कुछ जीवों में खुद का दिमाग नहीं होता है फिर उनकी काबिलियतें हैरान करने वाली वाली होती हैं. स्टारफिश इसकी सबसे बढ़िया मिसाल है. पर क्या ऐसा सूक्ष्मजीवों के साथ होता है? खासतौर से अगर जीव कवक या फफूंद या फंगस हो तो? एक नई स्टडी ने तो यही संकेत दिया है कि कुछ फंगस अपने आसपास के माहौल को समझ सकते हैं और इतना ही नहीं वे उस पर प्रतिक्रिया भी दे सकते हैं.
फंगस और दिमाग?
हाल ही में किए गए इस अध्ययन से पता चला है कि फंगस फेनेरोचेट वेलुटिना ऐसा करके बुद्धि की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देता है. यह फंगस संसाधनों की विभिन्न स्थानिक व्यवस्थाओं के बीच अंतर कर सकता है. यानी वह चीजें एक दूसरे के मुकाबले कैसी रखी हैं इसका अंदाजा लगा कर उनमें अंतर कर सकता है. और वह इनके मुताबिक वह अपना बर्ताव भी तय कर सकता है.
पृथ्वी पर कितने अहम होते हैं फंगस
यह जाहिर करता है कि फंगस में अनुभूति भी होती है. यह खोज फंगस की उल्लेखनीय क्षमताओं पर प्रकाश डालती है. फंगस जीवों की एक बहुत बड़ी सीरीज का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें खमीर, मोल्ड और मशरूम शामिल हैं. वे पृथ्वी के इकोसिस्टम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो इकोसिस्टम में कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं.
साइंटिस्ट्स ने पाया है कि फफूंद अपने आसपास इस तरह से फैलता है जैसे कि उसमें दिमाग हो. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
इंसान की तरह काबिलियत
जापान के तोहोकू विश्वविद्यालय के सूक्ष्मजीव पारिस्थितिकीविद यू फुकासावा कहते हैं, “आप यह जानकर हैरान होंगे कि कवक कितनी क्षमता रखते हैं.” “उनके पास याद रखने की काबिलियत होती है, वे सीखते हैं, और वे फैसला सकते हैं. साफ तौर पर कहें तो, इंसानों की तुलना में उनके समस्याओं को हल करने के तरीके में अंतर चकित करने वाला है.”
खास तरह का नेटवर्क बनाता सा लगता है
समशीतोष्ण जंगलों में लकड़ी के आणविक हिस्सों को तोड़ने में फ़ैनरोचैटे वेलुटिना की प्रमुख भूमिका होती है. यह लकड़ी से उगता है, और बसने के लिए दूसरी लकड़ी की तलाश में निकल जाता है. सतह पर सफेद या नारंगी मखमल जैसा दिखने वाला यह फंगस रेशेदार धागों के एक नेटवर्क से बना होता है जिसे माइसीलियम के रूप में जाना जाता है.
एक खास प्रयोग और अवलोकन
फुकुसावा और उनके सहयोगियों ने लकड़ी के छोटे-छोटे ब्लॉकों का इस्तेमाल करके अपना प्रयोग किया, जिनमें पहले से ही फेनेरोचेट वेलुटिना मौजूद था. उन्होंने इनमें से नौ ब्लॉकों को दो अलग-अलग व्यवस्थाओं में रखा- एक वृत्त या एक क्रॉस. फिर समय के साथ कवक माइसीलियम कैसे बदल गया. उन्होंने देखा और दस्तावेज किया.
सोच समझ कर फैलते दिखते हैं
शोधकर्ताओं ने प्रस्ताव दिया कि यदि कवक अपने आस-पास की दुनिया को महसूस करने और उसके अनुसार निर्णय लेने के काबिल नहीं है, तो उसे अंधाधुंध तरीके से फैल जाना चाहिए. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. इसके बजाय, माइसीलियम एक केंद्रीय बिंदु से फैल गया जब तक कि यह पड़ोसी ब्लॉकों से माइसीलियम के अन्य टेंड्रिल्स से नहीं मिला. ये टेंड्रिल्स आपस में जुड़ गए, कनेक्शन बनाते और मजबूत करते गए. फिर अतिरिक्त टेंड्रिल्स को वापस ले लिया गया, और माइसीलियम एक इकाई के रूप में व्यवहार करना शुरू कर दिया, जिससे सफल चारागाह के नतीजे के तौर पर सबसे अधिक दिशाओं में किस्में भेजी गईं.
यह भी पढ़ें: Explainer: किसी भारतीय साइंटिस्ट को क्यों नहीं मिला नोबेल पुरस्कार, कोई साजिश है या कुछ और ही है सच?
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह इस बात का सबूत है कि कवक अपने आस-पास के लेआउट को पहचानता है और उस वातावरण में अपने गठन को अनुकूलित करने के लिए अपनी गतिविधि को समन्वित करने के लिए नेटवर्क में अपने लेआउट का संचार करता है. यह शोध फंगल इकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है.
Tags: Bizarre news, Science, Science facts, Science news, Weird news
FIRST PUBLISHED :
October 21, 2024, 16:16 IST