इस खेल के माध्यम से कर सकते हैं आत्मरक्षा, जानिए क्या है सालों पुराना खेल

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इसे खेलने वाले लोग अच्छे-अच्छे को छुड़ा देते थे पसीना 

विशाल कुमार / छपरा: जिले के खिलाड़ी देश-विदेश में अपने खेल के माध्यम से नाम कमा रहे हैं, लेकिन आज हम एक ऐसे खेल की बात कर रहे हैं जिसे आपके पूर्वज खेला करते थे. यह खेल न केवल मनोरंजन का माध्यम था, बल्कि आत्मरक्षा का भी साधन है. हालांकि, समय के साथ यह खेल लुप्त होता जा रहा है. जिले के गरखा प्रखंड के फिरंगी सिंह व्यायामशाला मिर्जापुर में आज भी दर्जनों बच्चे इस खेल को जीवित रखने के लिए प्रतिदिन प्रशिक्षण लेने आते हैं. यहां बच्चों को निशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है, और यह आयोजन स्वतंत्रता सेनानी बाबू फिरंगी सिंह चौथा पीढ़ी की ओर से किया जाता है.

प्रशिक्षण का इतिहास
संस्थान के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि लगभग 80 वर्ष पहले से यहां अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. विभिन्न दुर्गा पूजा समितियों से इस प्रशिक्षण के लिए निमंत्रण भी मिलता है. अखाड़े के सभी खिलाड़ी बंगईठी, लाठी, तलवार, पट्टा, वानागजवाना, फरसा, गरासा, भला, गदका और फड़ी का प्रदर्शन करते हैं.

पुरानी यादें
प्रशिक्षक देवेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि बचपन में वे छपरा के भरत मिलाप चौक पर अन्य खिलाड़ियों के साथ प्रदर्शन करते थे और जिला अधिकारी से पुरस्कार प्राप्त करते थे. उन्होंने बताया कि पहले गरखा, दरियापुर और दिघवारा के बच्चे अन्य जगहों पर प्रशिक्षण के लिए जाते थे, लेकिन अब घटती रुचि के कारण केवल सीमित संख्या में बच्चे प्रशिक्षण ले रहे हैं.

खेल की महत्ता
प्रशिक्षक जयप्रकाश कुमार सिंह ने कहा कि फिरंगी सिंह व्यायामशाला पौराणिक अस्त्र-शस्त्र की कला को जीवित रखे हुए है, जो अपने आप में गर्व की बात है. यह एक ऐसा खेल है जिसे युवा खेल भावना से सीखते हैं. उन्होंने कहा, “इस खेल को खेलने वाले खिलाड़ी विकट परिस्थितियों में अपने को सुरक्षित रख सकते हैं और हमलावरों को मिंटों में धूल चटा सकते हैं. इस तरह, छपरा के ये खिलाड़ी न केवल एक प्राचीन खेल को जीवित रख रहे हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे संरक्षित करने का भी प्रयास कर रहे हैं. उनकी मेहनत और लगन से यह खेल एक नई पहचान पा रहा है.

Tags: Bihar News, Chapra news, Local18

FIRST PUBLISHED :

September 30, 2024, 15:01 IST

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