क्या कहता है विज्ञान: गुस्से में लाल ही क्यों होता है आदमी, हरा नीला क्यों नही

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Last Updated:February 06, 2025, 20:32 IST

कहा जाता है कि गुस्से में आदमी लाल हो जाता है. पर वह लाल ही क्यों होता है. वैज्ञानिक तक कहते हैं कि इसके पीछे विज्ञान हैं. सामन्य नियम के तहत वे बताते है कि गुस्से में इंसान का ब्लड प्रेशर तेज हो जाता है जिसके ...और पढ़ें

 गुस्से में लाल ही क्यों होता है आदमी, हरा नीला क्यों नही

गुस्से में चेहरा लाल होना केवल कहवात ही नहीं है.

इंसान गुस्से में लाल हो जाता है. ऐसा आपने बहुत सुना होगा, पर क्या आपने सोचा है कि ऐसा क्यों कहा जाता है. क्या ये महज कहावत है? या क्या इसमें कोई वैज्ञानिक सच्चाई है? क्या इसका किसी लाल रंग के खतरे से संबंध है या फिर किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत वाकई इंसान का चेहरा लाल हो जाता है? या सदियों से लाल रंग को गुस्से या खतरे से जोड़ा गया है तो  धीरे धीरे इस कहावत ने स्वरूप ले लिया है. आइए जानते हैं कि इस पर क्या कहता है विज्ञान?

इंसान और गुस्सा
इंसान के लिए गुस्सा एक खास तरह का मनोस्थिति है, एक खास तरह का मूड है. गुस्से को कभी भी सामान्य भावना की तरह नहीं लिया जाता है. वह खास हालात में ही पैदा होता है और यह भाव केवल इंसानों में ही नहीं बल्कि जानवरों में भी देखने को मिलता है.  गुस्से का संबंध अक्सर अस्तित्व पर संकट आने से होता है. यह खास तरह की एक चरम बर्ताव की प्रतिक्रिया होती है जो कि चोट लगने, अपने मन की बात ना होने जैसी घटना पर पैदा होती है.

भावनाएं और रंग
वैज्ञानिक लंबे समय से भावनाओं को रंगों से जोड़ कर देखते हैं. खून का रंग होने के बावजूद लाल रंग को खतरे से जोड़ कर देखा जाता है. इतना ही नहीं हरा रंग इंसान के लिए एक तरह का सुकून और खुशी के भाव को दर्शाता है. और रोचक बात ये है कि इंसान की आंखे हरे रंग को आसानी से पहचान जाती हैं और लाल ही वह रंग है जिसे देख इंसान सबसे ज्यादा असहज होता है.

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गुस्से को अक्सर खतरे से जोड़कर देखा जाता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)

लाल रंग और खतरा
हैरानी की बात नहीं कि लाल रंग ना केवल इंसान को असहज करता है बल्कि वह मनोवैज्ञानिक तौर पर शुरू से ही लाल रंग को खतरे के तौर पर देखता है. इसकी सबसे बड़ी वजह है यही है कि खून निकलना एक असहजता निशानी है और खून का रंग कुदरती तौर पर कहीं और बहुत ही कम देखने को मिलता है.  यही वजह है कि इंसानों के विकासक्रम में लाल रंग धीरे धीरे खतरे का प्रतीक होता गया.

गुस्सा और हार्मोन
जिस तरह से लाल रंग असहजता और खतरे का संकेत है. उसी तरह गुस्सा भी असामान्य और कभी होने वाली भावना है. अध्ययन से वैज्ञानिक भी इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि जब लोग गुस्सा होते हैं, तो उनका शरीर लड़ो या भागो प्रतिक्रिया से गुजरता है. इससे एड्रेनालाईन जैसे तनाव हार्मोन निकलने लगते हैं. ये हार्मोन शरीर को किसी संभावित खतरे का जवाब देने के लिए तैयार करते हैं. इन हार्मोन का और भी तरह के असर होते हैं.

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गुस्से में इंसान के दिल की धड़कन और खून का प्रवाह बढ़ जाता है.

बढ़ता खून का प्रवाह
एड्रेनालाईन रक्त वाहिकाओं को फैलाने का काम करता है. ऐसा खास तौर से चेहरे पर होता है, जिससे चेहरे में खून का प्रवाह बढ़ जाता है.नतीजा ये होता है कि चेहरा लाल हो जाता है. इसके अलावा लड़ो या भागो प्रतिक्रिया होने पर दिल धड़कने की रफ्तार तेज होता है, इससे खून तेजी से पंप होता है, हरे पर जल्दी से खून पहुंचता है और चेहरा लाल हो जाता है.

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इतना ही नहीं गुस्सा शरीर के तापामान को बढ़ा देता है. जैसे-जैसे शरीर भावना पर प्रतिक्रिया करता है, यह गर्मी की भावना पैदा कर सकता है, जो चेहरे के लाल करने में मददगार होता है. साफ है कि  गुस्से में इंसान का चेहरा लाल होना ना तो गलत है ना ही महज कहावत है. बल्कि असल में इसके पीछे पूरा का पूरा विज्ञान है.

Location :

Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh

First Published :

February 06, 2025, 20:32 IST

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