दशहरा पर क्यों किया जाता है शस्त्र पूजन
शुभम मरमट, उज्जैन: दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, पूरे भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह पर्व भगवान राम की रावण पर विजय का प्रतीक है और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है. इस दिन को खास बनाने वाले अनेक अनुष्ठानों में से एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान शस्त्र पूजन है. इस पूजा का धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है, जो शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है. उज्जैन के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित रवि शुक्ला से हमने इस पूजा के महत्व, इतिहास और विधान के बारे में जानकारी प्राप्त की.
शस्त्र पूजन की परंपरा और इसका आरंभ
दशहरे पर शस्त्र पूजन की शुरुआत के विषय में विद्वानों के बीच अलग-अलग मत हैं, लेकिन यह माना जाता है कि यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. यह पूजा विशेष रूप से योद्धाओं के बीच लोकप्रिय रही है, जो युद्ध में जाने से पहले अपने शस्त्रों का पूजन करते थे. पंडित रवि शुक्ला बताते हैं, “शस्त्र पूजन हमारी रक्षा, शक्ति और विजय का प्रतीक है. यह परंपरा केवल योद्धाओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह सभी के लिए शक्ति और आत्म-सुरक्षा का प्रतीक बन गई है.”
दशहरे के दिन रावण पर भगवान राम की जीत को याद करते हुए, शस्त्रों की पूजा की जाती है. यह अनुष्ठान युद्ध और संघर्ष में विजय प्राप्त करने के लिए भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका है.
शस्त्र पूजन की विधि
शस्त्र पूजन के लिए सही विधि का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है. दशहरे के दिन सुबह स्नान कर नए वस्त्र धारण करने के बाद शस्त्रों को एक साफ स्थान पर रखा जाता है. शस्त्रों को अच्छी तरह से साफ किया जाता है और उन पर फूल, अक्षत, हल्दी चढ़ाई जाती है. पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:
“शस्त्र देवता पूजनम्, रक्षा कर्ता पूजनम्.”
इस मंत्र के माध्यम से शस्त्र देवताओं से सुरक्षा, शक्ति और विजय की कामना की जाती है. पूजा के बाद, शस्त्रों को आदरपूर्वक उनके स्थान पर रखा जाता है और उनकी देखभाल की जाती है.
शस्त्र पूजन का महत्व
पंडित रवि शुक्ला के अनुसार, शस्त्र पूजन करने से कई आध्यात्मिक और मानसिक लाभ होते हैं. यह अनुष्ठान हमें सुरक्षा और शक्ति प्रदान करता है, साथ ही जीवन में आने वाले कठिन संघर्षों में विजय प्राप्त करने की शक्ति भी मिलती है. शस्त्र पूजन से आत्मविश्वास बढ़ता है, परिवार की सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित होती है, और हमारे भीतर साहस और संकल्प शक्ति का विकास होता है. यह पूजा हमारी आंतरिक और बाहरी सुरक्षा का प्रतीक है, जिससे हम हर संकट का सामना कर सकते हैं.
शुभ मुहूर्त
इस वर्ष दशहरे पर शस्त्र पूजन के लिए विशेष शुभ मुहूर्त निम्नलिखित हैं:
दोपहर 02:03 से 02:49 तक (सबसे श्रेष्ठ)
सुबह 11:50 से दोपहर 12:36 तक
दोपहर 12:13 से 01:39 तक
अमृत मुहूर्त: 03:06 से 04:33 तक
निष्कर्ष
दशहरे पर शस्त्र पूजन करना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह हमारी सुरक्षा और शक्ति का प्रतीक है. यह पूजा हमें आत्मविश्वास, साहस, और दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करती है. उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित रवि शुक्ला के अनुसार, इस पूजा से परिवार की समृद्धि और सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है. अतः दशहरे के दिन शस्त्र पूजन करना न केवल परंपरा है, बल्कि यह हमें बुराई पर अच्छाई की जीत की याद दिलाता है और जीवन में संघर्षों का सामना करने के लिए प्रेरित करता है.
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FIRST PUBLISHED :
October 12, 2024, 10:41 IST
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.