सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की जानलेवा लापरवाही की खबरें देशभर से रोज ही मिलती रहती हैं. अधूरे बने फ्लाईओवर, पुलों या फिर सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढों की वजह से या फिर बिजली के तार टूटने या फिर खंभों में करंट उतरने से लोगों की मौत की खबरें मिलती रहती हैं. लेकिन हर बार हादसे होने के बाद सिर्फ खबरें छपती हैं, प्रसारित होती हैं, पाठक और दर्शक अफसोस जता कर रह जाते हैं. इस तरह की मौतों के लिए जिम्मेदार कर्मचारियों या अधिकारियों पर कोई कड़ी कानूनी कार्रवाई नहीं होती. ऐसे लापरवाह अधिकारियों पर कभी विभागीय कार्रवाई की गाज गिरती भी है, तो ज्यादा से ज्यादा उन्हें सस्पेंड कर दिया जाता है. फिर कुछ दिन बाद वे बहाल हो जाते हैं और सस्पेंशन के दौरान काटा गया वेतन भी उन्हें मिल जाता है. जानलेवा हादसों से कोई सबक नहीं लेते हुए वे आंखें बंद ही किए रहते हैं.
लेकिन हाल ही में 24 नवंबर को उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले की दातागंज पुलिस ने रामगंगा नदी पर टूटे पुल से नदी में कार के गिरने से हुई तीन लोगों की मौत के मामले में पीडब्ल्यूडी के चार इंजीनियरों के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का केस दर्ज किया है. कार में सवार लोग गूगल मैप के सहारे सफर कर रहे थे. मैप ने कार को अधूरे पुल पर चढ़ा दिया. पूरी स्पीड पर चल रही कार के ड्राइवर को एक पल भी शक नहीं हुआ कि पुल आधा ही बना हुआ है और गूगल मैप गलत रास्ता दिखा रहा है.
पुलिस ने गूगल मैप के खिलाफ भी गैर-इरादतन हत्या की धारी में ही केस दर्ज किया है. असल में हादसे वाला पुल पहले पूरा बन चुका था, लेकिन बाढ़ की वजह से उसका एक हिस्सा पानी में बह गया था. यह जानकारी गूगल मैप में अपडेट नहीं थी. यही वजह थी कि गूगल के निर्देश पर कार पुल पर जा चढ़ी और हंसी-खुशी शादी समारोह में शामिल होने जा रहे तीन लोग वेवक्त काल के गाल में समा गए.
इससे पहले सात साल पहले एक जनवरी, 2018 को यूपी के ही गाजियाबाद शहर में अधूरे बने फ्लाईओवर से गिर कर मोटरसाइकिल सवार 32 साल के दीपक नाम के शख्स की मौत हो गई थी. वह 31 दिसंबर को नए साल का जश्न मनाने अपनी ससुराल दादरी गया था. देर रात लौटते वक्त उसे नहीं पता था कि मेरठ रोड तिराहे पर फ्लाईओवर का काम पूरा नहीं हुआ है. पूरी रफ्तार से वह फ्लाईओवर पर चढ़ गया और कुछ ही दूरी पर मोटरसाइकिल हवा में लहरा गई. इस केस में जहां तक मुझे याद है गैर-इरादतन हत्या का केस दर्ज नहीं किया गया था.
दोनों ही मामलों में अधिकारियों को वस्तुस्थिति की जानकारी थी, लेकिन पुल और फ्लाईओवर पर वाहनों को न चढ़ने देने के लिए अवरोधक नहीं लगाए गए थे. यह कोई बहुत बड़ा काम नहीं था, जिसके लिए कई स्तरों पर क्लियरेंस लेनी पड़ती है. अगर ऐसा होता भी है, तो तत्काल इसकी मंजूरी ली जानी चाहिए. अवरोधकों के साथ-साथ रात में चमकने वाले साइन बोर्ड भी लगाए जाने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. गाजियाबाद में तो फ्लाईओवर के शुरुआती हस्से पर अवरोधक तब तक लगे रहने चाहिए थे, जब तक कि वह बन कर पूरा नहीं जाता और वाहनों के लिए औपचारिक रूप से खोल नहीं दिया जाता.
अब बदायूं पुलिस ने पीडब्ल्यूडी के चार इंजीनियरों और गूगल मैप के अधिकारी के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का केस दर्ज कर सही कार्रवाई की है. अब उम्मीद की जानी चाहिए कि इस तरह के हादसे जहां कहीं हों, जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कम से कम गैर-इरादतन हत्या की धारा में केस दर्ज जरूर किए जाएंगे. जब हादसों के जिम्मेदार अधिकारियों को जेल की हवा लंबे वक्त तक खानी पड़ेगी, तब ही उनमें और देखादेखी दूसरे अफसरों में भी कर्तव्यबोध जागृत होगा.
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FIRST PUBLISHED :
November 27, 2024, 14:05 IST