खरगोन में हिरण्यकश्यप वध मंचन.
खरगोन. मध्य प्रदेश के खरगोन में दशहरा पर एक अनोखी और प्राचीन परंपरा निभाई जाती है, जो शायद देश में कहीं और देखने को न मिले. यहां रावण दहन से पहले हिरण्यकश्यप का वध किया जाता है. इसके बाद ही दशहरा मनाने की परंपरा है. यह खास आयोजन खरगोन के भावसार मोहल्ले के प्राचीन श्री सिद्धनाथ मंदिर प्रांगण में हर साल नवमी की रात को होता है, जिसे देखने के लिए सैकड़ों लोग इकट्ठा होते हैं.
406 साल पुरानी परंपरा
दरअसल, खरगोन के भावसार समाज ने इस अनोखी परंपरा की शुरुआत 406 साल पहले की थी. नवरात्रि के दौरान मां अंबे और मां महाकाली की सवारी खप्पर में निकलती है, जो अष्टमी और नवमी की मध्य रात्रि से सुबह तक चलती है. इस दौरान समाज के लोग मां अम्बे, महाकाली, श्री गणेश आदि का रूप का रूप लेकर स्वांग रचते हैं. गरबियों पर झूमते हैं. खास बात ये कि इस आयोजन में भगवान नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप का वध किया जाता है और इसके बाद दशहरा मनाया जाता है.
कैसे होता है आयोजन?
इस आयोजन की शुरुआत मां अंबे और महाकाली की सवारी से होती है. अष्टमी की रात मां अंबे और नवमी की रात को मां महाकाली शेर पर सवार होकर आती हैं और ब्रह्म मुहूर्त में भगवान नरसिंह की सवारी निकलती है. जब भगवान नरसिंह हिरण्यकश्यप का वध करते हैं, तब जाकर दशहरा मनाने की परंपरा शुरू होती है. यह सब नवमी की रात 2 बजे से शुरू होकर सुबह 5 बजे तक चलता है.
समाज के बुजुर्गों की धरोहर
खप्पर समिति के अध्यक्ष मोहन भावसार लोकल 18 को बताते हैं कि यह परंपरा उनके बुजुर्गों द्वारा शुरू की गई थी, जिसे समाज के लोग आज भी पूरी श्रद्धा से उसी अनुरूप में निभा रहे हैं. उनके अनुसार, देशभर में लोग रावण का पुतला जलाकर दशहरा मनाते हैं, लेकिन खरगोन में भावसार समाज द्वारा दशहरा तभी मनाया जाता है, जब भगवान नरसिंह हिरण्यकश्यप का वध करते हैं.
इस साल का आयोजन
इस साल यह आयोजन गुरुवार 10 अक्टूबर और शुक्रवार 11 अक्टूबर की रात को हुआ. गुरुवार की रात 406 साल पुराने झाड़ पूजन के बाद पहले गणेश जी और फिर शेर पर सवार मां अम्बे रमती हुई आईं. शुक्रवार की रात मां महाकाली की सवारी निकली और सुबह ब्रह्म मुहूर्त में भगवान नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप का वध किया गया. इसी के साथ खरगोन के लोग दशहरे की खुशी मनाएंगे.
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FIRST PUBLISHED :
October 12, 2024, 11:39 IST