Last Updated:February 03, 2025, 10:21 IST
क्षेत्रफल के अनुसार बिहार के सबसे बड़े ज़िले पश्चिम चम्पारण में एक गांव ऐसा भी बसता है, जहां के निवासियों को हर रोज़ पानी के लिए घर से करीब 2KM दूर जाना पड़ता है.
प्रतीकात्मक तस्वीर
हाइलाइट्स
- पश्चिम चम्पारण के गांव में पानी के लिए 2 किमी दूर जाना पड़ता है.
- महिलाएं 20 लीटर पानी के गैलन सिर पर लादकर लाती हैं.
- गांव में बिजली और चापाकल की सुविधा नहीं है.
पश्चिम चम्पारण. आपने रेगिस्तान में बसे राजस्थान और वहां रहने वाले लोगों के जनजीवन के बारे में तो जरूर सुना होगा. महिला हो या पुरुष, दिन निकलते ही पानी के लिए मिलों दूर का सफर तय करना, डब्बे में पानी को जमा करना और हर एक काम के लिए बहुत सोच समझकर उसका इस्तेमाल करना. बहुत मुश्किल है, लेकिन सुनकर हमें कुछ खास आश्चर्य नहीं होता.
वहीं अगर हम आपसे ये कहें कि बिहार में भी एक ऐसी जगह है, जहां महिलाओं को पानी के लिए हर दिन घर से दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता है, डब्बे में पानी को भरकर उसे सर पर लादकर ऊंची चढ़ाई करनी पड़ती है और पूरे दिन बेहद सोच समझकर उसका इस्तेमाल करना पड़ता है, तो शायद आप चौंक उठेंगे.सुनने में थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन यह बात बिल्कुल सही है.
बिहार के राजस्थान में स्वागत है
क्षेत्रफल के अनुसार बिहार के सबसे बड़े ज़िले पश्चिम चम्पारण में एक गांव ऐसा भी बसता है, जहां के निवासियों को हर रोज़ पानी के लिए घर से क़रीब दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. महिला हो पुरुष, युवा हो या बुज़ुर्ग… सुबह होते ही गांव का हर एक शख्स सर पर गैलन लाद नदी किनारे चल पड़ता है. एक लंबी कतार में चल रहीं महिलाओं के सर एवं कमर पर पानी से भरे गैलन को देख ऐसा लगता है, मानों आप बिहार नहीं, बल्कि राजस्थान में खड़े हों.
न बिजली न सिलेंडर..अत्यंत पिछड़ा है यह गांव
बिहार के इकलौते टाइगर रिज़र्व “वाल्मीकि” के डिवीजन 01 के अंतर्गत आने वाले गोवर्धना रेंज के समीप बसा यह गांव “अवरहिया” नाम से जाना जाता है. स्थानीय लोगों की माने तो, इस गांव में क़रीब 80 घर हैं, जिनकी कुल आबादी लगभग 350 के आस पास है. घने जंगल के समीप बसा ये गांव जिले के रामनगर प्रखंड के अंतर्गत आता है.
जानकार बताते हैं कि रामनगर मुख्य शहर से मिलों दूर, जंगलों के समीप बसा यह गांव इतना पिछड़ा है कि यहां आजतक न तो बिजली की सुविधा पहुंच पाई है और न ही उज्वला जैसी योजनाओं का शुभारंभ हो सका है.
घर से नदी तक..हर दिन लगाना पड़ता है 10 चक्कर
दुर्भाग्य की बात तो यह है कि करीब 350 की आबादी वाले इस गांव के किसी भी घर में एक चापाकल तक उपलब्ध नहीं है. ऐसे में पानी के लिए ग्रामीणों को हर दिन गांव से दूर नदी किनारे जाना पड़ता है. स्थानीय निवासी आनन्द उरांव बताते हैं कि हर दिन उन्हें घर से नदी तक के करीब 10 चक्कर लगाने पड़ते हैं.बाइक पर एक 20 लीटर के गैलन को बांधकर वो गांव से नीचे नदी की तरफ जाते हैं, जहां मौजूद एक हैंडपंप से पानी भरकर घर वापस आते हैं. बकौल आनंद, ये बहुत मुश्किल है, लेकिन जीने के लिए उन्हें ऐसा करना पड़ता है.
सुबह से शाम तक ढोना पड़ता है पानी
हद तो तब हो जाती है, जब गांव की महिलाओं को सूर्योदय से लेकर अंधेरा होने तक, लगातार पानी ढोने का यह काम करना पड़ता है.इस दौरान वो 20 लीटर तक की क्षमता वाले गैलन को अपने सर पर लाद कर क़रीब डेढ़ से दो किलोमीटर तक का सफर तय करती हैं. ग्रामीण रेखा और ममता देवी बताती हैं कि उनके पति के साथ गांव के ज्यादातर मर्द दिहाड़ी मजदूर हैं.
काम पर जाने से पहले उन्हें पानी से संबंधित हर एक काम को नदी किनारे जाकर ही करना पड़ता है. पतियों के काम पर जाने के बाद महिलाएं नदी किनारे जाकर सुबह की दिनचर्या का काम पूरा करती हैं, और फिर गैलन में पानी भरकर घर तक लाती हैं.
Location :
Motihari,Purba Champaran,Bihar
First Published :
February 03, 2025, 10:21 IST