Ayodhya Parikarma: भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित अयोध्या नगरी हिंदू धर्म के अनुसार सबसे पवित्र नगरी है. यहीं पर भगवान श्रीराम ने जन्म लिया था और यह उन्हीं की जन्मभूमि के रूप में प्रसिद्ध है. यहां पर कई प्राचीन मंदिर और तीर्थस्थल हैं. जहां लोग सालों से आते रहते हैं. इसका इतिहास पौराणिक काल में मिलता है. यह कई राजवंशों और साम्राज्यों की राजधानी रही है. यहां के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में राम जन्मभूमि मंदिर, हनुमानगढ़ी मंदिर, और नागश्वेर नाथ मंदिर शामिल हैं. शास्त्रों में लिखा है अयोध्या जी की परिक्रमा करने से विशेष धार्मिक महत्व और पुण्य के बारे में बताया गया हैं.
‘यानि कानि च पापानि जन्मांतरकृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे’
अर्थात्- इस जीवन में गलती से हुए पाप और पिछले जन्मों के पाप परिक्रमा से खत्म हो जाए, हम अपना सब कुछ ईश्वर पर न्योछावर करके उनकी शरण में आ गए हैं.
अयोध्या की यात्रा करने से विशेष धार्मिक महत्व और पुण्य मिलता है. यहां के पवित्र वातावरण में भक्तगण भगवान राम की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और यहां पर कई तरह की परिक्रमा करते हैं. अयोध्या की परिक्रमा के विषय में हिंदू ग्रंथों में कई तरह से बताया गया हैं. रामायण, रामचरितमानस, और अन्य पुराणों में के साथ यहां की स्थानीय परंपराओं और कथाओं में भी इसका जिक्र होता आया हैं.
कनक भवन अयोध्या जी
अयोध्या में परिक्रमाओं का महत्व और विवरण
तीर्थ नगरी अयोध्या में कई प्रकार की परिक्रमाएं की जाती हैं. जिसमें चौरासी कोस, तीर्थ की अन्तर्गृही परिक्रमा, सप्तकोसी, पचकोसी, चौदह कोसी, लघु और मध्यम परिक्रमा शामिल हैं. स्थानीय लोग अपनी-अपनी आस्था के अनुसार भी अयोध्या में परिक्रमाएं करते रहते हैं. ऐसा कहते है कि मनुष्य अपने जीवन में काम, क्रोध, राग-द्वेष, मात्सर्य, मद, मोह, लोभ के कारण कई प्रकार के पापों से बंध जाते हैं. साथ ही वह अपने स्वार्थ के लिए असत्य का आश्रय लेकर हिंसा के रास्ते में चलने के लिए विवश हो जाता है. इसका महत्व है कि पश्चाताप होने पर अयोध्या की परिक्रमा और यात्रा करने पर इन पापों से मनुष्य मुक्त हो जाता है.
अयोध्या की श्री रामकोट परिक्रमा के लाभ
यह परिक्रमा भगवान राम के राजभवन की होती है. यह अन्य परिक्रमाओं में सबसे छोटी परिक्रमा मानी जाती है. इसे अयोध्या के साधु-संत और स्थानीय लोग श्रद्धापूर्वक हर दिन करते हैं. यह भगवान राम की आराधना के लिए किया जाता है.
अयोध्या की लघु परिक्रमा के लाभ
यह अयोध्या की सबसे छोटी परिक्रमा मानी जाती है जो केवल 1 किलोमीटर की होती है. यह सरयू नदी पर स्थित रामघाट से शुरु होकर बाबा रघुनाथदास की गद्दी, सीताकुण्ड, अग्निकुण्ड, विद्याकुण्ड, मणिपर्वत, कुबेरपर्वत, सुग्रीवपर्वत, लक्ष्मणघाट, स्वर्गद्वार होते हुए वापस रामघाट पर आकर पूरी होती है. अयोध्या के साधु-संत इस परिक्रमा को प्रतिदिन ही किया करते हैं. इस परिक्रमा को करने से मनुष्यों को मानसिक शांति मिलती है और मन शुद्ध होता है.
अयोध्या की पञ्चकोसी परिक्रमा के लाभ
इस महान परिक्रमा को करने का अतयन्त लाभ और माहात्मय है. ‘पंचकोश करत घोर वज्रपाप कटिहैं’. देवोत्थानी एकादशी को लाखों लोग पञ्चकोसी परिक्रमा करते हैं. यह परिक्रमा 15 किलोमीटर की होती हैं. इसमे तकरीबन 4 से 5 घंटे का समय लगता है. इसे अयोध्या निवासी गृहस्थ और भगवान राम के विरक्त भक्त प्रत्येक एकादशी को श्रद्धापूर्वक करते हैं. इस परिक्रमा को अन्य राज्यों से भी आए रामभक्त करते हैं. इस परिक्रमा से बुरी आदतों से मुक्ति: और अच्छी आदतों को अपनाने में मदद मिलती है.
अयोध्या की चौदहकोसी परिक्रमा के लाभ
कार्तिक शुक्लपक्ष में अक्षय नवमी दिन के सरयू जी में स्नान कर लाखों लोग अयोध्या में चौदह कोसी परिक्रमा करते हैं. अयोध्या क्षेत्र की चौदह कोसी परिक्रमा का सर्वोपरि माहात्मय है. लोककथाओं के अनुसार वर्ष भर के पाप इस दिन परिक्रमा और स्नान-दान से खत्म हो जाते है और पुण्य की प्राप्ति होती हैं. इस परिक्रमा में लोग करीब 50 किलोमीटर की यात्रा करते हैं. इसे पूरा करने में 12 से 15 घंटे का समय लगता है.यह अयोध्या के स्वर्गद्वार से प्रारंभ होकर सूर्यकुण्ड(पहला विश्राम स्थल), पश्चिम कोसाहा, मिर्जापुर, बीकापुर गांवों से होकर फिर जनौरा(दूसरा विश्राम स्थल), खोजमपुर, निर्मलीकुण्ड, गुप्तारघाट, होते हुए वापस स्वर्गद्वार पहुंचने पर यह परिक्रमा पूरी हो जाती है. इस परिक्रमा में आपको स्त्री-पुरुष और बहुत सारे साधु-संत, बच्चे-बुढे, जवान आदि दिख जाएंगे. इस परिक्रमा में दान-पुण्य: करने से बहुत ही लाभ होता है.
अयोध्या की चौरासीकोसी परिक्रमा के लाभ
यह परिक्रमा चैत्र पूर्णिमा को म़खौड़ा धाम से प्रारंभ होती है. यह श्रीअयोध्या की सबसे बड़ी 84 कोस की परिक्रमा है यह करीब 22 दिन में पूरी होती है. इस परिक्रमा की कुल लंबाई में 200 किलोमीटर है इसलिए दुष्कर होने के कारण बहुत कम लोग इसे कर पाते हैं. यह बहुत ही प्राचीन परिक्रमा है. इसे ज्यादातार साधु-संत ही कर पाते है. इसमें जानकी नवमी को सीताकुण्ड पर पूजन और भण्डारा किया जाता है.
“उपोष्य द्वादशरात्रं नियतो नियताशन:
प्रदक्षिणा कृता येन जम्बूद्वीपस्य सा कृता”
अर्थात्- जिसने नियमनिष्ठ होकर, उचित आहार लेते हुए बारह रात्रितक उपवास करके अयोध्यापुरी की परिक्रमा की, उसने मानो पूरे जम्बूद्वीप की परिक्रमा कर ली.
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FIRST PUBLISHED :
October 10, 2024, 12:44 IST