Last Updated:February 01, 2025, 08:01 IST
स्पेस में लंबे अभियानों से एस्ट्रोनॉट्स की आंखें कमजोर हो जाती हैं. यूनिवर्सिटी डि मोन्ट्रियाल की रिसर्च में पाया गया कि छह महीने स्पेस में रहने से आंखों का ठोसपन 33 फीसदी कम हो जाता है.
स्पेस में लंबी दूरी के अभियानों की तैयारियां चल रही हैं. लेकिन इसके सभी संभावित खतरों पर रिसर्च जारी हैं. इनमें एस्ट्रोनॉट्स की सेहत पर होने वाले प्रभावों पर लंबे समय से अध्ययन चल रहे हैं. देखा गया है कि लंबे समय तक स्पेस में रहने से शरीर पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों की खूब चर्चा भी रही है. चाहे हड्डियों का कमजोर होना हो, प्रतिरोध तंत्र कमजोर होने, कैंसर का जोखिम बढ़ने जैसी कई समस्याएं आती हैं लेकिन हाल ही में हुए अध्ययन ने एक नई समस्या पर ध्यान दिलाया है. शोध के मुताबिक लंबे समय तक स्पेस में रहने से एस्ट्रोनॉट्स की आंखें ही नर्म हो जाती हैं जो कि मंगल ग्रह जैसे लंबे अभियानों के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
एक खास तरह की कंडीशन
यूनिवर्सिटी डि मोन्ट्रियाल की इस रिसर्च में पाया गया है कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में छह महीने के समय गुजारने के बाद एस्ट्रोनॉट्स की आंखें उल्लेखनीय रूप से कमजोर हो जाती हैं. अध्ययन में पाया गया है कि स्पेस में यात्रा करने से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के 70 फीसदी एस्ट्रोनॉट्स ने एक खास न्यूरो ऑक्यूलर सिंड्रोम (SANS) जैसी कंडीशन का अनुभव किया है.
आंखों में आए बदलाव
शोधकर्ताओं ने खास तरह के उन यांत्रिक बदलावों की पहचान की जिनकी वजह से आंखों का यह हाल होता है. यूनिवर्सिटी की माइसोन्योवे रोसोमोंट हॉस्पिटल की सेंटियागो कोस्टैनटीनो ने बताया कि भारहीनता शरीर में खून के बहाव को बदल देता है. जिससे सिर में खून का बहाव बढ़ जाता है, लेकिन आंख की नसों में धीमा हो जाता है.
स्पेस में भारहीनता आंखों पर बहुत ही विपरीत प्रभाव डालती हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
किसका किया अध्ययन
जर्नल ऑफ इंजीनियरिंग इन मेडिसिन एंड बायोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 13 एस्ट्रोनॉट्स के आंकड़ों का अध्ययन किया जिन्होंने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में 157 से 186 दिन गुजारे थे. इनमें अमेरिका ,यूरोपीय, जापानी और कनाडा के एस्ट्रोनॉट्स शामिल थे जिनकी औसत आयु 48 साल की थी. इनमें से 8 ने पहली बार अंतरिक्ष यात्रा की थी, जबकि 31 फीसदी महिलाएं थीं.
मिले नाटकीय नतीजे
शोधकर्ताओं ने उन्नत इमेजिंग तकनीकों का उपयोग कर एस्ट्रोनॉट्स की आंखों के तीन विशेषताओं का मिशन से पहले और बाद की स्थिति का पता लगाया. नतीजे नाटकीय थे. आंखों कै रिजिडिटी यानी ठोसपन 33 फीसदी कम हो गई थी. अंदरूनी आंख का दबाव 11 फीसदी कम हो गया था और आंखों से गुजरने वाले खून के बहाव की पल्स 25 फीसदी धीमी हो गई थी.
मंगल ग्रह पर अभियान अभी कम से कम चार साल का होगा जो आंखों के लिए बहुत ही नुकसान दायी हो सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
कई तरह के लक्षण
इन बदलावों की वजह से कई तरह के लक्षण दिखाई दिए जिनमें आखों के आकार में बदलाव, देखने के लिए ध्यान केंद्र में बदलाव, और कुछ मामलों में तो ऑप्टिक तंत्रिका और रेटीनाके मोड़ों तक में सूजन पाई गई थी. पांच एस्ट्रोनॉट्स में असामान्य रूप से रेटिना को पोषण देने वाले आंख की मांसपेशी की परत, जिसे कोरॉइड कहते हैं, असामान्य रूप से मोटी पाई गई.
भारहीनता के नतीजे
शोधकर्ताओं को लगता है कि भारहीनता के दौरान आंख की खून के नसों में फैलाव की वजह से आंख की बाहरी सफेद परत (स्क्लेरा) में खिंचाव लाने का कारण बना होगा. और इसी से आंख के यांत्रिक गुणों में लंबे समय तक बदलाव आ गए होंगे. उनका यह भी कहना था कि भारहीनता की वजह से खून के भाहव में वाटर हैमर प्रभाव बन गया होगा जिसमें दबाव में आए अचानक बदलाव की वजह से आंख के ऊतकों को झटका लगा होगा. इसके नतीजे में आंख में बदलाव आ गए होंगे.
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अधिकांश मामलों में पृथ्वी पर लौटने के बाद एस्ट्रोनॉट्स की आंखों में सुधार दिखाई देने लगा. लेकिन यह लंबे दूसरी के स्पेस मिशन जैसे कि मंगल अभियानों के लिए एक खतरे का संकेत हो सकते हैं. अभी इतने समय की अंतरिक्ष यात्राओं के प्रभावों की जानकारी नहीं है, लेकिन ना तो हमारे पास ऐसे प्रभावों की रोकथाम के ना ही उपचार के उपाय हैं. लेकिन शोधकर्ता उन जोखिमों की पहचान करने में जरूर सफल रहे हैं, जो लंबे अभियानों में आंखों के लिए खतरा बन सकते हैं.
Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
February 01, 2025, 08:01 IST