जयपुरः देश का आखिरी सती कांड ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया था. इस घटना को 36 साल से ज्यादा हो गए. लेकिन वो दर्द, वो चीख आज तक कानों में सुनाई देती है. हालांकि इस मामले में कोर्ट ने सबूतों के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया. जिस प्रथा को खत्म करने में सैकड़ों वर्ष लग गए, उसकी महिमामंडन करने वाले लोग अब भी समाज में हैं. वो प्रथा हमेशा खराब होती है, जिससे दूसरे को तकलीफ पहुंचती हो. ऐसी ही प्रथा थी सती प्रथा, जिसमें महिलाओं को उनके पति की चिता के साथ जला दिया जाता था. देश में आखिरी सती की घटना राजस्थान में 36 साल पहले हुई, जिसको लेकर मामले की सुनवाई बीते बुधवार को हुई.
सबूत का अभाव, आरोपियों को मिला फायदा
36 साल पुराने सती महिमामंडन केस में जयपुर महानगर द्वितीय की सती निवारण कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए मामले से जुड़े आठ आरोपियों को बरी कर दिया. कोर्ट ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सती निवारण अधिनियम की धारा-5 में पुलिस ने सभी को आरोपी बनाया है. यह धारा कहती है कि आप सती प्रथा का महिमा मंडन नहीं कर सकते हैं. लेकिन इस धारा में आरोप साबित करने के लिए जरूरी है कि धारा-3 के तहत सती होने की कोई घटना हुई हो. लेकिन पुलिस ने पत्रावली पर सती होने की किसी भी तरह की घटना का कोई जिक्र नहीं किया. इसके अलावा मामला दर्ज करने वाले पुलिसकर्मियों और गवाहों ने भी इन आरोपियों की पहचान नहीं की. ऐसे में कोर्ट ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया.
करीब 36 साल पहले दर्ज हुआ था मामला
करीब 36 साल पहले सीकर के तत्कालीन थोई थाने में 22 सितंबर 1988 को पुलिस ने एक मामला दर्ज किया था, जिसमें पुलिस ने कहा था कि कई लोग ट्रक में सवार होकर सत्संग भवन दिवराला से जुलूस निकालकर सीताराम जी मंदिर तक सती माता के जयकारे लगाते हुए गए थे. इन लोगों ने ट्रक पर सती माता की फोटो लगा रखी थी और यह लोग सती प्रथा की बैन होने के बावजूद सती का महिमा मंडल कर रहे थे. मामले में आरोपियों की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ता अमनचैन सिंह शेखवात और संजीत सिंह चौहान ने बताया कि आज कोर्ट ने महेंद्र सिंह, श्रवण सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, दशरथ सिंह, लक्ष्मण सिंह और भंवर सिंह को बरी कर दिया.
क्या था मामला
राजस्थान में 36 साल पहले हुआ रूप कंवर सती कांड एक बार फिर से सुर्खियों में है. चार सितंबर 1987 को सीकर जिले के दिवराला गांव में अपने पति की मौत के बाद उसकी चिता पर जलकर 18 साल की रूप कंवर ‘सती’ हो गई थी. दिसंबर 1829 में ब्रिटिश सरकार द्वारा इस प्रथा को प्रतिबंधित किए जाने के 158 साल बाद पूरी दुनिया का ध्यान सती होने की इस घटना ने खींचा था. 4 सितंबर 1987 को हुई इस घटना में 32 लोगों को गिरफ्तार किया था जो सीकर कोर्ट से अक्टूबर 1996 में बरी हो गए.
हाईकोर्ट ने महोत्सव का आयोजन पर लगाया था रोक
इसके बाद 16 सितंबर 1987 को राजपूत समाज ने रूप कंवर की तेरहवीं (13 दिन की शोक परंपरा) के मौके पर चुनरी महोत्सव का आयोजन किया था. इस महोत्सव में दिवराला गांव में लाखों लोग जमा हो गए थे. चुनरी महोत्सव का आयोजन हाईकोर्ट की रोक के बावजूद भी किया गया. हालांकि इस मामले में कोई केस नहीं बना. इसीलिए यह मामला आगे नहीं बढ़ा.
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FIRST PUBLISHED :
October 10, 2024, 08:39 IST