शिमला. दिल्ली में हिमाचल भवन की नीलामी के आदेशों के चलते सुक्खू सरकार निशाने पर आ गई है. सरकार की तरफ से अब इस मामले में तथ्य सामने रखे गए हैं. भारतीय जनता पार्टी जहां इस मामले में सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है. हालांकि, भाजपा के राज में ही यह प्रोजेक्ट कंपनी को दिया गया था और 2017 से लेकर 2022 तक भाजपा की सरकार हिमाचल प्रदेश में रही और उसकी तरफ से भी ज्यादा कुछ इस मामले में नहीं किया गया. 2022 से 2024 तक हिमाचल की सुक्खू सरकार ने कोर्ट में इस मामले में लड़ाई लड़ी. लेकिन फैसला कंपनी के पक्ष में सुनाया गया.
दरअसल, साल 2009 में हिमाचल प्रदेश की धूमल सरकार ने सेली हाईड्रो प्रोजेक्ट कंपनी को यह प्रोजेक्ट आवंटित किया. 320 मेगावॉट का यह प्रोजेक्ट लाहौल स्पीति में लगना था. 2006 की ऊर्जा नीति के तहत नियमों के अनुसार, कंपनी ने सरकार प्रति मेगावाट 20 लाख रुपये के हिसाब से पैसे देने की हामी भरी. इसी तरह सरकार को कंपनी ने अपफ्रंट मनी के तौर पर 64 करोड़ रुपये दिए. हिमाचल सरकार को लाहौल स्पीति में जहां पर यह प्रोजेक्ट लगना था, वहां पर बुनियादी सुविधाएं मुहैया करवानी थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. स्थानीय लोग भी प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे थे. 9 साल बाद कंपनी ने इस प्रोजेक्ट को सरेंडर कर दिया और अपने 64 करोड़ रुपये वापस मांगे. हालांकि, सरकार ने पैसे देने से इंकार कर दिया और फिर 2018 में कंपनी ने हाईकोर्ट का रास्ता अपनाया. हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई हुई. अब अनुमान है कि ब्याज सहित यह राशि बीते 13 साल में 150 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है.
एक साल पहले आया था आदेश
13 जनवरी 2023 को हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिए कि कंपनी का 64 करोड़ रुपये 7 फीसदी ब्याज दर के साथ लौटाया जाए, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया. इस मामले में सरकार और कंपनी के बीच मध्यस्था की भी कोशिश की गई लेकिन बात नहीं बनी और फिर से मामला कोर्ट में उठा. 18 नवंबर 2024 को कोर्ट ने इस मामले में फैसला दिया कि सरकार यदि पैसा नहीं लौटाती है तो दिल्ली में हिमाचल भवन की संपति को कंपनी नीलाम कर सकती है.
क्या कहते हैं सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू
विवाद बढ़ने के बाद हिमाचल प्रदेश की सीएम सुक्खू ने मंगलवार को मीडिया के सामने इस पूरे मामले को रखा. उन्होंने बताया कि 2009 में भाजपा सरकार में यह प्रोजेक्ट दिया गया था. 64 करोड़ रुपये कोई बढ़ा अमाउंट नहीं है. लेकिन सरकार कोर्ट में लड़ाई लड़ रही है. सीएम ने कहा कि ऊर्जा नीति के तहत यदि कोई कंपनी प्रोजेक्ट पूरा नहीं करती है तो अपफ्रेंट मनी को जब्त कर लिया जाता है. वह कहते हैं कि भाजपा सरकार ने हिमाचल का बेड़ा गर्क किया और 5 हजार करोड़ की रेवड़ियां बांटी.
उधर, हिमाचल प्रदेश के एडवोकेट जनरल अनूप रतन ने न्यूज़ 18 से बातचीत में कहा कि यह बहुत बड़ा मामला नहीं है. हिमाचल भवन का नाम आ गया तो यह बड़ा हो गया और हाईकोर्ट में अभी एक अपील पेंडिंग है. सरकार ने हाइकोर्ट को पैसा जमा नहीं करवाया था, जिसकी वजह से ये हुआ. उन्होंने बताया कि सेली हाइड्रो प्रोजेक्ट से जुड़ा ये मामला है और 20 लाख पर मेगावाट के हिसाब से प्रीमियम देना था. हिमाचल को 14 फीसदी मुफ्त बिजली भी मिलनी थी और हिमाचल सरकार को 200 करोड़ रुपये बिजली जनरेशन से आना था. लेकिन कंपनी के प्रोजेक्ट पूरा ना करने से हिमाचल को नुकसान हुआ है.
क्या कहता है विपक्ष
हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम जयराम ठाकुर ने इस मामले पर कहा कि जब से कांग्रेस सरकार बनी है, तब से प्रदेश की बदनामी हो रही है. कभी टॉयलेट टैक्स तो कभी समोसा कांड. वह आने वाले विधानसभा सत्र के दौरान इन मामलों को उठाएंगे. उन्होंने जमकर सुक्खू सरकार पर ताजा मामलों को लेकर हमला बोला है. अहम बात है कि दिल्ली में भी भाजपा नेताओं ने इस विवाद के जरिये कांग्रेस पर हमला बोला है.
280 करोड़ के मामले में जीती थी सरकार
जुलाई 2024 में हाल ही में सुक्खू सरकार को ऐसे ही एक मामले में जीत मिली थी. बिजली कंपनी भी अपना 280 करोड़ रुपये का अपफ्रंट मनी मांग रही थी. किन्नौर जिले में 969 मेगावाट की जंगी थोपन जलविद्युत परियोजना से जुड़े मामले में हाईकोर्ट की सिंगल बैंच ने फैसला कंपनी के पक्ष में सुनाया था और निजी कंपनी को 280 करोड़ रुपये की प्रीमियम राशि वापस देने के आदेश दिए थे. लेकिन बाद में सरकार डबल बैंच में गई थी और सिंगल बैंच के फैसले को पलट दिया था.
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FIRST PUBLISHED :
November 20, 2024, 11:17 IST