Last Updated:January 11, 2025, 19:31 IST
इस साल यात्रा मकर संक्रांति के पहले रविवार 12 जनवरी 2025 को निकाली जाएगी. यात्रा के समापन पर बारह ज्योतिर्लिंगों सहित मां नर्मदा की 5100 बातियों से काकड़ा आरती की जाएगी.
खरगोन: मध्य प्रदेश के खरगोन की धार्मिक और पर्यटन नगरी महेश्वर को गुप्त काशी भी कहा जाता है. हर साल यहां विश्व की एकमात्र महामृत्युंजय शिव रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों के श्रद्धालु शामिल होते हैं. श्रद्धालु भगवान के रथ (लकड़ी से बना गाढ़ा) को खींचकर पुण्यलाभ कमाते हैं. इस साल यात्रा मकर संक्रांति के पहले रविवार 12 जनवरी 2025 को निकाली जाएगी. यात्रा के समापन पर बारह ज्योतिर्लिंगों सहित मां नर्मदा की 5100 बातियों से काकड़ा आरती की जाएगी.
यह यात्रा पिछले 18 सालों से महामृत्युंजय शैक्षणिक संस्था द्वारा महेश्वर की पावन धरा पर निरंतर निकाली जा रही है. इस साल यात्रा का 19वां साल है. इसकी एक खासियत यह भी है कि इसमें बारह ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृति के दर्शन होते हैं. इस साल नर्मदा आरती के लिए शुद्ध देशी घी से 5100 काकड़ा बाती तैयार की गई है. आरती से पहले भगवान को नौका विहार भी कराएंगे.
2007 में पहली बार निकाली गई थी महामृत्युंजय रथ यात्रा
आयोजन समिति प्रमुख डॉ. मनस्वी और मानवी ने बताया कि गुरु हरि विलास की आज्ञा से साल 2007 में पहली बार महामृत्युंजय रथ यात्रा “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः” उद्देश्य से निकाली गई थी. इसके बाद यह यात्रा निरंतर जारी रही. रथ यात्रा के एक दिन पहले शनिवार की रात में भगवान शिव की 44 उपचार से पूजा की जाती है. रविवार की दोपहर शहर के लक्ष्मीनारायण कॉलोनी स्थित स्वाध्याय भवन से यात्रा प्रारंभ होगी और रात 7:30 बजे नर्मदा तट स्थित सामने घाट पर मां नर्मदा की काकड़ा आरती होगी, जिसमें 5 हजार से ज्यादा श्रद्धालु शामिल होंगे. यात्रा के दौरान महिलाएं निरंतर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करेंगी.
महेश्वर में ही भगवान शिव ने की थी नंदी की सवारी
डॉ. मनस्वी और श्रद्धालु अशोक बंसल के अनुसार, पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि एक राक्षस के वध के लिए भगवान शिव ने पहली बार महेश्वर में ही नंदी की सवारी की थी. महेश्वर को देव भूमि कहा जाता है और इसे गुप्त काशी भी कहा जाता है. महेश्वर अध्यात्म की दृष्टि से बड़ा महत्व रखता है. आधुनिक काल में शिव की सबसे बड़ी उपासक मातोश्री अहिल्या बाई होलकर ने भी महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया था.
महामृत्युंजय शिव रथ यात्रा न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक महत्व भी रखती है. इस यात्रा का आयोजन महेश्वर के लोगों के लिए गर्व का विषय है और यह उन्हें अपनी सांस्कृतिक धरोहर और आध्यात्मिकता से जुड़ने का अवसर प्रदान करती है.