दौरान स्मार्टफोन का संचयी निर्यात 2,87,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. इसने स्मार्टफोन निर्यात को वित्त वर्ष 2019 में 23वें स्थान से पिछले वित्त वर्ष के अंत में तीसरा सबसे बड़ा व्यक्तिगत कमोडिटी बना दिया है.
एक अनुमान है कि भारत जल्दी ही अपने यहां उपयोग में आने वाले सारे मोबाइल का उत्पादन घरेलू स्तर पर ही करेगा. ऐपल, गूगल और सैमसंग अपने नए मॉडल भारत में बना रहे हैं. कई चीनी कंपनियां भी अपने मोबाइल फोन का उत्पादन अब भारत में ही कर रही हैं. एक समय अधिकांश स्मार्टफोन आयात करने वाला भारत अब केवल 3 प्रतिशत स्मार्टफोन ही आयात कर रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया है. पीएलआई योजना इसे जमीन पर उतराने में एक बड़ा फैक्टर बनती जा रही है. इसने भारत की ग्रोथ में योगदान दिया है. हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें और अधिक पारदर्शिता लाने की आवश्यकता है. साथ ही, मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग में एसेंबली के साथ ही वैल्यू एडिशन पर भी जोर देने की बात कही गई थी जिस पर सरकार ने बाद में ध्यान दिया.