1998 के बाद पहली बार दिल्ली हुई BJP की, क्या बदलेगी राजनीति का मिजाज

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Last Updated:February 08, 2025, 14:44 IST

How BJP Won Delhi Election: दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जबरदस्त प्लानिंग से जीत हासिल की. कांग्रेस के हमलों और केजरीवाल के आरोपों के बावजूद, बीजेपी ने पीएम मोदी की रैलियों और जनसंपर्क अभियान से माहौल बद...और पढ़ें

1998 के बाद पहली बार दिल्ली हुई BJP की, क्या बदलेगी राजनीति का मिजाज

बीजेपी को बहुमत मिल गया. (फाइल फोटो PTI)

हाइलाइट्स

  • बीजेपी ने दिल्ली चुनाव में जीत हासिल की.
  • पीएम मोदी की रैलियों और जनसंपर्क अभियान ने माहौल बदला.
  • कांग्रेस के हमलों और केजरीवाल के आरोपों के बावजूद बीजेपी जीती.

नई दिल्ली: कहते हैं अंत भलातो सब भला. बीजेपी को बहुमत मिल गया. लेकिन चुनावों के 15 दिन पहले तक तो लगता था मानो अरविंद केजरीवाल को कोई टक्कर नही दे पा रहा है. जमीन पर बीजेपी नजर नही आ रही थी. जेल से बाहर आने के बाद केजरीवाल ने एक एक विधानसभा क्षेत्र मे जनसंपर्क का काम पूरा कर लिया था. सिलसिलेवार आम आदमी पार्टी ने विधान सभा के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान भी कर लीड भी ले ली थी. ऐसा लगने लगा था कि केजरीवाल का कोर वोट बैंक उनसे छिटका नही है. केजरीवाल को भरोसा था कि झुग्गी, पूर्वांचली, अनियमित बस्तियां, मुसलमान समेत उनके समर्थक उनके साथ ही रहेंगे. ऐसे में उन्होने अपने कई सहयोगियो को भी अपना विधानसभा क्षेत्र बदलने की इजाजत भी दे दी. 13 सालों की एंटी इंकंबेंसी तो थी ही लेकिन बड़ी मुश्किल ये थी कि केजरीवाल को ऐहसास था कि भ्रष्टाचार और शीशमहल का आरोप जो बीजेपी ने उन पर चिपकाया है उसे तोडने के लिए जमसंपर्क के काम से तोड़न होगा. इस काम में वो सफळ होते भी नजर आने लगे थे.

उधर महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों में जीत के बाद बीजेपी का आत्मविश्वास थोड़ा बढने लगा था. पिछले दो चुनावो में एकतरफा जंग हारने के बाद पार्टी आलाकमान इस बार यूं ही हथियार डालने को तैयार नहीं था. फिर शुरुआत हुई जनसंपर्क अभियान से. नेताओं, सांसदों, और दिल्ली के नेताओं को झुग्गियों मे प्रवास के लिए कार्यक्रम दिया गया.चुनावो के चंद हफ्तों पहले पीएम मोदी सरकार ने वेतन आयोग के गठन की घोषणा कर दी. दिल्ली के तमाम सरकारी कर्मचारियो में एक सकारात्मक संदेश गया. लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी था. केजरीवाल बार बार पूछ रहे थे कि बीजेपी का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा. कार्यकर्ताओं में भी जोश नजर नहीं आ रहा था.

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यहां से बदला माहौल
लेकिन स्थितियां बदलनी शुरु हुईं कांग्रेस के मैदान में कूदने के बाद. कांग्रेस जानती थी कि वो किसी भी कोने में रेस में नहीं हैं. लेकिन उन्हें यकीन हो गया था कि केजरीवाल के कारण वो सिर्फ दिल्ली ही नहीं कई राज्यों में हार रहे हैं. मोर्चा खोला राहुल गांधी ने अपनी पहली रैली में. राहुल ने केजरीवाल पर ऐसा हल्ला बोला कि बाकी कांग्रेसी नेतओं की जुबान खुल गई. कोषाध्यक्ष अजय माकन ने तो केजरीवाल को फर्जीवाल घोषित कर दिया और राहुल प्रियंका यमुना के पानी से लेकर दिल्ली की दुर्दशा को लेकर केजरीवाल को ललकारने लगे. संदीप दीक्षित ने तो 14 कैग रिपोर्ट का हवाला देकर केजरीवाल के स्वास्थ्य संबंधी दावों को भी ध्वस्त कर दिया. आखिर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के हार होने की स्थिति में उन्हें दिल्ली और पंजाब दोनो राज्यों में वापसी की राह नजर आने लगी थी. जाहिर है कांग्रेस के ही वोट बैंक पर कब्जा जमा कर केजरीवाल ने इतने दिनों सत्ता संभाली. 2020 में साढ़े चार फीसदी वोट पर सिमटी कांग्रेस ने जोर लगाया है. उन्हें भरोसा है कि उन्हे सीटें मिलें ना मिले लेकिन अगर उनका वोट प्रतिशत दोगुना हो जाता है तो आम आदमी पार्टी के हाथ से तो सत्ता गई. उधर असदुद्दीन ओवैसी ने इक्का दुक्का सीटों पर मोर्चा खोल रखा था. मुसलमान वोट तो थोडे बंटने ही थे.

