Delhi Election Results 2025: दिल्ली में 27 सालों बाद हर जगह भगवा नजर आ रहा है. 1998 में सुषमा स्वराज बीजेपी की आखिरी मुख्यमंत्री थीं. शीला दीक्षित ने पहले बीजेपी से सत्ता छीनी और फिर अरविंद केजरीवाल तरसाते रहे. 2025 में बीजेपी ने ऐसी रणनीति बनाई कि अरविंद केजरीवाल चारों खाने चित्त हो गए. यहां तक की खुद अपनी सीट भी प्रवेश वर्मा से हार बैठे, लेकिन आखिर 2020 के बाद ऐसा क्या हुआ कि केजरीवाल को ये झेलना पड़ा?
चुनाव आयोग के इस ग्राफ को देखकर आपको अंदाजा हो गया होगा कि बीजेपी (BJP) को कमोबेश दिल्ली के हर इलाके से जन समर्थन मिला है. मगर, ये अचानक कैसे हुआ? कारण ये है कि आखिरी समय तक बीजेपी और आप में कांटे की टक्कर दिख रही थी. दरअसल, ये 2020 के चुनावों के बाद से ही दिखने लगा था. अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) 2020 विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ये मान बैठे कि अब उन्हें दिल्ली में कोई चुनौती देने वाला नहीं है. कांग्रेस (Congress) और बीजेपी दोनों को वो समेट चुके थे. बस, इसके बाद केजरीवाल गलतियों पर गलतियां करते गए और बीजेपी उन गलतियों पर जीत की एक-एक सीढ़ी बनाती गई.
सबसे पहली गलती कोरोना काल के दौरान अरविंद केजरीवाल की तरफ से हुई. वो दिल्ली के स्वास्थ्य मॉडल को अपना सबसे बड़ा काम बताते नहीं थकते थे. मगर कोरोना के समय दिल्ली के लोगों ने जो दर्द झेला, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. अरविंद केजरीवाल कोरोना के समय जमीन पर खुद भी बहुत कम नजर आए. स्थिति बिगड़ती गई. लोगों को अस्पतालों में इलाज तक नहीं मिल पा रहा था. इसी दौरान उन्होंने तब्लीगी जमात पर भी गैर-जरूरी टिप्पणी कर दी. मुस्लिम मतदाता जो केजरीवाल के साथ अब तक चट्टान के साथ खड़े थे, उन्हें जोरदार झटका लगा. दिल्ली दंगों को लेकर मुस्लिम पहले ही केजरीवाल को संदेह से देख रहे थे. तब्लीगी जमात पर टिप्पणी ने उन्हें केजरीवाल के खिलाफ उदासीन कर दिया.
इसी दौरान केजरीवाल को अपने लिए घर बनाने की सूझी और उसमें आरोप है कि बेहिसाब पैसे खर्च किए गए. कांग्रेस ने आरोप लगाया तो बीजेपी इस मुद्दे को ले उड़ी. नाम दे दिया शीशमहल, ये केजरीवाल की छवि के लिए घातक साबित हुआ. इसी दौरान केजरीवाल पर दिल्ली शराब घोटाले के आरोप लगने लगे. केजरीवाल ने दिल्ली शराब नीति को बदल तो दिया, लेकिन मामला आगे बढ़ चुका था. केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को जेल जाना पड़ा.
केजरीवाल की इमेज पर लगा दाग
मामला यहीं तक रहता तो भी केजरीवाल सरकार शायद नहीं जाती. केजरीवाल अपने वादों पर भी नहीं टिके. 2015 चुनाव में किए वादों को लगभग केजरीवाल ने पूरा किया था. 2020 तक जमीन पर काम दिखने लगा था. चाहे वो स्कूलों को बेहतर करना हो या बिजली सप्लाई. हालांकि, ये सब काम कांग्रेस के संदीप दीक्षित दावा करते रहे हैं कि शीला दीक्षित सरकार ही 2012-13 में ही कर गई थी, लेकिन जमीन पर असर दिखने में एक-दो साल लगे. मगर, जनता तो ये देखती है कि किसके कार्यकाल में व्यवस्था ठीक हुई और इसी का केजरीवाल को फायदा मिला. मगर 2020 की जीत ने केजरीवाल को आराम के मूड में ला दिया. यमुना की सफाई का वादा, वायु प्रदूषण को हटाने का वादा, कच्ची नौकरियों को पक्की करने का वादा, दिल्ली की सड़कों को विदेशों की तर्ज पर बनाने का वादा सब 2025 आते-आते भी वादे ही बनकर रह गए. पानी को लेकर दिल्ली में इस गर्मी कोहराम मचा. पानी जहां आ भी रहा था, वहां भी गंदा पानी पहुंचने की शिकायतें आम थीं. दिल्ली की जनता को लगने लगा कि केजरीवाल वादे पूरे नहीं कर रहे. रही-सही कसर केजरीवाल की इमेज पर लगे दागों ने पूरी कर दी. केजरीवाल की चमक फीकी पड़ने लगी थी.
कांग्रेस से गठबंधन न करना बड़ी भूल
इसके बाद भी केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव अकेले लड़ने का फैसला कर लिया. कांग्रेस को एक सिरे से छांट दिया. कांग्रेस के साथ-साथ आम वोटरों के लिए भी ये किसी झटके से कम नहीं था. जो बीजेपी को वोट नहीं देना चाहते थे, उन्हें उम्मीद थी कि कांग्रेस के साथ अगर सरकार बनेगी तो शायद दिल्ली के शासन व्यवस्था में कुछ बदलाव आए, मगर केजरीवाल ने इस पर पानी फेर दिया. कांग्रेस ने केजरीवाल को सबक सिखाने और अपनी जमीन वापस लेने की ठानी और संदीप दीक्षित जैसे अपने बड़े नेता को केजरीवाल के सामने खड़ा कर दिया. वहीं अलका लांबा, रागिनी नायक आदि जाने पहचाने चेहरों को टिकट दिया. साथ ही राहुल और प्रियंका गांधी खुद दिल्ली के चुनाव प्रचार में केजरीवाल को घेरने लगे. इधर, बीजेपी 2020 से अपनी बिसात बिछाती जा रही थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रवेश वर्मा और रमेश बिधूड़ी का टिकट काटकर उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारी करने को कह दिया. इन दोनों के विधानसभा चुनाव लड़ने से दिल्ली में केजरीवाल के मुकाबले कौन वाला नैरेटिव धीरे-धीरे कम होने लगा. केजरीवाल चाहकर भी इन दोनों नेताओं को घेर नहीं पाए. प्रवेश वर्मा ने तो केजरीवाल को हरा भी दिया. बिधूड़ी जरूर चुनाव हार गए, लेकिन पूरे चुनाव चर्चा में बने रहे और आतिशी को उलझाए रखा. अब केजरीवाल ने हार तो स्वीकार कर ली है, लेकिन उन्होंने अपने वीडियो संदेश में साफ किया है कि वो दिल्ली में बने रहेंगे. देखना है, केजरीवाल अब कौन सी नई भूमिका अपने लिए चुनते हैं.
VIDEO: अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव में हार स्वीकार की, बीजेपी को दी बधाई