दशहरा के दिन क्यों करते हैं शस्त्र पूजा? क्या है इसका महत्व? पंडित जी से जानें

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Ayudha Puja 2024: प्राचीन काल से दशहरा पर अपराजिता-पूजा, शमी पूजन, शस्त्र पूजन व सीमोल्लंघन की परंपरा रही है. शस्त्र पूजन की परंपरा का आयोजन रियासतों में आज भी बहुत धूमधाम के साथ होता है. शासकीय शस्त्रागारों के साथ आमजन भी आत्मरक्षार्थ रखे जाने वाले शस्त्रों का पूजन सर्वत्र विजय की कामना के साथ करते हैं. राजा विक्रमादित्य ने दशहरे के दिन देवी हरसिद्धि की आराधना की थी. छत्रपति शिवाजी ने भी इसी दिन मां दुर्गा को प्रसन्न करके भवानी तलवार प्राप्त की थी.आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को शस्त्र पूजन का विधान है. 9 दिनों की शक्ति उपासना के बाद 10वें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना के साथ चंद्रिका का स्मरण करते हुए शस्त्रों का पूजन करना चाहिए. विजयादशमी के शुभ अवसर पर शक्तिरूपा दुर्गा, काली की आराधना के साथ-साथ शस्त्र पूजा की परंपरा है.

अपराजिता-पूजा : आश्विन शुक्ल दशमी को पहले अपराजिता का पूजन किया जाता है. अक्षतादि के अष्ट दल पर मृतिका की मूर्ति स्थापना करके ‘ॐ अपराजितायै नम:’ (दक्षिण भाग में अपराजिता का), ‘ॐ क्रियाशक्तयै नम:’ (वाम भाग में जया का), ॐ उमायै नम: (विजया का) आह्वान करते हैं.

शमी पूजन : शमी (खेजड़ी) वृक्ष दृढ़ता व तेजस्विता का प्रतीक है. शमी में अन्य वृक्षों की अपेक्षा अग्नि प्रचुर मात्रा में होती है. हम भी शमी वृक्ष की भांति दृढ़ और तेजोमय हों, यही भावना व मनोभावना शमी पूजन की रही है.

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शस्त्र पूजन : शस्त्र पूजन की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है. प्राचीन समय में राजा-महाराजा विशाल शस्त्र पूजन करते रहे हैं. आज भी इ‍स दिन क्षत्रिय शस्त्र पूजा करते हैं. सेना में भी इस दिन शस्त्र पूजन किया जाता है.

सीमोल्लंघन : इतिहास में क्षत्रिय राजा इसी अवसर पर सीमोल्लंघन किया करते थे. हालांकि अब यह परंपरा समाप्त हो चुकी है, लेकिन शास्त्रीय आदेश के अनुसार यह प्रगति का प्रतीक है. यह मानव को एक परिधि से संतुष्ट न होकर सदा आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.

प्राचीनकाल से चली आ रही है शस्त्र पूजा की परंपरा
दशहरे के दिन शस्त्र पूजा करने की परंपरा आज से नहीं बल्कि प्राचीन काल से चली आ रही है. प्राचीन समय में राजा अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस दिन शस्त्र पूजा किया करते थे. साथ ही अपने शत्रुओं से लड़ने के लिए शस्त्रों का चुनाव भी किया करते थे. 9 दिन तक देवी की शक्तियों की उपासना करने के बाद दसवें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना करते हैं माता चंद्रिका का स्मरण करते हुए शस्त्र पूजन करना चाहिए. विजयादशमी पर मां भवानी और माता काली की पूजा करने के साथ साथ शस्त्र पूजन करने की पंरपरा है.

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भारतीय सेना भी करती है शस्त्र पूजा
भारतीय सेना भी हर साल दशहरे के दिन शस्त्र पूजा करती है. इस पूजा में सबसे पहले मां दुर्गा की दोनो योगनियां जया और विजया की पूजा होती है फिर अस्त्र-शस्त्रों को पूजा जाता है. इस पूजा का उद्देश्य सीमा की सुरक्षा में देवी का आशीर्वाद प्राप्त करना है. मान्यताओं के अनुसार रामायण काल से ही शस्त्र पूजा की परंपरा चली आ रही है. भगवान राम ने भी रावण से युद्ध करने से पहले शस्त्र पूजा की थी

इस तरह की जाती है शस्त्र पूजा
शस्त्र पूजा के शस्त्रों को इकट्ठा किया जाता है फिर उनपर गंगाजल छिड़का जाता है. इसके बाद सभी शस्त्रों को हल्दी व कुमकुम का तिलक लगाकर फूल अर्पित किए जाते हैं. शस्त्र पूजा में शमी के पत्ते का बहुत महत्व है. शमी के पत्तों को शस्त्रों पर चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है. शस्त्र पूजा में नाबिलग बच्चों को शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि बच्चों को किसी भी तरह का प्रोत्साहन ना मिले.

Tags: Dharma Aastha, Dharma Culture, Dussehra Festival

FIRST PUBLISHED :

October 12, 2024, 08:31 IST

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