केजरीवाल भांप गए थे कांग्रेस का मिजाज
पहले तो इंडी गठबंधन के सहयोगियों से कांग्रेस पर दबाव डलवाया. फिर खुद भी कांग्रेस पर हमला बोलने में जुट गए. लेकिन जो आरोप लगा कर वो 2013 में सत्ता में आए थे वो अब कांग्रेस पर नहीं चिपक रहे थे. केजरीवाल की मुश्किल ही यही रही कि 2013 में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में एजाडा हथियाया और सत्ता में आ गए. वोटरों को इस नयी सत्ता पर भरोसा हो गया था. 2020 में मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी यानि फ्रिबीज के सहारे सत्ता में आए. वोटरों को कहा कि बीजेपी मुफ्त नहीं देती बल्कि जो मिल रहा है उसे छिन लेगी. लेकिन ये दोनो बाते 2025 मे काम नही कर रही थी. भ्रष्टाचार का मुद्दा शीशमहल और शराब घोटाले में केजरीवाल के हाथ से निकल गया. आखिरी दौर आते आते केजरीवाल हर रोज नए आरोप लगाने और नए वायदे करने के लिए प्रेस कांफ्रेस करने में लग गए.

ऐसे पलटी बाजी
जाहिर है केजरीवाल और उनकी टीम के पास वोटरों को देने के लिए कुछ नया नहीं थी. वोटर लिस्ट में ग़डबड़ी के आरोप लगाने शुरु किए. आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग पर निशाना साधना शुरु कर दिया. स्थितियां भांपते हुए बीजेपी ने अपने सभी दिग्गजों को मैदान में उतार दिया. अमित शाह खुद हर पल हर कदम को मॉनीटर करते रहे. पीएम मोदी की रैलियों ने जनता को भरोसा दिलाया की बीजेपी की सरकार दिल्ली को नया रंग रुप देगी. यमुना रिवर फ्रंट तक बनाने का ऐलान बीजेपी ने कर दिया. वेतन आयोग, 12 लाख तक के वेतन पर कोई आय कर नहीं जैसे ऐलान तो दिल्ली के मध्य वर्ग को भा गए. पीएम मोदी से लेकर तमाम बीजेपी नेता जनता के बीच घुम घुम कर भरोसा देने में कामयाब रहे कि महिलाओं के खाते पैसे भी बीजेपी देगी और सभी ऐसे कार्यक्रमों को जारी भी रखेगी. बजट पेश के होने के बाद संसद में बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात हुई तो वे जीत के लिए आश्वस्त दिख रहे थे. एक वरिष्ठ नेता ने तो कहा कि उस दिन की स्थिति में बीजेपी 42 सीटों तक पहुंच गई है.

जबरदस्त प्लानिंग से लगी BJP की नैया पार
जाहिर है एक जबरदस्त प्लानिंग और दिल्ली विधानसभा के चुनावों में बीजेपी इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी. बीजेपी आलाकमान ने केन्द्रीय मंत्रियों औऱ सांसदों के साथ साथ वरिष्ठ नेताओं को भी हर विधान सभा क्षेत्र मे जमीन पर काम करने की जिम्मेदारी सौंप दी. आलाकमान ने इन नेताओं को हर सीट पर पिछली बार की तुलना में वोट बढ़ाने का लक्ष्य भी निर्धारित कर दिया था. सूत्रों के मुताबिक आला नेताओं को लक्ष्य दिया गया कि हर सीट पर पिछली बार की तुलना में 20 हजार वोट अधिक लाने में जुट जाएं. इन नेताओं को यह लक्ष्य भी दिया गया था कि हर बूथ पर कम से कम पचास प्रतिशत वोट बीजेपी को मिले और वो ये भी सुनिश्चित करें कि हर बूथ पर पिछली बार की तुलना में अधिक मतदान हो. खास बात ये कि इन नेताओं को चुनाव प्रचार से दूर रह कर लोगों के बीच जा करते रहे.

बीजेपी के होम वर्क पूरा करने का आलम ये था कि आलाकमान ने दिल्ली विधानसभा के सभी बूथो का विश्लेषण कर क्षेत्रवार ब्यौरा तैयार किया गया. जिन मतदाताओं की जड़ें दूसरे शहरों में हैं, वहां के बीजेपी नेताओं को कहा गया कि वे इनसे संपर्क कर बीजेपी के लिए वोट मांगें. कोविड के समय दिल्ली से अपने गांवों और कस्बों में चले गए मतदाताओं से संपर्क कर उन्हे मतदान के लिए दिल्ली आने को कहा गया ताकि वो बीजेपी को वोट दें. इस मेहनत का नतीजा ही है कि अब दिल्ली की सत्ता पर बीजेपी 1998 की हार के बाद पहली बार सत्ता पर काबिज होने जा रही है. कौन बनेगा मुख्यमंत्री ये तो साफ नहीं लेकिन दावेदारों की कमी नहीं है दिल्ली बीजेपी मे. तय है आलाकमान एक ऐसा नाम आगे बढाएगा जो देश भर को संदेश देने का काम करेगा.

बीजेपी के लिए एक ये जीत एक अमृत बाण का काम तो करेगी ही लेकिन इसके विपक्ष की राजनीति औऱ पंजाब की राजनीति पर भी दूरगामी परिणाम निकलेंगे. कांग्रेस जो अब तक लगातार आम आदमी पार्टी की वजह से देश भर में झटके खा रही थी. वो अब इंडी गठबंधन के दबाव कम ही स्वीकार करेगी. अब केजरीवाल औऱ उनकी टीम पर चल रहे भ्रष्टाचार के मुकदमों को बीजेपी अपने वायदे के मुताबिक अंजाम पर पहुंचाती है तो फिर दिल्ली की राजनीति का गोलपोस्ट भी बदल जाएगा.

First Published :

February 08, 2025, 14:44 IST

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