शुभम मरमट / उज्जैन: विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में केवल अकाल मृत्यु के भय से ही मुक्ति नहीं मिलती है. बल्कि यहां मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. भेरुगढ़ क्षेत्र में मोक्षदायिनी शिप्रा तट पर स्थित अत्यंत प्राचीन मंदिर “सिद्धवट” के नाम से विख्यात है. यहां 12 महीने भक्तों का तांता लगा रहता है. विशेष रूप से पितृ पक्ष के दौरान दूर-दूर से श्रद्धालु तर्पण व पिंडदान करने के लिए आते हैं. मंदिर परिसर में एक प्राचीन वट वृक्ष भी स्थित है. जिसके बारे में मान्यता है कि यहां दूध अर्पित करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
सम्राट विक्रमादित्य ने इसी वट वृक्ष के नीचे तपस्या की थी. तप से प्राप्त शक्तियों के बल पर उन्होंने बेताल को अपने वश में किया था. सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा ने भी सिद्धवट का पूजन कर धर्म का प्रचार श्रीलंका सहित कई देशों में किया.
सीधे पितरों को प्राप्त होता है दूध
पंडित श्याम पंचोली के अनुसार, मुगल शासनकाल में इस वट वृक्ष को कटवाने की कोशिश की गई थी. इसकी शाखाओं पर लोहे के तवे जड़ दिए गए थे. लेकिन वट वृक्ष की शाखाएं लोहे के तवों को तोड़कर फिर से बाहर निकल आईं. स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में बताया गया है. इस वट वृक्ष को दूध अर्पित करने से वह सीधे पितरों तक पहुंचता है इस मान्यता के चलते देशभर से श्रद्धालु यहां तर्पण करने आते हैं.
माता पार्वती ने लगाया था वट वृक्ष
स्कंद पुराण के अनुसार, यह वट वृक्ष माता पार्वती द्वारा लगाया गया था. यहां पर पूजा करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. बल्कि मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. पितृ पक्ष के दौरान यहां हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु तर्पण और पिंडदान के लिए आते हैं. इस स्थान को वंश वृद्धि और सुख-समृद्धि के लिए भी सिद्ध माना जाता है.
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FIRST PUBLISHED :
September 25, 2024, 12:04 IST