Explainer: गाजा को लेकर ट्रंप की योजना को अरब देशों ने किया खारिज, जानिए इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष का क्‍या है इतिहास

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पसंद नहीं आ रहा ट्रंप का प्रस्‍ताव

इन हालात के बाद दुनिया के तमाम देशों के दबाव में इज़रायल और हमास के बीच युद्धविराम की कोशिशें हुईं जो सिरे चढ़ीं और 19 जनवरी को एक युद्धविराम हुआ जिसके तहत कुछ क़ैदियों की अदला बदली हुई. इस युद्धविराम को आगे बढ़ाने के लिए बातचीत जारी है, लेकिन इस बीच वॉशिंगटन के दौरे पर गए इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू से मुलाक़ात के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गाजा के पुनर्निर्माण के नाम पर एक ऐसा विचार सामने रख दिया जो फिलिस्तीनी लोगों ही नहीं, आसपास के किसी देश को भी रास नहीं आ रहा. ट्रंप ने कहा अमेरिका गाजा को अपने हाथ में लेगा और फिलिस्तीनियों को अन्यत्र स्थापित कर असाधारण विकास की ऐसी योजना पर काम करेगा जो गाजा के इस पूरे इलाके को the Riviera of the Middle East बना देगा यानी पश्चिम एशिया का ऐसा रिज़ॉर्ट जैसा क्षेत्र जहां हर कोई आना चाहे. 

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ट्रंप के इस बयान ने जानकारों को हैरान कर दिया. हर किसी ने यही सवाल किया कि जिस ज़मीन को लेकर बीते सवा साल में 50 हज़ार से ज़्यादा फिलिस्तीनियों ने जान गंवा दी है,  उसे छोड़ने को वो कैसे राज़ी हो सकते हैं. भले ही वजह नए सिरे से पुनर्निर्माण क्यों न हो. उधर, नेतन्‍याहू ने ट्रंप के प्रस्ताव को शानदार बताया. फॉक्स न्यूज़ को बुधवार को एक इंटरव्यू के दौरान नेतन्‍याहू ने कहा कि ये पहला अच्छा विचार है जो मैंने सुना है. नेतन्‍याहू कह रहे हैं फिलिस्तीन के लोग पहले चले जाएं और बाद में लौट सकते हैं, लेकिन कुछ समय के लिए ही सही जाएं कहां? ट्रंप और नेतन्‍याहू को लगता है कि फिलिस्तीन के पड़ोसी देश मिस्र और जॉर्डन उन्हें अपने यहां जगह दे दें, लेकिन इन दोनों ही देशों ने इस विचार को खारिज कर दिया है. रविवार को काहिरा में छह अरब देशों के मंत्रियों की बैठक में ट्रंप का प्रस्ताव खारिज कर दिया गया. 

किसने क्‍या कहा?

  1. मिस्र का कहना है कि उसके पास फिलिस्तीनियों को उनकी ज़मीन से विस्थापित किए बिना पुनर्निर्माण की स्पष्ट योजना है. मिस्र के राष्ट्रपति अब्दल फतेह अल सीसी ने कहा कि ट्रंप की योजना अंतरराष्ट्रीय क़ानून का एक गंभीर उल्लंघन होगी. 
  2. दूसरे पड़ोसी देश जॉर्डन ने कहा कि वो फिलिस्तीनियों के अपने देश में ही रहने के हक़ में है. फिलिस्तीनी मुद्दे का हल फिलिस्तीन में ही है, जॉर्डन, जॉर्डन के लोगों के लिए है और फिलिस्तीन, फिलिस्तीन के लोगों के लिए. जॉर्डन इस इलाके में शांति के लिए अमेरिकी प्रशासन के साथ काम करने की ओर देख रहा है. 
  3. अमेरिका के एक और मित्र अरब देश सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने कहा कि फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना एक ऐसी बात है जिसे बदला नहीं जा सकता, जिससे हटा नहीं जा सकता. 
  4. जिस हमास के ख़िलाफ़ इज़रायल लगातार युद्ध छेड़े हुए है, उसने तो ट्रंप के विचार को अस्थिरता पैदा करने का ज़रिया बताया और कहा कि गाजा के लोग कभी इस विस्थापन की इजाज़त नहीं देंगे. 
  5. वेस्ट बैंक की सत्ता पर काबिज़ फिलिस्तीनी अथॉरिटी के नेता महमूद अब्बास ने भी गाजा के लोगों को विस्थापित करने की किसी भी परियोजना की निंदा की और कहा कि गाजा फिलिस्तीन राज्य का एक अखंड हिस्सा है. 
  6. डोनाल्‍ड ट्रंप के विचार को संयुक्त राष्ट्र ने भी कोई तवज्जो नहीं दी है बल्कि इसकी आलोचना ही की है. संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि गाजा से लोगों का जबरन विस्थापन जातीय सफ़ाए के बराबर होगा. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीनियों के अधिकारों से जुड़ी कमेटी में कहा कि ये फिलिस्तीनी लोगों के इस मूल अधिकार को छीना नहीं जा सकता कि वो अपनी ही ज़मीन पर इंसानों की तरह रह सकें. 
  7.  चीन ने फिलिस्तीनियों को गाजा से निकालने के ट्रंप के विचार का विरोध किया है. चीन के विदेश मंत्री के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि बीजिंग फिलिस्तीन के लोगों के वैध राष्ट्रीय अधिकारों का समर्थन करता है.

