नई दिल्लीः महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव रिजल्ट के 72 घंटे के बाद राष्ट्रपति शासन लग सकता है। दरअसल, मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को खत्म हो रहा है और पार्टियों के पास सरकार बनाने के लिए सिर्फ 72 घंटे का समय होगा। यहां तक कि अगर किसी एक गुट - महायुति या महाराष्ट्र विकास अघाड़ी को स्पष्ट बहुमत मिलता है तो भी मुख्यमंत्री पद पर सर्वसम्मति निर्णायक हो सकती है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद राष्ट्रपति शासन से कोई अनजान नहीं है। 2019 और 2014 के चुनावों के बाद यहां राष्ट्रपति शासन की कुछ अवधि देखी गई। चुनाव रिजल्ट के बाद अगर किसी दल या गठबंधन ने सरकार बनाने का दावा नहीं किया तो राज्य को एक बार फिर से राष्ट्रपति शासन का मुंह देखना पड़ सकता है। यह विपक्षी गठबंधन के लिए चिंता की बात हो सकती है। इसीलिए रिजल्ट से पहले ही महा विकास अघाड़ी विधायकों के संभावित खरीद-फरोख्त को लेकर सतर्क है।
महाराष्ट्र में चुनाव के रिजल्ट घोषित होने के बाद अगर किसी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे में अगर राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा तो विधायकों की सौदेबाजी की प्रबल संभावनाएं हो सकती हैं।
महायुति और महा विकास अघाड़ी गठबंधन में प्रमुख रूप से तीन-तीन दल शामिल हैं। अगर चुनाव जीतने वाले गठबंधन में मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान हुई तो सरकार गठन में देरी हो सकती है। भले ही दोनों गठबंधनों में से कोई एक, एमवीए या महायुति 145 सीटों का आंकड़ा पार कर जाए। या फिर निर्दलीय और छोटे दलों के सहयोग से सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच जाए। लेकिन असली बाधा मुख्यमंत्री पद को लेकर सहमति बनाना होगी। किसी भी गठबंधन को बहुमत मिलने से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि मुख्यमंत्री पद पर सर्वसम्मति बनाना। जोकि इतना आसान काम नहीं लगता।
महा विकास अघाड़ी में सीएम पद की दौड़ पिछले कुछ समय से तेज हो रही है। इसमें आधा दर्जन दावेदार इस पद के लिए होड़ में हैं। उद्धव ठाकरे एक मजबूत दावेदार बने हुए हैं। इस बीच, महायुति में सीएम पद के संभावित उम्मीदवार एकनाथ शिंदे को अब उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से कड़ी टक्कर मिल रही है। बीजेपी ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ी है। जाहिर है विधानसभा में सबसे बड़ा दल बनकर उभर सकती है। ऐसे में बीजेपी इस बार अपना मुख्यमंत्री का फेस दे सकती है।
नियम के मुताबिक देश के किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन तभी लगाया जाता है जब कोई दल सरकार बनाने की स्थिति में न हो। या फिर सरकार गठन से पहले विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो जाए। इसलिए निवर्तमान सरकार या विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले सरकार गठन की प्रक्रिया पूरी होना जरूरी है।
संविधान के अनुच्छेद 172 के अनुसार, राज्य विधानसभा का कार्यकाल, उसके पहले बैठने की तिथि से पांच वर्ष का होता है, जब तक कि उसे पहले भंग न कर दिया जाए। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए यदि भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति या कांग्रेस के नेतृत्व वाली एमवीए 72 घंटों के भीतर सरकार बनाने में सक्षम नहीं होती है तो राज्य के राज्यपाल की सिफारिशों के आधार पर महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग सकता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत, राष्ट्रपति किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं। यदि उस राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल रही है। इस प्रावधान का अक्सर तब इस्तेमाल किया जाता है जब राज्य में संवैधानिक तंत्र टूट जाता है। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य पर सीधे केंद्र सरकार का शासन होता है, जोकि राज्यपाल के माध्यम से शासन चलता है। जो राज्य के प्रशासन के प्रमुख के रूप में कार्य करता है।
महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की शुरुआत
अगर शनिवार को होने वाले चुनाव नतीजों में महाराष्ट्र में विधानसभा में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलता है और चुनाव लड़ने वाली पार्टियां 288 सदस्यीय सदन में 145 का आंकड़ा पार करने के लिए गठबंधन बनाने में विफल रहती हैं, तो राष्ट्रपति शासन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। अगर ऐसा होता है, तो यह चौथी बार होगा जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होगा। 2019 से पहले महाराष्ट्र 2014 में एक महीने के लिए राष्ट्रपति शासन के अधीन आया था। राज्य में पहली बार 1980 में राष्ट्रपति शासन लगा था। 2019 में विधानसभा चुनावों के बाद राज्य में 11 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया था, क्योंकि कोई भी पार्टी सरकार नहीं बना पाई थी।
दरअसल, चुनाव पूर्व सहयोगी भाजपा और अविभाजित शिवसेना, सीएम चेहरे और मंत्री पद पर सहमत नहीं हो सके थे। इसके बाद की अवधि में देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्री के रूप में 80 घंटे का कार्यकाल देखा। इसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। आखिरकार, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ एक नया गठबंधन सामने आया, जिसमें एमवीए का गठन हुआ।