अमित शाह का फॉर्मूला जिसने किया कमाल और 27 साल का लंबा वनवास खत्‍म

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Agency:भाषा

Last Updated:February 08, 2025, 19:04 IST

Delhi Chunav Result: दिल्‍ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ तकरीबन 27 साल के सत्‍ता वनवास को खत्‍म किया. इस जीत ने एक बार फिर से बीजेपी के कुशल चुनाव प्रबंधन और अनुशासन को देश के सामने रखा है.

अमित शाह का फॉर्मूला जिसने किया कमाल और 27 साल का लंबा वनवास खत्‍म

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव में अमित शाह की बड़ी भूमिका रही है.

हाइलाइट्स

  • अमित शाह दिल्‍ली चुनाव में केंद्रीय भूमिका में थे
  • अमित शाह हर दिन हर विधानसभा की रिपोर्ट लेते थे
  • RSS के स्‍वयंसेवकों की भूमिका भी महत्‍वपूर्ण रही

नई दिल्ली. आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल की ईमानदार और स्वच्छ राजनीति के पैरोकार वाली छवि पर प्रहार, चुनाव लड़ने की पारंपरिक शैली की जगह लोगों के मुद्दों को प्रमुखता और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रबंधन ने राजधानी दिल्ली में 27 साल बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सत्ता में वापसी में प्रमुख भूमिका निभाई. इनके अलावा जमीनी स्तर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की बूथ स्तरीय लगातार छोटी-छोटी बैठकों ने भी भाजपा की जीत की बुनियाद गढ़ने में योगदान दिया.

अन्ना हजारे के आंदोलन की बुनियाद पर अपनी राजनीति को परवान चढ़ाने वाले केजरीवाल बहुत तेजी से राष्ट्रीय फलक पर उभरे और अब वह विपक्षी राजनीति की धुरी बनने का प्रयास कर रहे थे. जानकारों का कहना है कि केजरीवाल के राजनीतिक उभार के पीछे उनकी ईमानदार, साफ-सुथरी और भ्रष्टाचार की सख्त मुखालफत वाली छवि एक बड़ा कारण थी और भाजपा ने इस चुनाव में पार्टी और सरकार के स्तर से उनकी इस छवि को खंडित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इन्हीं प्रयासों के तहत भाजपा ने शराब घोटाले से लेकर शीशमहल बनाने जैसे आरोप लगाकर केजरीवाल की कट्टर ईमानदार वाली छवि पर प्रहार किया और इसे जनता के बीच चर्चा का मुद्दा बना दिया जो कारगर भी रहा.

अमित शाह का कुशल प्रबंधन
प्रचार अभियानों के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा के अन्य नेता जहां केजरीवाल को दिल्ली के लिए ‘आप-दा’ बताकर ताबड़तोड़ हमले कर रहे थे, वहीं अमित शाह जमीनी स्तर पर प्रबंधन की रणनीति पर काम कर रहे थे. भाजपा के एक सूत्र ने बताया कि अमित शाह ने राज्यों के चुनावों का प्रभार संभालने वाले केंद्रीय मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को दो-दो विधानसभा सीटों पर जीत का जिम्मा सौंपा और प्रतिदिन वह हर विधानसभा क्षेत्र की रिपोर्ट लेते रहे. उन्होंने बताया कि केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को मालवीय नगर और पीयूष गोयल को दिल्ली कैंट सहित दो-दो विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवारों की जीत का जिम्मा सौंपा गया था. वहीं, भूपेंद्र यादव को दक्षिणी दिल्ली की दो सीट का प्रभार दिया गया था.

प्रचार के तरीकों में भी बदलाव
भाजपा के एक नेता ने बताया कि पार्टी ने चुनिंदा बड़ी जनसभाओं को छोड़ छोटी-छोटी सभाओं और बैठकों पर ध्यान केंद्रित किया और उसके नेताओं ने घर-घर जाकर मतदाताओं को केंद्र की योजनाओं के फायदे गिनवाए. इन कार्यक्रमों में राजधानी की अनुसूचित जाति बहुल सीटों और इलाकों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिन्हें आप का प्रबल समर्थक वर्ग माना जाता था. RSS के कार्यकर्ताओं ने भी बड़ी भूमिका निभाई. भाजपा सूत्रों ने स्वीकार किया कि शुरुआती परिस्थितियां पार्टी के अनुकूल नहीं थीं. केजरीवाल के खिलाफ मजबूत चेहरे का अभाव और मुफ्त की योजनाओं का जमीनी असर (खासकर महिलाओं पर) उसके आड़े आ रहा था.

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जनता का वादों पर एतबार
इसके मद्देनजर शाह ने रणनीति पर काम किया और इसके तहत भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में मुफ्त बिजली, पानी सहित आप सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखने के अलावा महिलाओं को 2500 रुपये का मासिक भत्ता और 10 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज सहित कई अन्य वादे किए थे. साथ ही पार्टी ने किसी स्थानीय चेहरे को आगे बढ़ाने के बजाय केवल मोदी के चेहरे को प्रमुखता दी. भाजपा को पता था कि पहले के चुनावों में पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी और पूर्व केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की रणनीति फलीभूत नहीं हो सकी थी.

स्‍थानीय मुद्दों को महत्‍व
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान न केंद्रित कर पानी, जल निकासी और कचरा प्रबंधन जैसे जमीनी स्तर के मुद्दों पर फोकस बनाए रखने की रणनीति भी कारगर साबित हुई. उक्त नेता ने बताया कि दिल्ली नगर निगम की सत्ता में आप के रहने से इन मुद्दों पर फायदा भी भाजपा को मिला. उन्होंने बताया कि वैसे तो प्रदूषण आम तौर पर चुनावी मुद्दा नहीं होता, लेकिन भाजपा ने यमुना और दिल्ली के वायु प्रदूषण से दिल्ली की जनता के स्वास्थ्य पर हो रहे नुकसान का मुद्दा जोरशोर से उठाया. चुनाव के बीच में ही आए केंद्रीय बजट में मध्यम वर्ग को महत्वपूर्ण कर रियायतें देकर भी भाजपा ने एक बड़ा दांव चला था.

अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के मतों में बिखराव
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी एक और रणनीति में बदलाव यह किया कि उसने बड़े स्तर पर कथित ध्रुवीकरण का कोई प्रयास नहीं किया. इसका असर ये हुआ कि अल्पसंख्यक मत एकतरफा किसी दल या उम्मीदवार के पक्ष में नहीं पड़े.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

February 08, 2025, 19:00 IST

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