Last Updated:January 19, 2025, 18:01 IST
चीन ने हाल ही में लिक्विड ऑक्सीजन कैरोसीन इंजन के एक दिन में तीन टेस्ट किए हैं. ये टेस्ट बताते हैं कि वह तेजी से अपने स्पेस प्रोग्राम में आगे बढ़ रहा है और धीरे धीरे 2030 तक चंद्रमा पर चीनियों के पहुंचाने के लक्ष्य...और पढ़ें
दुनिया में कहीं भी अगर जुगाड़ की बात की जाती है तो भारत का नाम सबसे आगे आता है. वहीं अगर दुनिया में कहीं सबसे सस्ती चीज़ बनाने की बात होती है तो वहां चीन सबसे आगे रहता है. चीन ने रिवर्स इंजीनियरिंग से अमेरिका जैसे देश तक को हैरान कर रखा है. हाल ही में चीन ने एक बार फिर बड़ा प्रयोग कर खास जुगाड़ हासिल की है जिससे उसने स्पेस लॉन्चिंग के खर्चों में कटौती करने की तैयारी कर ली है. इससे वह चंद्रमा पर जाने केलिए आने वाले खर्चों में भी कटौती में मदद मिल सकती है. दिलचस्प बात ये है कि चीन की तरह भारत भी इसी तकनीक को हासिल करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन चीन ने ना केवल इस तकनीक में सफल प्रयोग किए हैं, बल्कि वह इसमें आगे भी निकल गया है.
क्या है चीन का वह प्रयोग?
चाइना एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉरपोरेशन (CASC) की छठी अकादमी के संस्थान 165 ने एक ही दिन में लिक्विड ऑक्सीजन-केरोसिन इंजन के लगातार तीन परीक्षण पूरे कर एक बड़ी छलांग लगाई है. चीन अब अगली पीढ़ी के लॉन्च वाहनो के मुख्य प्रपल्शन इंजनों के लिए खुद को तैयार करने की दिशा में और आगे बढ़ गया है. और वह ज्यादा तेजी से अपने अभियान लॉन्च कर सकेगा.
इस तकनीक पर पहले भी कर चुका है चीन परीक्षण
इस तरह के इंजन संयोजन की मदद से चीन के रॉकेट स्पेस में 500 टन का भार ले जेने के सक्षम हो सकेंगे. साथ ही लॉक्सकैरोसीन इंजन का उपयोग चीन की उड़ान को काफी सस्ता बना देगा जिसके लिए वह मशहूर है. पिछले साल अप्रैल में ही चीन ने इसी तरल ऑक्सीजन कैरोसीन इंजन का उपयोग कर चार इंजनस वाला पैरेलल इग्नीशन टेस्ट में सफलता हासिल की थी.
स्पेस टेक्नोलॉजी में चीन हर मोर्चे पर तेजी से आगे बढ़ रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
कितने काम के होते हैं ये इंजन?
आमतौर पर सैटेलाइट या स्पेस यान ले जाने वाले रॉकेट के इंजनों में ना केवल ईंधन की जरूरत हौती है, बल्कि ईंधन जलता रहे इसके लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति की भी जरूरत होती है. ऐसा करने के लिए ऑक्सीजाइजर की जरूरत होती है और रॉकेट तकनीक में तरल ऑक्सीजन यह काम करती है. लेकिन इनका उपयोग केवल मध्यम क्रायोजेनिक इंजनों में ही हो पाता है. तरलऑक्सीजन केसाथ कैरोसीन के इस्तेमाल ना केवल लागत कम करता है, बल्कि रॉकेट को शक्तिशाली भी बनाता है. दोनों का उपयोग और भंडारण भी आसान है.
तकनीक होगी बेहतर
इस तरह के इंजनों में परम्परागत इंजानों की तुलना में कम इंजन वर्क स्पेस और कम भार दोनों हासिल किए जा सकते हैं. उम्मीद की जा रही है कि तकनीक को बेहतर बनाने की दिशा में लगातार काम करते हुए चीन अपने रॉकेटों को दिन ब दिन उन्नत बना रहा है. और इस तरह के सारे प्रयोग उसे भविष्य केस्पेस मिशन में काफी मदद करेंगे जिनमें साल 2030 तक चंद्रमा पर चीनियों को पहुंचाने का लक्ष्य भी शामिल है.
#OrbitInsights For the archetypal time, Institute 165 of the Sixth Academy of the state-owned abstraction elephantine China Aerospace Science and Technology Corporation (CASC), completed 3 consecutive tests of liquid oxygen-kerosene engines successful a azygous day. Such milestone marks a significant… pic.twitter.com/ZpvBHwkHuh
— Global Times (@globaltimesnews) January 19, 2025
चांद पर जाने की खास तैयारी
चीन अपने स्पेस मिशन के लिए खूब खर्च करता है, लेकिन उन सभी तरह के अभियानों की लागत कम की जा सके इसके लिए भी खासी कोशिश करता है. इसमें चीन के सरकारी शोध के अलावा वहां कि निजी कंपनियां भी खास तौर से प्रयास करती हैं. जहां तक चांद पर जाने का सवाल है, चीन भी स्पेसएक्स के स्टारशिप की तरह लॉन्गमार्च 9 यान तैयार कर रहा है. यह स्पेस में 1500 किलोग्राम का वजन ले जाने में सक्षम होगा.
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वहीं चीन ने चंद्रमा पर जाने के लिए अपने एस्ट्रोनॉट्स के लिए स्पेस सूट तैयार कर लिया है. जिस तरह से चीन ने चंद्रमा के पिछले हिस्से में जाने , वहां से नमूने लाने, और मंगल ग्रह पर अपने रोवर भेजने में सफलता हासिल की है, वह अभूतपूर्व है. ऐसे में एक्सपर्ट्स चीन के 2030 में ही चांद पर पहुंचने को लेकर संदेह करने में जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं.
Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
January 19, 2025, 18:01 IST