Google Meta vs Indian Media: गूगल और फेसबुक इंटरनेट पर खबरों के गेटवे की तरह काम करते हैं. दोनों कंपनियों के दबदबे से न्यूज कंपनियों के पास अपने खबरों को डिजिटल पाठकों तक पहुंचाने के लिए हाथ बंधे हैं. अपनी खबरों को इन दोनों के जरिए ही वे पाठकों तक पहुंचाती हैं. पब्लिशर्स को फायदा तब होता है, जब ये प्लैटफॉर्म पाठकों को वेबसाइट तक लेकर आते हैं. गूगल और फेसबुक पर आधे से ज्यादा लोग खबरों की तलाश में पहुंचते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ कैनबरा की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया के आधे से ज्यादा लोगों के मुताबिक अगर सर्च रिजल्ट में उन्हें खबरें न मिलें, तो ये दोनों प्लैटफॉर्म उनके लिए किसी काम के नहीं हैं.
गूगल और फेसबुक न्यूज सर्च कर प्लैटफॉर्म पर आ रहे पाठकों के इस मौके को अच्छी तरह भुनाते हैं. वे इसे मॉनिटाइज करते हैं. इसके साथ ही उनका डेटा जुटाकर ऐड की टारगेटिंग के लिए उसका इस्तेमाल करते हैं. इससे ये फ्लैटफॉर्म अरबों कूटते हैं.
गूगल और मेटा की कमाई जान चौक जाएंगे
भारत में गूगल की आमदनी लगातर बढ़ रही है. मार्च 2024 में खत्म हुए फाइनैंशल इयर में गूगल के शुद्ध मुनाफे में 6.1 की बढ़ोतरी हुई थी और यह बढ़कर 1,424.9 करोड़ हो गया था. कंपनी की कुल आमदनी 7,097.5 करोड़ रुपये थी.
फेसबुक और इंस्टा वाली ग्लोबल सोशल मीडिया कंपनी मेटा का भी भारत में मुनाफा बढ़ा है. 2024 में मेटा इंडिया के विज्ञापन राजस्व में 24 फीसद का उछाला आया और यह बढ़कर 22,730 करोड़ हो गया.
भारत का हक मार रहीं
भारत में मीडिया पब्लिशर्स की शिकायत रही है कि खबरों को जुटाने, उसे एडिट और पब्लिश करने में बहुत संसाधन लगते हैं. गूगल-फेसबुक जैसी कंपनियां बिना कुछ किए-धरे पैसा कूट रही हैं और उनके रेवेन्यू में हक मार रही हैं. ऐसे में एक कानून जरूरी है.
संकट में नौकरियां
साबुन और खबर के ऐड रेवेन्यू में क्या है फर्क? गूगल सर्च में आने वाले न्यूज कंटेंट को अलग तरह से क्यों ट्रीट करना चाहिए, इसकी वजह है कि ऐड रेवेन्यू पर न्यूज पब्लिशर का भी दावा रहता है. दूसरे ऑनलाइन बिजनेस में ऐसा नहीं होता है. भारत में डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स के रेवेन्यू में गिरावट आ रही है. नतीजतन पत्रकारिता से जुड़ी नौकरियों पर संकट बढ़ा है. कई छोटे पब्लिशर्स को अपने ऑपरेशन बंद करने पड़े हैं.