नई दिल्ली:
कर्नाटक के उडुपी जिले के पीताबॉयल के घने जंगलों में कर्नाटक की एंटी नक्सल फोर्स (ANF) और नक्सलियों के बीच सोमवार देर शाम एक बड़ी मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ में कुख्यात नक्सली कमांडर विक्रम गौडलू मारा गया. ANF के मुताबिक, विक्रम गौडलू पिछले 20 वर्षों से कानून की गिरफ्त से बाहर था और उस पर हत्या, अपहरण, वसूली और देशद्रोह जैसे 61 गंभीर मामले दर्ज थे. उसके सिर पर 3.5 लाख रुपये का इनाम था.
कैसे हुआ मुठभेड़ का संचालन?
पुलिस के मुताबिक़, 18 नवंबर की शाम ANF टीम पीताबॉयल के जंगलों में तलाशी अभियान चला रही थी. इस दौरान टीम को तीन-चार हथियारबंद व्यक्ति दिखे. जब ANF ने आत्मसमर्पण का आदेश दिया, तो नक्सलियों ने "माओवाद जिंदाबाद" के नारे लगाते हुए फायरिंग शुरू कर दी. जवाबी कार्रवाई में ANF की गोली से विक्रम गौडलू ढेर हो गया. बाकी नक्सली अंधेरे और जंगल का फायदा उठाकर भाग निकले.विक्रम गौडलू के पास से 9mm की एक कार्बाइन भी बरामद हुई. पहचान के बाद यह पुष्टि हुई कि ये वही कुख्यात नक्सली है जिसकी तलाश कर्नाटक और केरल पुलिस पिछले डेढ़ दशक से कर रही थी.
ANF की बड़ी सफलता
ANF के पूर्व प्रमुख और मौजूदा एडीजीपी आलोक कुमार ने इस सफलता पर खुशी जताते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, "ANF प्रमुख के तौर पर मैं विक्रम गौडलू तक तीन बार पहुंचा, लेकिन वह हर बार बचने में कामयाब रहा. इस बार पुलिस की किस्मत ने साथ दिया. ANF की टीम को इस बड़ी सफलता के लिए बधाई."
विक्रम गौडलू: एक कुख्यात नक्सली की कहानी
विक्रम गौडलू का नक्सली सफर 1998 में शुरू हुआ, जब उसने अपनी जमीन बचाने के लिए सरकारी नीतियों के खिलाफ संघर्ष किया. आरोप है कि इस दौरान उसके परिवार को यातनाएं दी गईं, जिससे परेशान होकर विक्रम ने नक्सलियों का दामन थामा. वह ANF और पुलिस के लिए लंबे समय तक सिरदर्द बना रहा.
दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र की IGP डी रूपा के अनुसार, "विक्रम मौजूदा नक्सलियों में सबसे खतरनाक और वांछित था. यह ऑपरेशन 10 दिनों के तलाशी अभियान का परिणाम है, जो एसपी जितेंद्र की अगुवाई में अंजाम दिया गया."
बचे हुए नक्सलियों पर फोकस
इस मुठभेड़ के बाद ANF का ध्यान अब विक्रम के समूह के बाकी सात सदस्यों पर है, जिनमें चार महिलाएं शामिल हैं. इनमें से एक लता, जिसे मुंदगरू लता भी कहा जाता है, और अंगदी प्रदीप, अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं.
पुनर्वास योजनाओं पर सवाल
इस मुठभेड़ के बाद सरकार की नक्सल पुनर्वास नीतियों पर सवाल खड़े हो गए हैं. पूर्व नक्सली नूर श्रीधर, जिन्होंने 2004 में आत्मसमर्पण किया और 10 साल जेल में बिताए, ने सरकार को वादे पूरे करने की सलाह दी. नूर श्रीधर का कहना है, "विक्रम गौडलू ने जमीन बचाने के लिए लड़ाई शुरू की थी. अगर सरकार पुनर्वास नीतियों पर गंभीर होती, तो कई नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौट सकते थे." नूर श्रीधर ने विक्रम गौडलू मुठभेड़ पर भी सवाल उठाए
नक्सल समस्या और सरकार की चुनौतियां
यह मुठभेड़ नक्सल समस्या पर दोबारा ध्यान केंद्रित करती है. विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सल आंदोलन के पीछे गरीबी, बेरोजगारी, और सरकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन न होना मुख्य कारण हैं. जबकि पुलिस और ANF अपनी कार्रवाई पर गर्व कर रही है, यह भी जरूरी है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में समग्र विकास और पुनर्वास की योजनाओं को तेजी से लागू किया जाए.
कर्नाटक में विक्रम गौडलू की मौत को नक्सल आंदोलन के खिलाफ एक बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन यह भी साफ है कि जब तक बचे हुए नक्सली गिरफ्तार नहीं होते और पुनर्वास नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जाता, यह समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं होगी.