प्राचीन समय में कविताएं, पुराण और भारत के राजाओं का इतिहास ताड़ के पत्तों पर लिखने की परंपरा थी. रामायण, महाभारत और राजाओं के समय की घटनाएं भी इन्हीं पत्तों पर लिखी जाती थीं. इन ताड़ के पत्तों को तालपत्र ग्रंथ कहा जाता है. इन्हें भारतीय ज्ञान का भंडार माना जाता है, जो उस समय की सभ्यता और संस्कृति का दस्तावेज हैं.
तालपत्र ग्रंथों की स्थिति और संरक्षण
आज के समय में ऐसे प्राचीन ग्रंथ बहुत कम देखने को मिलते हैं. जो भी कुछ बचे हुए ग्रंथ हैं, उन्हें आंध्र यूनिवर्सिटी, विशाखापट्टनम की डॉ. वीएस कृष्णा लाइब्रेरी में संरक्षित किया गया है. इस लाइब्रेरी की असिस्टेंट हैमावती ने बताया कि इन तालपत्र ग्रंथों को डिजिटल स्वरूप में बदलने की प्रक्रिया जारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियां इन ऐतिहासिक दस्तावेजों को देख और समझ सकें.
लाइब्रेरी का ऐतिहासिक महत्व
यह पुस्तकालय 1927 में स्थापित किया गया था. इसमें 5 लाख से भी अधिक अनमोल किताबें हैं. यहां प्राचीन हस्तरेखा शास्त्र और अन्य ग्रंथों को अलग-अलग सुरक्षित रखा गया है. पुस्तकालय में ताड़ के पत्तों पर लिखे कुल 2,663 ग्रंथ हैं, जो एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर के रूप में देखे जाते हैं.
पुराने समय का कानून और नियम पालन
प्राचीन समय में ताड़ के पत्तों पर लिखे गए नियम और कानूनों का कठोरता से पालन किया जाता था. यदि कोई नियम ताड़ के पत्तों पर दर्ज किया जाता, तो लोगों के लिए उसका पालन अनिवार्य हो जाता था. यह प्राचीन समाज के अनुशासन और नियमबद्ध जीवन को दर्शाता है.
आधुनिक पीढ़ी और प्राचीन ग्रंथों से सीख
आज कई लोगों ने अपने पुराने ताड़ के पत्तों के ग्रंथ लाइब्रेरी को दान किए हैं. ये शिलालेख और हस्तरेखा शास्त्र की किताबें आधुनिक पीढ़ी को अतीत की गहराइयों में झांकने का मौका देती हैं. इनसे नई पीढ़ी को न केवल ज्ञान मिलता है, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास की समृद्धि को समझने का अवसर भी मिलता है.
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FIRST PUBLISHED :
November 25, 2024, 12:27 IST