अमेरिकी विदेश मंत्री ने बताया उदार पहलू

ट्रंप का यह बयान इजरायल फिलिस्तीन संघर्ष में दशकों से चली आ रही अमेरिकी नीति को पूरी तरह पलटता दिखा. ट्रंप के बयान पर आई प्रतिक्रियाओं के बाद उनके कुछ बड़े सहयोगी उनका आशय समझाते दिखे या कहें कि कुछ पीछे हटते दिखे. बुधवार को अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा कि इस विचार का मक़सद किसी के ख़िलाफ़ जाना नहीं हैं बल्कि ये गाजा को नए सिरे से बनाना और उसकी ज़िम्मेदारी लेना है. ये एक उदार पहल है. उन्होंने कहा कि पुनर्निर्माण और मलबा हटाने के लिए फिलिस्तीनियों को अस्थायी तौर पर ही गाजा छोड़ना होगा.

इन तमाम विरोधों के बावजूद लगता है कि इज़रायल ट्रंप की योजना पर आगे बढ़ने जा रहा है. इज़रायल के रक्षा मंत्री इजरायल काट्ज ने अपनी सेना को आदेश दिया है कि वो गाजा पट्टी के उन लोगों के जाने की एक योजना तैयार करें जो अपनी मर्ज़ी से जाना चाहते हैं. काट्ज ने कहा कि गाजा के लोगों को आने जाने और प्रवास की आज़ादी होनी चाहिए, लेकिन इज़रायल शायद फिलिस्तीनी लोगों के अपनी ज़मीन को लेकर प्यार को कम आंक रहा है. गाजा पट्टी के लोग अधिकतर अपनी ज़मीन से विस्थापन के डोनाल्ड ट्रंप के विचार को पूरी तरह खारिज कर रहे हैं.  उनका कहना है कि वो वहां से नहीं हटेंगे, जहां उनके घरों को बर्बाद किया गया है. उन्होंने कहा कि उनके पास गाजा पट्टी के अलावा जाने को कोई जगह नहीं और संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अलग अलग प्रस्तावों के माध्यम इसे ही फिलिस्तीनियों का इलाका माना है. साफ़ है फिलिस्तीन के लोग अपनी ज़मीन को किसी हाल में छोड़ने को तैयार नहीं हैं. 

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गाजा की 70% इमारतें बर्बाद

उपग्रह के आंकड़ों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि बीते 15 महीने की इज़रायल की बमबारी में गाजा की क़रीब 70% इमारतें बर्बाद हो चुकी हैं, रहने लायक नहीं रह गई हैं. इस बमबारी में 2 लाख 45 हज़ार से ज़्यादा घर बर्बाद हो गए हैं. सबसे ज़्यादा नुक़सान गाजा के उत्तरी इलाके में हुआ है जिसे इज़रायल की सेना ने अक्टूबर 2023 के बाद से ही खाली कराकर सील कर दिया था. वर्ल्ड बैंक ने बमबारी से 18.5 अरब डॉलर के नुक़सान का अनुमान लगाया है. 

