दंगे का दर्द, दोनों तरफ चोट और भरोसे की कमी, दंगे के 6 महीने बाद लौटा परिवार

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Last Updated:February 11, 2025, 07:33 IST

Bareilly Gausganj Violence: उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गौसगंज इलाके में 6 महीने पहले हुए दंगे में अपने घरों को छोड़कर गए कुछ मुस्लिम परिवार पुलिस की सुरक्षा में लौट आए हैं. उनके घर अब खंडहर में बदल चुके हैं....और पढ़ें

दंगे का दर्द, दोनों तरफ चोट और भरोसे की कमी, दंगे के 6 महीने बाद लौटा परिवार

बरेली के गौसगंज इलाके में हुए हिंसा के बाद लौटे 11 मुस्लिम परिवार.

हाइलाइट्स

  • बरेली के गौसगंज इलाके में हुए हिंसा के बाद लौटा 11 मुस्लिम परिवार.
  • पुलिस की सुरक्षा में परिवार अपने घरों में लौटा.
  • हिंदू पक्ष में भी नाराजगी और डर.

बरेलीः उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गौसगंज इलाके में 6 महीने पहले हुए दंगे के बाद धीरे-धीरे वो लोग अपने घर को लौट रहे हैं, जो हिंसा बढ़ने के बाद छोड़कर चले गए थे. हालांकि उनके घरों का मंजर काफी खराब है, घरों के कुछ हिस्से मलबे में बदल गए हैं तो दरवाजे टूटे हुए और घरों में रखी आलमारियां लूटी हुई लगती हैं. बीते साल 18 जुलाई को गौसगंज इलाके में सांप्रदायिक दंगा हुआ था, जिसमें एक शख्स की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए. इसके बाद करीब 42 मुस्लिम परिवार अपना घर छोड़कर अपने रिश्तेदारों या दूसरे शहरों में चले गए. दंगे के बाद जांच की कार्रवाई शुरू हुई तो सरकारी जमीन पर अतिक्रमण का मामला पाए जाने के बाद प्रशासन ने 8 घरों पर बुलडोजर चला दिया. वहीं हिंसा के 58 आरोपी फिलहाल जेल में बंद हैं.

दंगे के बाद रिश्तेदारों के शरण में पहुंचा मुस्लिम परिवार
अपने घरों को छोड़कर मुस्लिम परिवारों ने अलग-अलग गांवों में रिश्तेदारों के घरों में शरण ली. इन परिवार के लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए अलग-अलग जगहों पर मजदूरी करते रहे और रिश्तेदारों की मदद तभी तक ली, जब तक की किराए पर घर लेने में सक्षम नहीं हुए. उनके बच्चे, जो कभी छात्र थे, उनकी शिक्षा अचानक रुक गई. वहीं अब गौसगंज में एक बार फिर 11 परिवार लौट आए हैं.

दंगे के बाद लौटे परिवार के पास दुख के अलावा कुछ भी नहीं
60 साल की शफ़ीकन, जब अपने घर पहुंची तो वहां दरवाजा नहीं था, केवल कंक्रीट की दीवार बची हुई थी. शफीकन कहती हैं, ”कम से कम मुझे अपना घर वापस मिल गया. हम दिहाड़ी मजदूरों का परिवार हैं और मेरे पास अपने दो बेटों और पति का मुकदमा लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं. मुझे नहीं पता कि वे जेल से कैसे बाहर आएंगे.” वहीं 62 वर्षीय रुकसाना बेगम अपने सामने के बरामदे की संकरी रैंप पर बैठी हैं और उनकी निगाहें गांव में गश्त कर रहे पुलिस वालों की ओर हैं. वह बात करने से मना कर देती हैं.

एनजीओ के भरोसे है परिवार
23 वर्षीय मोहम्मद ताहिर यहां हैं, लेकिन रुकने के लिए नहीं. ताहिर कहते हैं, “मैं अब यहाँ नहीं रहता. मैं हरियाणा में काम करता हूं. मैं अपने माता-पिता को बसाने आया हूं. कुछ भी नहीं बचा. हमें शून्य से शुरुआत करनी होगी.” फिलहाल, इन परिवारों का गुजारा दान पर निर्भर है. वहां मौजूद एक एनजीओ भोजन, बर्तन और झाड़ू जैसी बुनियादी ज़रूरतें मुहैया कराता है.

हिंदू परिवारों में भी डर
गांव के कुछ परिवारों में अब भी नाराजगी गहरी है. 23 वर्षीय हिंदू व्यक्ति तेजपाल दंगों में मारा गया और उसका परिवार अभी भी न्याय मांग रहा है. पंचायत सहायक राज कुमारी कहती हैं, ”वह मेरा भतीजा था. उसकी हत्या कर दी गई और क्या अब उन्हें वापस जाने की अनुमति दी जा रही है? हम इसे कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? आज पुलिस हमारे साथ है, लेकिन छह महीने बाद क्या होगा? हमारी सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?” होली नजदीक आने पर तनाव बढ़ने की आशंका है. शाही थाना प्रभारी अमित बालियान कहते हैं, ”हमने गांव के प्रवेश द्वार पर एक पुलिस पिकेट स्थापित किया है. एक बड़ी हिंदू सभा की उम्मीद है, इसलिए हम भारी बल तैनात कर रहे हैं.

First Published :

February 11, 2025, 07:33 IST

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