जगद्दल: आजादी के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 128वीं जयंती पर आज पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है। नेताजी की जयंती को 'पराक्रम दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है। नेताजी से जुड़ी कई चीजें आज भी जीवंत हैं। ऐसा ही एक मामला पश्चिम बंगाल का से जुड़ा है। उत्तर 24 परगना जिले में श्यामनगर रेलवे स्टेशन से महज डेढ़ किलोमीटर दूरी पर नोआपाड़ा थाना में आज भी नेताजी की चाय की कप और प्लेट रखी हुई है।
11 अक्टूबर 1931 को गिरफ्तार कर थाने लाए गए थे नेताजी
दरअसल, इस थाने में पुलिसकर्मी हर साल 23 जनवरी को न केवल नेताजी की जयंती मनाते हैं, बल्कि स्टेशन पर उनके संक्षिप्त प्रवास को भी याद किया जाता है। नेताजी को साल 1931 में अंग्रेजों ने हिरासत में लिया था। लगभग 93 साल पहले, 11 अक्टूबर 1931 को शाम पांच बजे के आसपास नेताजी को ब्रिटिश पुलिस ने उस गिरफ्तार कर लिया था। जब वे जगद्दल के गोलघर में बंगाल जूट मिल मजदूर संगठन की बैठक को संबोधित करने जा रहे थे।
चाय पीने से मना कर दिए थे नेताजी
नेताजी को नोआपाड़ा पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां उन्हें कुछ घंटों तक हिरासत में रखा गया। हिरासत के दौरान, बोस को चाय की पेशकश की गई, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था। क्योंकि यह एक ब्रिटिश अधिकारी द्वारा दी गई थी। उस अवसर पर इस्तेमाल किए गए सिरेमिक कप और तश्तरी को पुलिस स्टेशन द्वारा महान स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि के रूप में सावधानीपूर्वक संरक्षित किया गया है। सम्मान के प्रतीक के रूप में, पुलिस स्टेशन ने अपने परिसर के अंदर एक छोटा सा स्मारक स्थापित किया।
थाने में एक कमरे को बनाया गया पुस्तकालय
इसमें संरक्षित कप और तश्तरी के बगल में नेताजी की एक तस्वीर रखी गई है। एक कमरे को पुस्तकालय का स्वरूप प्रदान किया गया है जिसमें नेताजी के जीवन और विरासत पर किताबें रखी गई हैं। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘‘हम खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि हमें इस पुलिस स्टेशन में काम करने का मौका मिला, जहां हमारे प्रिय नेताजी ने कदम रखा था। वे हमारे लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं। यहां उनके आगमन के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं और हमारा मानना है कि इतिहास के इस अध्याय के बारे में सभी को जानना चाहिए।
12 अक्टूबर, 1931 को रिहा किए गए थे नेताजी
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, बोस को बैठक के लिए जाते समय ब्रिटिश पुलिस ने रोक लिया था और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था, क्योंकि उन्हें डर था कि नेताजी के भाषण से अशांति भड़क सकती है। अधिकारी ने कहा कि नेताजी यहां कुछ घंटे तक रुके और तत्कालीन प्रभारी अधिकारी ने उन्हें चाय की पेशकश की, जिसे उन्होंने विनम्रता से अस्वीकार कर दिया। नेताजी को 12 अक्टूबर, 1931 को बैरकपुर के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट के हस्तक्षेप के बाद आधी रात के आसपास रिहा किया गया था।
इनपुट- भाषा