बच्चे का मुंडन कराने पहुंची महिलाएं.
कोडरमा. नवरात्रि के दौरान देशभर में आकर्षक पूजा पंडाल का निर्माण कर माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है. इस दौरान अलग-अलग क्षेत्र में कई प्रकार की प्रथा और मान्यताएं भी हैं, जिनका लोग पूरी निष्ठा के साथ निर्वहन करते हैं. कोडरमा में करीब 400 वर्ष पुरानी दुर्गा पूजा के आयोजन में आज भी राजा के जमाने की प्रथा का निर्वहन करने के लिए विवाहित बेटियां सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर अपने गांव लौटती हैं.
झुमरी तिलैया के गुमो में आयोजित दुर्गा पूजा का इतिहास 400 वर्षों से भी अधिक पुराना है. राजा परिवार द्वारा शुरू की गई इस पूजा को उनकी कई पीढ़ियों ने निभाया था. इसके बाद जब देश से जमींदारी प्रथा समाप्त होने लगी, तब राज परिवार ने पूजा की जिम्मेदारी गुमो के सतघरवा परिवार को सौंप दी. इसके बाद आज भी परंपरा का निर्वहन करते हुए पूरे श्रद्धा भाव से पूजा का आयोजन किया जा रहा है.
मुंडन से पहले बलि
कलश स्थापना से नवमी तक पूरे नौ दिन तक यहां बलि देने की भी प्रथा है. नवमी के दिन गांव के अलावे मन्नत पूरा होने पर दूरदराज से भी लोग यहां बकरे की बलि देने पहुंचते हैं. नवमी को यहां करीब 1200 बकरे की बलि दी गई, जबकि पूरे नवरात्र के दौरान करीब 2200 बकरों की बलि दी गई.
मुंडन कराना बहुत जरूरी
मंदिर के पुरोहित दशरथ पांडेय ने बताया कि यहां गुमानी देवता निवास करते हैं. उनके द्वारा पूरे गांव की रक्षा की जाती है. बिहार के नवादा से गांव पहुंची अर्पिता कुमारी ने बताया कि गांव के जो बेटे होते हैं, उनका मुंडन होना तो यहां आवश्यक है ही, गांव की बेटियां जो विवाह के बाद दूसरे राज्य या दूसरे शहर में बस जाती हैं, उन्हें भी अपने संतान का मुंडन कराने वापस यहां लौटना पड़ता है.
गांव लौटी बेटियां
सौरव पांडेय ने बताया कि यहां मुंडन कराने से बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य, उत्तम भविष्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यहां मुंडन से पहले सभी को बकरे की बलि देना अनिवार्य है. वहीं, पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी से लक्ष्मी कुमारी भी अपने बच्चे का मुंडन कराने गांव लौटी थी. गांव की दर्जनों बेटियां अपने बच्चे का मुंडन कराने देश के अलग-अलग शहरों से गांव पहुंचीं.
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FIRST PUBLISHED :
October 12, 2024, 10:46 IST