Last Updated:January 22, 2025, 18:01 IST
Retail Inflation : खुदरा महंगाई को नीचे लाने के लिए रिजर्व बैंक के एक अधिकारी ने बड़ा सुझाव दिया है. इस बारे में साफ कहा गया है कि खुदरा महंगाई को अलग हिस्सों में बांट दिया जाए तो इससे स्थिति को ज्यादा बेहतर ...और पढ़ें
नई दिल्ली. महंगाई से परेशान रिजर्व बैंक ने इससे निपटने का धांसू आइडिया दिया है. आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति के सदस्य नागेश कुमार ने सुझाव दिया है कि खाद्य कीमतों के साथ और उसके बगैर वाली दो मुद्रास्फीति दरें होनी चाहिए, ताकि नीति-निर्माण के लिए प्रासंगिक दरों को ध्यान में रखा जा सके. इसका मतलब है कि अगर खुदरा महंगाई को खाने-पीने की चीजों की कीमतों के साथ और उसके बिना जारी किया जाए तो इसके असल असर को पहचानने में आसानी होगी.
आर्थिक समीक्षा 2023-24 में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने दर निर्धारण की व्यवस्था से खाद्य मुद्रास्फीति को बाहर रखने की वकालत करते हुए कहा था कि मौद्रिक नीति का खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ता है, क्योंकि वे आपूर्ति पक्ष के दबावों से निर्धारित होती हैं. समग्र उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में खाद्य का भारांश 46 प्रतिशत है. इसे 2011-12 में तय किया गया था और इस पर फिर से विचार करने की जरूरत है.
क्यों दिया ऐसा सुझाव
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य कुमार ने खाद्य मुद्रास्फीति को दर निर्धारण से बाहर रखने के सुझावों पर पूछे गए एक सवाल पर कहा, ‘मुझे लगता है कि हमारे पास दो मुद्रास्फीति दरें होनी चाहिए, एक खाद्य मुद्रास्फीति के साथ और दूसरी खाद्य मुद्रास्फीति के बगैर. इससे विशेष नीतिगत पैमाने से देखने पर प्रासंगिक दर पर विचार किया जा सकता है.’ भारत ने 2016 में मुद्रास्फीति का लक्ष्य-निर्धारण ढांचा पेश किया था जिसमें भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को खुदरा मुद्रास्फीति दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर सीमित रखने का आदेश दिया गया है.
अभी खाने-पीने की चीजों का ज्यादा असर
रिजर्व बैंक खुदरा मुद्रास्फीति में उतार-चढ़ाव के आधार पर मानक ब्याज दरें तय करता है. खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों पर कुमार ने कहा कि खुदरा मुद्रास्फीति दिसंबर में चार महीने के निचले स्तर 5.22 प्रतिशत पर आ गई. इस 5.2 प्रतिशत मुद्रास्फीति का एक बड़ा हिस्सा खाद्य कीमतों में तेजी और फिर सब्जियों की कीमतों में मौसमी असंतुलन के कारण है. मंडियों में आपूर्ति बढ़ने पर यह अपने आप ठीक हो जाता है.
अस्थायी है महंगाई का नीचे आना
भारत की वर्तमान व्यापक आर्थिक स्थिति पर एमपीसी सदस्य ने कहा कि चालू वित्तवर्ष की दूसरी तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि का सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर आ जाना एक अस्थायी, क्षणिक सुस्ती थी. कुमार ने कहा कि यह सुस्ती चुनाव आचार संहिता के कारण पहली तिमाही में सरकारी पूंजीगत व्यय में बहुत अधिक कमी के विलंबित प्रभाव को दर्शाती है, लेकिन दूसरी तिमाही से पूंजीगत व्यय में तेजी आने लगी. हमें वित्तवर्ष की दूसरी छमाही में मजबूत वृद्धि की उम्मीद है. कुल मिलाकर मुझे लगता है कि हम 6.5 प्रतिशत या 6.6 प्रतिशत के आसपास की वृद्धि हासिल कर लेंगे.’
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
January 22, 2025, 18:01 IST