Last Updated:January 22, 2025, 13:34 IST
डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाने की बात कही, जिसमें भारत भी शामिल है. भारत और चीन को एक तराजू में तोलना गलत है. भारत अमेरिका का स्वाभाविक पार्टनर है, जबकि चीन के साथ रिश्ते तल्ख हैं. ये पूरी र...और पढ़ें
अमेरिका की सत्ता संभालते ही टैरिफ किंग डोनाल्ड ट्रंप ने पूरी दुनिया को ‘शेक’ करने के इरादे साफ कर दिए हैं. सोमवार को जब वे शपथ ले रहे थे, तब उन्होंने कहा था कि स्पेन सहित ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी तक का टैरिफ लगाया जा सकता है. ब्रिक्स में 10 देश आते हैं, जिनमें भारत भी है. इस बयान के बाद ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भी सोच-विचार की मुद्रा में हैं. चीन पर लगता है कि ट्रंप की विशेष योजना भी है. चीन के साथ वह कुछ भी करे, भारत को उससे ज्यादा मतलब नहीं, मगर यदि वह चीन और भारत को एक ही तराजू में तोलने चला है, तो उसे एक बार ‘आंखों में पानी के छींटे मारकर’ देख लेना चाहिए.
दरअसल, चीन और भारत को एक-साथ एक नजर से नहीं देखा जा सकता. भारत जहां अमेरिका का स्वाभाविक पार्टनर है, वहीं चीन के साथ यूएस के रिश्ते तल्ख रहे हैं. चीन को टैकल करने के लिए किसी भी सूरत में अमेरिका को भारत की जरूरत है ही. यदि हम वर्तमान परिस्थितियों को बारीकी से देखें तो दोनों (चीन और भारत) से रिश्तों में अमेरिका को ‘गर्माहट’ भारत से ही मिलती है, न कि चीन से. इस तुलना को समझने के लिए हमें दोनों देशों के साथ अमेरिका के आर्थिक समीकरणों पर गहराई से नजर डालनी होगी.
आर्थिक चिंता चीन से होनी चाहिए
अमेरिका में भारतीय समुदाय जनसंख्या का केवल 1.5 प्रतिशत है, लेकिन उनका योगदान अमेरिका के टैक्स कलेक्शन में 5-6 प्रतिशत तक पहुंचता है. यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारतीय मूल के लोग न केवल प्रोफेनशली आगे हैं, बल्कि अमेरिका को आर्थिक रूप से भी मजबूती प्रदान कर रहे हैं. दूसरी ओर, चीन का जनसांख्यिकीय योगदान अमेरिका में तुलनात्मक रूप से कम है, लेकिन आर्थिक स्तर में उसकी चुनौती अधिक गंभीर है.
हमारे दरवाजे खुले, उनके बंद
भारत ने अमेरिकी कंपनियों के लिए अपने दरवाजे कभी बंद नहीं किए. ऐपल, फेसबुक, गूगल, और उबर जैसी कंपनियां भारत में न केवल फल-फूल रही हैं, बल्कि यहां से अरबों डॉलर का रेवेन्यू भी उठा रही हैं. इसके उलट, चीन ने विदेशी टैक्नोलॉजी कंपनियों पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं. अमेरिकी कंपनियों जैसे कि फेसबुक और उबर जैसी कंपनियों को चीन में कारोबार करने की परमिशन नहीं है. चीन अपनी घरेलू कंपनियों को प्राथमिकता देता है.
व्यापार घाटा ही देख लो… जमीं-आसमां का फर्क
व्यापार घाटे (Trade Deficits) की बात करें, तो वहां भी भारत और चीन के साथ अमेरिका की स्थिति अलग है. अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा 25 फीसदी का है, जबकि भारत के साथ यह केवल 4 फीसदी है. इसका मतलब है कि भारत और अमेरिका एक दूसरे से लगभग बराबर का ट्रेड करते हैं, जबकि चीन के साथ अमेरिका का परस्पर ट्रेड 25 फीसदी का अंतर पैदा करता है. भारत के निर्यात में टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स और केमिकल्स जैसे उत्पाद शामिल हैं, जो अमेरिकी उद्योगों के लिए खतरा नहीं हैं. इसके विपरीत, चीन इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और अन्य उत्पादों का निर्यात करता है, जो अमेरिकी कंपनियों के साथ सीधा कंपीटिशन करते हैं.
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार स्थिर और संतुलित है. वित्त वर्ष 2023-24 में दोनों देशों के बीच कुल व्यापार 118.28 बिलियन डॉलर का था, जिसमें भारत ने 77.51 बिलियन डॉलर का निर्यात किया और 41.77 बिलियन डॉलर का आयात किया. यही स्थिति पिछले कई वर्षों से स्थिर है, और दोनों देशों को इससे लाभ हो रहा है. चीन के मामले में इसका उलट है. चीन के साथ अमेरिका की प्रमुख समस्या उसका बड़ा व्यापार घाटा है, जो घरेलू इंडस्ट्री पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. 2024 में, चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 360 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो कि साफ तौर पर आर्थिक असंतुलन का संकेत है. बात करें भारत की, तो व्यापार घाटा पिछले 10 वर्षों से लगभग 7 बिलियन डॉलर के आसपास है.
भारत से जाता है जरूरत का सामान
भारत से जो भी सामान अमेरिका जाता है, वह अमेरिका की इंडस्ट्री के लिए फायदे का सौदा है. टेक्सटाइल और फार्मा जैसे क्षेत्र न केवल यूएस की जरूरतें पूरी करते हैं, बल्कि वहां के उपभोक्ताओं को किफायती विकल्प भी देते हैं. फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में भारत के उत्पादों पर अमेरिका में कम या जीरो टैरिफ लगाया जाता है, क्योंकि ये उत्पाद आवश्यक और गैर-प्रतिस्पर्धी हैं. यदि ‘लालच में अंधे होकर’ ट्रंप ने इन प्रोडक्ट्स पर 100 फीसदी तक का टैरिफ लगाया तो भारतीय कंपनियों को दिक्कत तो होगी, मगर अमेरिका के लोगों को इन्हीं सामानों के लिए ज्यादा पैसा चुकान होगा. कुल मिलाकर, अमेरिकी इकॉनमी के लिए यह कदम पेनकिलर कम, पेन ज्यादा साबित होगा. सच तो ये है कि चीन के निर्यात में शामिल इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी जैसे उत्पाद अमेरिकी इंडस्ट्री के लिए चुनौती हैं.
भारत और चीन के साथ अमेरिका के संबंध नीतिगत दृष्टिकोण से भी काफी भिन्न हैं. भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां व्यापार और निवेश के लिए पारदर्शी प्रक्रियाओं और नियमों का पालन करता है. वहीं, चीन अपने सत्तावादी दृष्टिकोण के कारण विदेशी कंपनियों के लिए कई बाधाएं खड़ी करता है. यह अंतर अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत को चीन की तुलना में एक बेहतर साझेदार बनाता है. इन सभी पहलुओं को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत और चीन को एक ही तराजू में तोलना अमेरिका के लिए न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि अनुचित भी है.
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New Delhi,New Delhi,Delhi
First Published :
January 22, 2025, 13:34 IST