Last Updated:January 22, 2025, 13:40 IST
Explainer Dollar vs Yen vs Rupee: क्या किसी करेंसी की मजबूती उस देश की इकोनॉमी की ताकत बताती है? अगर ऐसा है तो एक आर्थिक सुपर पावर की मुद्रा अमेरिकी डॉलर ही नहीं बल्कि भारतीय रुपये से भी कमजोरी क्यों है. रुपये ...और पढ़ें
बीते कुछ महीने में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया लगातार कमजोर हुआ है. मौजूदा वक्त में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 86.55 रुपये है. देश की आजादी के वक्त से ही डॉलर के मुकाबले रुपये का भाव लगातार गिरते रहा है. मौजूदा वक्त की बात करें तो 2014 में जब पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी तो उस वक्त एक डॉलर का मूल्य 62.33 रुपये था. बीते 10 सालों में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में करीब 38 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. इसी तरह 2004 में जब मनोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी थी तो उस वक्त एक डॉलर का मूल्य 45 रुपये के करीब था. यानी मनमोहन सिंह के भी 10 साल कार्यकाल में भी रुपये में करीब 38 फीसदी की गिरावट हुई. ये आंकड़े बताने का मकसद केवल इतना है कि हमें इस बहस में नहीं पड़ना चाहिए कि यूपीए और भाजपा की सरकार में से किसके कार्यकाल में रुपया ज्यादा कमजोर हुआ. दोनों कार्यकालों में करीब-करीब रुपये में गिरावट की स्थिति एक जैसी रही.
रुपये में गिरावट प्रतिष्ठा का मसला
हम आम भारतीयों का मानना है कि रुपये में कमजोरी से देश की अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है और देश की प्रतिष्ठा को बट्टा लग रहा है. आजादी के वक्त एक डॉलर एक रुपये के बराबर था, लेकिन उस वक्त देश की आर्थिक स्थिति आज की तुलना में बहुत कमजोरी थी. अगर डॉलर के मुकाबले रुपये की मजबूती या कमजोरी इकोनॉमी की स्थिति बताती तो हम 1947 के बाद कुछ वर्षों में सबसे अमीर दौर में होते. यह एक राजनीतिक मसला है. रुपये की कमजोरी या मजबूती पूरी तरह एक आर्थिक मसला है.
सुपर पावर की करेंसी कमजोर
दुनिया में जापान एक बड़ा आर्थिक सुपर पावर है. 2010 तक वह अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्था हुआ करता है. आज भी जापान, भारत से बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है. वह चौथे पायदान पर है. पहले पर अमेरिका, दूसरे पर चीन और तीसरे पायदान पर जर्मनी है. एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग के मुताबिक 2030 तक भारत और जापान का पॉजिशन बदल सकता है. भारत चौथे नंबर पर और जापान पांचवे नंबर पर आ सकता है. मौजूदा वक्त में जापान की कुल इकोनॉमी 4.22 ट्रिलियन डॉलर की है, जबकि भारत की इकोनॉमी 3.55 ट्रिलियन डॉलर की है.
जापानी येन वाया अमेरिकी डॉलर
जापानी मुद्रा येन और अमेरिकी मुद्रा डॉलर के बीच का खेल बहुत पुराना है. 1970 के दशक में एक अमेरिकी डॉलर का भाव करीब 300 येन हुआ करता था. बाद के वर्षों में डॉलर के मुकाबले येन के भाव में मजबूती आई और 1990 में एक डॉलर का भाव 145 येन के करीब था. यह वही दौर है जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बनाया. उस वक्त के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने बाजार अर्थव्यवस्था की नीति अपनाई. उसके बाद से डॉलर के मुकाबले रुपये के भाव में तेज गिरावट का दौरा शुरू हुआ. यहां मजेदार बात यह है कि जब भारत में आर्थिक प्रगति का दौर शुरू हुआ तब डॉलर के मुकाबले रुपये के भाव में तेज गिरावट का भी दौर शुरू हुआ.
निष्कर्ष
जापान का यह उदाहरण हमारे लिए एक बड़ी सीख है. मुद्रा के वैलुएशन ने देश की आर्थिक स्थिति को नहीं समझा जा सकता है. मुद्रा देश की आर्थिक मजबूती का एक मात्र परिचायक नहीं है. डॉलर के मुकाबले रुपये के भाव को लेकर अर्थशास्त्री भी एकमत नहीं रहे हैं. उदारवादी अर्थव्यवस्था की वकालत करने वाले अर्थशास्त्री तेज विकास दर के लिए डॉलर के मुकाबले रुपये को और कमजोर करने के पक्षधर रहे हैं. उनका तर्क रहता है कि ऐसा करने से निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और आयात में कमी आएगी.
चीन पर अपनी मुद्रा को कमजोर करने का आरोप
चीन के पास मौजूदा वक्त में 3.2 ट्रिलियन (3200 बिलियन) डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है. यह राशी भारत की कुल इकोनॉमी साइज के बराबर है. भारत के पास विदेशी मुद्रा भंडार करीब 625 बिलियन डॉलर के आसपास है. विदेशी मुद्रा भंडार के हिसाब चीनी मुद्रा युआन जरूरत से ज्यादा कमजोर है. एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 7.27 युआन है. चीन पर आरोप लगता है कि वह अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए अपनी मुद्रा को कमजोर करके रखा हुआ है. चीन ने बीते 2024 में 3.56 ट्रिलियन डॉलर (3560 बिलियन डॉलर) रहा.
First Published :
January 22, 2025, 13:40 IST