मंडी. हिमाचल प्रदेश की ऊंची-ऊंची चोटियों पर कई बड़े ग्लेशियर मौजूद हैं, जो पिघल कर कई जल धाराओं और नदियों का निर्माण करते हैं. गर्मियों के दौरान पिघलती बर्फ से इन नदियों का पानी बेहद शुद्ध, साफ और ठंडा होता है. इसी विशेषता को ब्रिटिश सरकार ने पहचाना और इसी के चलते अंग्रेजों ने हिमाचल और उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ों पर स्विट्जरलैंड से ट्राउट मछली का बीज मंगवाया था. हिमाचल के ठंडे जलवायु और ग्लेशियर से पिघलते शुद्ध पानी को ट्राउट मछली ने बखूबी अपनाया. कुल्लू की तीर्थन घाटी और मंडी की बरोट वैली में बहने वाली नदियों का पानी बेहद शुद्ध और ठंडा है, जहां अब यह विदेशी ब्रीड पाई जाती है.
हिमाचल प्रदेश में ट्राउट मछली का इतिहास
हिमाचल प्रदेश में पहली बार 1909 में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा ट्राउट मछली का बीज लाकर नदी-नालों में डाला गया था. इसके बाद से कुल्लू और मंडी की कुछ नदियों और उनके ठंडे पानी में ट्राउट मछली का उत्पादन लगातार बढ़ता रहा, जिससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिला. हालांकि, हिमाचल प्रदेश में ट्राउट मछली पालन की तकनीक को अब तक अपडेट नहीं किया गया है और यहां की तकनीक पुरानी मानी जाती है. मछली पालन विभाग का कहना है कि वह किसानों की सरकार पर निर्भरता को कम करना चाहता है. इसके लिए सब्सिडी के माध्यम से बीज और चारा तैयार करने वाले संयंत्र लगाने में निजी क्षेत्र की मदद ली जा रही है.
खाने में बेहद स्वादिष्ट ट्राउट मछली
ट्राउट मछली को बड़े चाव से खाया जाता है, क्योंकि यह विदेश की ब्रीड है और ठंडे एवं शुद्ध पानी में पाई जाती है, जिससे इसका स्वाद बेहद लाजवाब होता है. इसे रोस्ट कर खाने का प्रचलन ज्यादा है, खासकर सर्दियों में इस मछली को खाने के लिए लोगों की होड़ लगी रहती है. हिमाचल के कुल्लू और मंडी की बरोट वैली पहुंचने वाले पर्यटक भी इस मछली का आनंद लेने के लिए यहां आते हैं.
ट्राउट मछली के दाम
ट्राउट मछली पालन करने वाले इसे 1000 रुपये प्रति किलो बेचते हैं, और यदि मछली का आकार बड़ा हो, तो इसका दाम 1500 रुपये प्रति पीस तक हो सकता है. अगर आप इसे पकी-पकाई खाना चाहते हैं, तो इसके लिए 200 रुपये अतिरिक्त शुल्क के साथ इसका आनंद लिया जा सकता है.
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FIRST PUBLISHED :
September 24, 2024, 13:47 IST