गन्ना, गंडक और गुंडा के लिए जाना जाता थे ये जिला, स्थापना के हुए 51 साल

2 hours ago 1

X

गोपालगंज

गोपालगंज

गोपालगंज: गोपालगंज जिले ने आज अपनी स्थापना के 52 साल पूरे कर लिए हैं. 2 अक्टूबर 1973 को यह सारण से अलग होकर जिला बना, और तब से इसने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से कई महत्वपूर्ण बदलाव देखे हैं. आइए, एक नजर डालते हैं गोपालगंज के 52 साल के सफर पर और उन बदलावों पर, जिनसे यह जिला गुजरा है.गोपालगंज को जिला का दर्जा दिलाने के लिए बुद्धिजीवियों और जनप्रतिनिधियों ने कड़ा संघर्ष किया. इसके लिए “गोपालगंज जिला बनाओ संघर्ष समिति” का गठन हुआ, जिसमें कई प्रमुख नेता जैसे द्वारिका नाथ तिवारी, शिवकुमार पाठक, रामदुलारी सिन्हा समेत कई अन्य नेता शामिल थे. समिति के संघर्ष और सिवान के जिला बनने के बाद गोपालगंज के लिए आवाज और तेज हो गई.

2 अक्टूबर 1973 को, गोपालगंज के पहले जिला अधिकारी माखनलाल मजूमदार ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया. उस समय, यहां केवल दो प्रमुख अधिकारी थे—एसपी जीएस ओजला और एसडीओ एके दत्ता. उस वक्त जिले में प्रशासनिक व्यवस्था कमजोर थी, सड़कों, बिजली और पानी की भारी कमी थी, जो सिर्फ 10 प्रतिशत लोगों तक ही सीमित थी.

मीरगंज था सबसे बड़ा बाजार
1973 में जिले का सबसे बड़ा बाजार मीरगंज हुआ करता था. यहां की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत थी कि गोरखपुर और महाराजगंज के व्यापारी भी यहां से खरीदारी करने आते थे. आज भी मीरगंज जिले के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में से एक है, हालांकि समय के साथ नए व्यापारिक हब भी विकसित हुए हैं.

रेलवे और परिवहन का बुरा हाल
उस समय जिले में एकमात्र ट्रेन थी, जो कप्तानगंज से छपरा तक चलती थी. लोगों को कोर्ट के काम से छपरा जाने में तीन दिन लग जाते थे. आज, जिले में दर्जनों ट्रेनें चलती हैं, जो गोपालगंज को छपरा, लखनऊ, पटना, और गोरखपुर से जोड़ती हैं.जिले में 1973 में मात्र दो अस्पताल थे—एक जिला मुख्यालय पर और एक हथुआ में. आज जिले के हर प्रखंड में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, और कोरोना काल के दौरान यहां ट्रॉमा सेंटर भी बना. हालांकि, मेडिकल कॉलेज की बात अब भी सिर्फ चर्चाओं तक सीमित है.

आबादी में भारी वृद्धि, उद्योगों का विकास नहीं
1973 में जिले की आबादी 7 लाख थी, जो अब 30 लाख के करीब पहुंच गई है. हालांकि, औद्योगिक विकास काफी धीमा रहा. जिले में पहले 4 चीनी मिलें थीं, जिनमें से हथुआ और सासामुसा बंद हो चुकी हैं.

गोपालगंज से हुए तीन मुख्यमंत्री, लेकिन विकास की कमी
गोपालगंज से तीन मुख्यमंत्री हुए—अब्दुल गफूर, लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी. लेकिन, इन नेताओं के शासनकाल में जिले को अपेक्षित विकास नहीं मिला. हालांकि, लालू यादव के रेल मंत्री रहते हुए हथुआ-भटनी रेलखंड बना, पर उनके मुख्यमंत्री रहते समय जिले के विकास में खास योगदान नहीं हुआ.

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी
गोपालगंज की राजनीति में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी रही है. रामदुलारी सिन्हा और राधिका देवी जैसे नेता यहां से चुनी गईं. राबड़ी देवी ने तो बिहार की मुख्यमंत्री की कुर्सी तक भी पहुंच बनाई.

आज भी उच्च शिक्षा की कमी, छात्रों का पलायन जारी
जिले में उच्च शिक्षा की कमी आज भी बड़ी समस्या है. यहां पीजी कॉलेज, लॉ कॉलेज और कृषि की पढ़ाई की व्यवस्था नहीं है, जिससे हजारों छात्र दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं.

गोपालगंज: गन्ना, गंडक और गुंडा का नाम
गोपालगंज को एक समय गन्ना, गंडक और गुंडा के लिए जाना जाता था. आज भी यहां की जनता गंडक की त्रासदी झेल रही है, और चीनी मिलों के बंद होने से गन्ना किसानों की समस्याएं बरकरार हैं.

Tags: Bihar News, Gopalganj news, Local18

FIRST PUBLISHED :

October 2, 2024, 09:42 IST

*** Disclaimer: This Article is auto-aggregated by a Rss Api Program and has not been created or edited by Nandigram Times

(Note: This is an unedited and auto-generated story from Syndicated News Rss Api. News.nandigramtimes.com Staff may not have modified or edited the content body.

Please visit the Source Website that deserves the credit and responsibility for creating this content.)

Watch Live | Source Article