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इस हालात में फिलिस्तीन का हर व्यक्ति अपने घर से बाहर है, अपने ही इलाके में शरणार्थी हो चुका है. गाजा की 23 लाख की आबादी में से 90% लोग विस्थापित हैं. वो किस हाल में रह रहे हैं, ये तस्वीरें बता रही हैं. ख़ान यूनुस के इलाके में हज़ारों लोग अस्थायी टैंटों में रहने को मजबूर हैं. तेज़ हवाएं और बारिश उनके इन तंबुओं को उखाड़ देती हैं, नुक़सान पहुंचाती हैं, लेकिन लोग फिर जैसे तैसे मरम्मत कर उन्‍हीं में रहते हैं. कई बार लोग रात-रात भर सो नहीं पाते हैं. बीती रात भी यहां भारी बारिश हुई. ठंड बहुत ज़्यादा बढ़ गई.  बच्चे डर के मारे चिल्लाने लगे. लोगों को समझ नहीं आया कि क्या करें. युद्धविराम के कारण कुछ दिन से इज़रायल की बमबारी बंद है, लेकिन मौसम की मार बनी हुई है. 

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नहीं चाहते 1948 के नकबा जैसे हालात 

इसके बावजूद कोई गाजा छोड़कर जाने को तैयार नहीं. लोगों का कहना है कि वो नहीं चाहते कि फिर से 1948 के नकबा जैसे हालात हों.  अरबी में नकबा का अर्थ है catastrophe यानी तबाही. गाजा को लेकर ट्रंप के एलान के बाद ये शब्द बार-बार गाजा के लोगों की ज़ुबान से सुनाई दे रहा है.  

यह समझने के लिए हमें 77 साल पीछे 1948 में चलना होगा, जब अरब-इज़रायल युद्ध के दौरान भारी तादाद में फिलिस्तीनी लोगों को अपनी ही ज़मीन से बेदखल होना पड़ा.  नकबा से पहले फिलिस्तीन एक बहुजातीय और बहु सांस्कृतिक इलाका हुआ करता था, लेकिन तीस के दशक से जब फिलिस्तीनी इलाके में दुनिया भर से यहूदियों का आना शुरू हुआ तो अरबों और यहूदियों के बीच संघर्ष बढ़ने लगे. यूरोप में यहूदियों का क़त्लेआम हुआ जिससे ज़ायनिस्ट आंदोलन तेज़ हुआ. ज़ायनिस्ट यहूदियों का वो आंदोलन था जिसके तहत वो एक यहूदी देश बनाने के लक्ष्य के साथ फिलिस्तीन में पहुंचने लगे. यहूदी इसे अपनी प्राचीन भूमि मानते हैं यानी the Land of Israel. 

नवंबर 1947 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पास किया जिससे फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांट दिया गया. एक यहूदी और दूसरा अरब. इसके अलावा यरूशलम को संयुक्त राष्ट्र प्रशासन के तहत रख दिया गया, लेकिन अरब देशों ने इस योजना को खारिज कर दिया. कहा कि यह अन्याय है और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का उल्लंघन करता है, लेकिन उधर यहूदी हथियारबंद संगठनों ने फिलिस्तीनी गांवों पर हमले शुरू कर दिए जिससे हज़ारों फिलिस्तीनियों को घर छोड़कर भागना पड़ा. 

यह इलाका पहले ब्रिटेन का उपनिवेश था. 1948 में ब्रिटेन की फौजों के जाने और इज़रायल की स्वतंत्रता के एलान के बाद हालात युद्ध के हो गए. इज़रायली सेनाओं ने ज़ोरदार हमले शुरूर कर दिए. नतीजा ये हुआ कि फ़िलिस्तीन की आधी से ज़्यादा आबादी को अपनी सुरक्षा के लिए स्थायी तौर पर विस्थापित होना पड़ा. दिसंबर 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने शरणार्थियों के पास आने, उनकी संपत्ति को लौटाने और मुआवज़ा देने का प्रस्ताव पास किया, लेकिन 75 साल गुज़र जाने के बावजूद फिलिस्तीनियों को वो हक़ आज तक नहीं मिल पाया है. फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी UNRWA के मुताबिक तब से ही 50 लाख फिलिस्तीनी पश्चिम एशिया के अलग अलग इलाकों में बिखरे हुए हैं और अपने घर लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं. इज़रायल द्वारा सेटलमेंट बनाए जाने, जबरन निकाले जाने, फिलिस्तीनियों की जम़ीन पर कब्ज़े और उनके घरों को ढहाए जाने से उनका लौटना संभव नहीं हो पाया है.   

