Last Updated:January 23, 2025, 10:33 IST
अघोर का अर्थ होता है- जो घोर न हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव या घृणा की भावना न हो. अघोरी श्मशान में मुख्य रूप से तीन साधना शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना करते हैं. ज्योतिषाचार्य डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी स...और पढ़ें
प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है, जिसमें देशभर से साधु, संन्यासी, संत, महात्मा, अघोरी, नागा आदि आए हुए हैं. इनमें अघोरियों का जीवन लोगों के लिए रहस्यमयी होता है. अघोर का अर्थ होता है- जो घोर न हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव या घृणा की भावना न हो. अघोर पंथ साधना की एक रहस्यमयी शाखा है, जिसमें अघोरी तंत्र साधना करते हैं, वे अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं, श्मशान में क्रियाएं करते हैं, नरमुंड की माला भी पहनते हैं. अघोरी श्मशान में मुख्य रूप से तीन साधना शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना करते हैं. उज्जैन के महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी से जानते हैं कि अघोरी किस देवता की पूजा करते हैं? उनकी उत्पत्ति कैसे हुई थी?
किस देवता की पूजा करते हैं अघोरी?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अघोर पंथ के अनुयायी भगवान शिव को अपना इष्ट मानते हैं. लेकिन त्रिदेवों के आशीर्वाद से उत्पन्न हुए भगवान दत्तात्रेय को अघोर शास्त्र का गुरु माना जाता है. इनके अलावा अघोरी गुरु संत कीनाराम की भी पूजा करते हैं.
मान्यताओं के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय की कृपा संत कीनाराम को प्राप्त हुई थी. शिव की नगरी काशी यानि आज के वाराणसी में कीना राम का आश्रम है, जहां पर उन्होंने समाधि ली थी. यह स्थान अघोरियों के लिए श्रद्धा का केंद्र है. गुजरात में जूनागढ़ का गिरनार पर्वत भी अघोरियों के लिए पूज्यनीय स्थल है, वहां पर भगवान दत्तात्रेय का तपस्या स्थल माना जाता है.
कौन हैं भगवान दत्तात्रेय?
भगवान दत्तात्रेय की माता का नाम देवी अनुसूया और पिता ऋषि अत्रि हैं. त्रिदेवों भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी के वरदान से देवी अनुसूया को भगवान दत्तात्रेय पुत्र स्वरूप में प्राप्त हुए. भगवान दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि को हुआ था, इस वजह से हर साल मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती मनाते हैं. भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और शिव का अंश माना जाता है. वे 3 मुख्य और 6 हाथ वाले देवता हैं.
भगवान दत्तात्रेय की उत्पत्ति
पौराणिक कथा के अनुसार, देवी अनुसूया अपने पतिव्रता धर्म के लिए जानी जाती हैं. इस बात से तीन देवियों माता पार्वती, देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती को जलन होने लगी. तब उन तीनों ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी से देवी अनुसूया का पतिव्रता धर्म तोड़ने को कहा. त्रिदेव भिक्षुक का स्वरूप धारण करके अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचे.
देवी अनुसूया ने उन तीनों को भिक्षा दिया, लेकिन उन्होंने लेने से इनकार कर दिया और कहा कि वे भोजन करना चाहते हैं, लेकिन भोजन बिना वस्त्र पहने परोसना होगा. देवी अनुसूया ने भोजन बनाकर तीनों भिक्षुओं को आसन पर बैठाया और अपने तपोबल से तीनों की वास्तविकता पहचान गईं. उन्होंने अपने तपोबल से त्रिदेवों को बाल स्वरूप में कर दिया और फिर उनको उनकी शर्त के अनुसार भोजन कराया.
उसके बाद देवी अनुसूया त्रिदेवों का अपने बच्चे की तरह पालन पोषण करने लगीं. त्रिदेव जब लौटकर वापस अपने लोक नहीं गए तो देवियों को उनकी चिंता हुई. तीनों देवियां देवी अनुसूया के पास गईं और गलती के लिए क्षमा मांगी. उन्होंने देवी अनुसूया से त्रिदेव को वापस लौटाने को कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया.
इस पर तीनों देवियों ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बंश से भगवान दत्तात्रेय को उत्पन्न किया. देवी अनुसूया भगवान दत्तात्रेय को पुत्र रूप में पाकर प्रसन्न हो गईं. उन्होंने अपने तपोबल से बालक बने तीनों देवों को पहले के स्वरूप में कर दिया. इस तरह से भगवान दत्तात्रेय की उत्पत्ति हुई.
First Published :
January 23, 2025, 10:33 IST