एक्सचेंज रेट पॉलिसी स्थिर, RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने रुपये की बदहाली पर कही ये बातें

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Exchange rate policy is stable, RBI Governor Sanjay Malhotra said these things on the bad condition Photo:FREEPIK उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बड़े पैमाने पर हुई पूंजी की निकासी

RBI (भारतीय रिजर्व बैंक) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​ने शुक्रवार को कहा कि एक्सचेंज रेट पॉलिसी पिछले कई सालों से एक समान रही है और केंद्रीय बैंक ने रुपये के लिए किसी ‘‘खास लेवल या बैंड’’ का लक्ष्य नहीं बनाया है। रुपये का एक्सचेंज रेट अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87.59 के लाइफटाइम लो पर आ गया है। गुरुवार को रुपया 16 पैसे की गिरावट के साथ 87.59 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ था। मल्होत्रा​​ ने मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग के नतीजों की घोषणा करते हुए कहा, ‘‘ मैं यहां ये बताना चाहूंगा कि रिजर्व बैंक की एक्सचेंज रेट पॉलिसी पिछले कई सालों से एक जैसी रही है। हमारा उद्देश्य बाजार की कार्यकुशलता से समझौता किए बिना व्यवस्था और स्थिरता बनाए रखना है।’’ 

इस साल 2 प्रतिशत तक गिर चुका है रुपया

संजय मल्होत्रा ने कहा, ‘‘ फॉरेक्स मार्केट में हमारा हस्तक्षेप किसी खास एक्सचेंज रेट लेवल या बैंड को लक्षित करने के बजाय अत्यधिक और गंभीर अस्थिरता को कम करने पर फोकस है। भारतीय रुपये का एक्सचेंज रेट बाजार के तत्वों द्वारा निर्धारित होती है।’’ बताते चलें कि रुपये में इस साल अभी तक करीब 2 प्रतिशत की गिरावट आई है। 6 नवंबर, 2024 को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद से डॉलर के मुकाबले रुपये में 3.2 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि इस दौरान डॉलर इंडेक्स में 2.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। विदेशी मुद्रा भंडार में पिछले 3 महीनों में 45 अरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट दर्ज की गई है, जिसका एक कारण विदेशी मुद्रा बाजार में आरबीआई का हस्तक्षेप है। 

उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बड़े पैमाने पर हुई पूंजी की निकासी

8 नवंबर, 2024 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 675.65 अरब अमेरिकी डॉलर था। इस साल 31 जनवरी तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 630.6 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, जो इससे पिछले हफ्ते 629.55 अरब अमेरिकी डॉलर था। ये रकम 10 महीने से ज्यादा के इंपोर्ट के लिए पर्याप्त है। गवर्नर ने कहा कि अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती के आकार और गति के बारे में उम्मीदें कम होने से अमेरिकी डॉलर मजबूत हुआ है और बॉन्ड पर प्रतिफल बढ़ा है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बड़े पैमाने पर पूंजी की निकासी हुई है, जिससे उनकी करेंसी में तेज गिरावट आई है और वित्तीय स्थितियां सख्त हुई हैं।

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