ग्वालियर के स्थानीय लोगों में महालक्ष्मी व्रत के दिन की जाती है इनकी पूजा
ग्वालियर: स्थानीय लोगों द्वारा महालक्ष्मी व्रत के दिन पूजा की जाती है. स्थानीय लोग व्रत के दूसरे दिन मिट्टी से मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करते हैं. प्राचीन संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने स्टील की मूर्तियां लगाई हैं. स्थानीय लोग लगातार इनका दर्शन करते हैं और समर्थन करते हैं. जानिए, इसके पीछे की कथा क्या है?
भगवान गणेश और पार्वती का अनूठा स्वरूप
ग्वालियर में चौपाटी के सामने स्टील की एक प्रतिमा बनाकर रखी गई है, जिसमें एक हाथी जैसी आकृति पर भगवान गणेश और मां पार्वती विराजमान हैं. इनकी पूजा दूसरों के व्रत में की जाती है. स्थानीय निवासी छाऊ लाल यादव ने लोकल 18 से बात करते हुए कहा कि महालक्ष्मी व्रत के दिन मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसका पूजन किया जाता है और बाद में उसे विसर्जित कर दिया जाता है. स्थानीय लोगों में माना जाता है कि महालक्ष्मी व्रत के दिन इनकी पूजा और कथा सुनने पर घर में सुख-समृद्धि आती है, और महिलाओं के वैवाहिक जीवन में पति की उम्र लंबी होती है.
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पांडवों से जुड़ी महालक्ष्मी व्रत की कथा
इस व्रत की कथा के अनुसार, एक बार जब पांडव और कौरव महालक्ष्मी देवी का अनुष्ठान कर रहे थे, तब पूजा के समय कौरवों ने मिलकर मिट्टी की बहुत अच्छी हाथी की मूर्ति बनाई. इसके बाद उन्होंने पांडवों से कहा, “हम तो 100 भाई हैं, परंतु पांडव तो मात्र पांच हैं, आखिर में लोग कैसे इतनी अच्छी मूर्ति बना पाएंगे?” इसके जवाब में भीम स्वर्ग जाकर ऐरावत हाथी को ले आए थे. फिर उसके बाद पांडवों पर मां पार्वती और भगवान गणेश ने कृपा करी थी. तभी से इस व्रत को माना जाता है. माता कुंती ने इस व्रत को किया था, और तब से लेकर आज तक स्थानीय लोग यह पूजा हर साल करते हैं. कलाकारों एवं प्रशासन के द्वारा उनकी मूर्ति बनाकर लगाई गई है, जिसकी स्थानीय लोग सराहना करते हैं.
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FIRST PUBLISHED :
October 3, 2024, 14:26 IST