फिलिस्तीनियों के साथ इसी अन्याय और तबाही की याद में हर साल नकबा यानी उस तबाही की बरसी मनाई जाती है. यह शब्द फिलिस्तीनी लोगों के ज़ेहन में इतना गहरा गड़ा हुआ है कि गाजा से बाहर जाने की बात से ही वो गुस्से से भर उठते हैं.

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समझिए इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष 

क़रीब एक सदी पूर्व पहले विश्व युद्ध के दौरान जब ब्रिटेन ने यहूदी लोगों के लिए फिलिस्तीन में एक देश बनाने का फ़ैसला किया तो इसे बालफोर डिक्लेरेशन कहा गया. ब्रिटेन की सेनाओं ने 31 अक्टूबर 1917 के अंत में इस इलाके पर ऑटोमन साम्राज्य का 1400 साल का शासन ख़त्म कर अपना कब्ज़ा जमा लिया. इस समय तक इस इलाके में यहूदियों की तादाद कुल महज़ 6% थी. इसके बाद नाज़ी अत्याचार से डरकर दुनिया भर से यहूदी फिलिस्तीन आने लगे. 1947 तक इस इलाके में यहूदियों की तादाद 33% हो गई. 

अपनी ज़मीन पर यहूदियों की बढ़ती तादाद के चलते 1936 से 1939 तक फिलिस्तीनियों ने विद्रोह भी किए. उधर यहूदी संस्थाओं ने फिलिस्तीन में अपनी प्राचीन भूमि को पाने के लिए संघर्ष जारी रखा. 

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हिंसा के इस दौर के बीच 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव से फिलिस्तीन को अरब और यहूदी देशों में बांटने का फ़ैसला किया. 55% ज़मीन यहूदियों को दी गई. अरब लोगों को 45% ज़मीन मिली. जेरूसलम के प्रशासन को संयुक्त राष्ट्र ने अपने तहत रखा. 

1948 में एक अलग देश इज़रायल की स्थापना हुई. यहूदी देश बनाने के लिए लड़ रहे हथियारबंद लड़ाकों ने क़रीब साढ़े सात लाख फिलिस्तीनियों को उनके घरों, इलाकों से विस्थापित किया. इसी को नक़बा यानी तबाही कहा गया. ऐतिहासिक फिलिस्तीन के 78% भाग पर यहूदियों का कब्ज़ा हो गया. बाकी 22% को वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में बांट दिया गया. इस पूरे दौर में अरब देशों के साथ इज़रायल की ठनी रही.

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इससे निपटने के लिए जून 1967 में हुए छह दिन के अरब इज़रायल युद्ध में बड़ी ही तेज़ी से कार्रवाई करते हुए इज़रायल ने पड़ोसी देश मिस्र के सिनाई पेनिनसुला और सीरिया के गोलान हाइट्स पर कब्ज़ा कर लिया. इसके अलावा पूरे फिलिस्तीन पर कब्ज़ा जमा लिया. क़रीब 3 लाख फिलिस्तीनी घर से बेघर कर दिए गए. 

1993 में फिलिस्तीनी नेता यासर अराफ़ात और इज़रायल के प्रधानमंत्री यित्ज़ाक राबिन के बीच ओस्लो समझौता हुआ जिसके तहत पांच साल में शांति स्थापित करने के लक्ष्य रखा गया. पहली बार दोनों पक्षों ने एक दूसरे को पहचान दी. 1995 में हुए दूसरे समझौते में वेस्ट बैंक को तीन हिस्सों में बांट दिया गया. फिलिस्तीनी अथॉरिटी को सिर्फ़ 18% इलाके में शासन का प्रस्ताव दिया गया क्योंकि पूरे वेस्ट बैंक पर इज़रायल का ही कब्ज़ा था. 

हालांकि ओस्लो समझौता धीरे धीरे टूट गया क्योंकि वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी ज़मीन पर इज़रायल अपने सेटलमेंट बना दिए. जिनका फिलिस्तीनी अथॉरिटी विरोध करती रही लेकिन वो आज भी बने हुए हैं. उधर गाजा का क्या हाल हुआ और क्यों हुआ ये आप बीते पंद्रह महीने से देख ही रहे हैं. इस बीच डोनाल्‍ड ट्रंप की योजना ने गाजा में नए सिरे से नाराजगी पैदा कर दी है. ऐसे में देखते हैं कि आने वाले दिनों में आखिर क्‍या होता है. 

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