नई दिल्ली:
दुनिया के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं और ऐसी ही एक बड़ी चुनौती है ड्रग्स यानी नशीले पदार्थों की. नशीली दवाओं का ये जाल इतना भयानक है कि पीढ़ियों की पीढ़ियां इससे बर्बाद हो रही हैं. भारत में भी और दुनिया के अन्य देशों में भी इससे निपटने के लिए छोटे मोटे उपायों से कुछ नहीं होगा कुछ बड़ा ही करना होगा. ड्रग्स से निपटने के लिए हर देश अपने स्तर पर कुछ न कुछ कर रहा है लेकिन विवादों में रहने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इस सिलसिले को ख़ासतौर पर फेंटानिल को लेकर जो सख़्ती दिखाई है उसके लिए उनकी प्रशंसा होनी ही चाहिए. भले ही मैक्सिको, कनाडा और चीन के साथ व्यापार युद्ध की आड़ में उन्होंने फैंटानिल की तस्करी को लेकर ये दबाव बनाया हो.
WHO की वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में तीस करोड़ लोग ड्रग्स के आदी हैं. इस लिहाज़ से दुनिया का क़रीब हर पच्चीसवां व्यक्ति ड्रग्स की चपेट में है. ये अपने आप में एक भयानक आंकड़ा है. भारत में भी सरकारी अनुमानों के मुताबिक क़रीब छह से सात करोड़ लोग ड्रग्स की चपेट में हैं. वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं ऊपर हो सकता है. इसमें हम शराब की बात नहीं कर रहे वो आंकड़ा तो और ऊपर जाता है.
अमेरिका में क़रीब 4 करोड़ 80 लाख लोग बीते एक साल में किसी न किसी ड्रग्स की चपेट में रहे. अमेरिका में बीते एक साल में ही एक ख़ास नशीली दवा फैंटानिल से 70 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई.
ड्रग्स से निपटने के लिए हर देश अपने स्तर पर कुछ न कुछ कर रहा है लेकिन विवादों में रहने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इस सिलसिले ख़ासतौर पर फैंटानिल को लेकर जो सख़्ती दिखाई है उसके लिए उनकी प्रशंसा होनी ही चाहिए. भले ही मैक्सिको, कनाडा और चीन के साथ व्यापार युद्ध की आड़ में उन्होंने फैंटानिल की तस्करी को लेकर ये दबाव बनाया हो.
हुआ ये है कि सत्ता में आने के साथ ही ट्रंप जो तेवर दिखाते आ रहे थे उन पर एक फरवरी को उन्होंने अमल किया और मैक्सिको और कनाडा के उत्पादों पर एकतरफ़ा 25% टैरिफ़ यानी कर लगा दिया. चीन से आने वाले उत्पादों पर 10% टैरिफ़ लगाने का फ़ैसला किया. ट्रंप नेे ये फ़ैसले इन देशों के साथ अमेरिका को हो रहे भारी व्यापार घाटे के नाम पर लगाए, लेकिन जानकारों का मानना है कि व्यापार घाटे से ज़्यादा बड़ी चिंता डोनल्ड ट्रंप को इन देशों के ज़रिए अमेरिका में होने वाली ड्रग्स की तस्करी ख़ासतौर पर फैंटानिल की तस्करी और अवैध आप्रवासियों की थी जो उनकी विदेश नीति और घरेलू नीति से गहरा जुड़ा हुआ है. यही वजह है कि 25% टैरिफ़ लगाने के 24 घंटे के अंदर ही असर दिखा और पहले तक आक्रामक तेवर दिखा रहे दो देश मैक्सिको और कनाडा बातचीत की टेबल पर आ गए. इसका असर ये हुआ कि ट्रंप ने इन दोनों ही देशों के साथ टैरिफ़ लगाने के फ़ैसले को तीस दिन टाल दिया.
सबसे पहले दक्षिणी सीमा से लगा मैक्सिको आगे आया
वहां की राष्ट्रपति Claudia Sheinbaum ने डोनल्ड ट्रंप के साथ बातचीत के बाद आदेश दिया कि मैक्सिको .तुरंत 10 हज़ार नेशनल गार्ड्स को अमेरिका से लगी सीमा पर तैनात करेगा. ताकि ड्रग्स की तस्करी और अवैध आप्रवासियों के अमेरिका में प्रवेश पर रोक लगाई जा सके. अमेरिका में सबसे ज़्यादा नशीली दवाओं और अवैध आप्रवासियों की तस्करी मैक्सिको से लगी सीमा से ही होती है. उधर अमेरिका ने बदले में वादा किया कि वो मैक्सिको में बंदूकों की तस्करी पर रोक लगाएगा. दोनों ही नेताओं ने सोशल मीडिया पर इस बात का एलान किया.
मैक्सिको से बातचीत के कुछ घंटे बाद कनाडा भी लाइन पर आ गया
अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने बताया कि ड्रग्स फैंटानिल के मुद्दे पर सख़्ती के लिए एक बड़े अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी. इसके अलावा मैक्सिको के ड्रग माफ़िया को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाएगा और फैंटानिल, संगठित अपराध और हवाला पर रोक लगाने के लिए कनाडा-अमेरिका संयुक्त स्ट्राइक फोर्स बनाई जाएगी. हालांकि जब ट्रंप ने कनाडा पर टैरिफ़ लगाने की धमकी दी थी तो ट्रूडो ने उसका विरोध करते हुए कहा था कि वो अमेरिका से व्यापार युद्ध के लिए तैयार हैं लेकिन ट्रूडो को शक्ति संतुलन भी समझ आ गया और व्यापारिक नुक़सान भी इसलिए तुरंत सुलह के रास्ते पर आगे बढ़ा.
इन दोनों ही देशों पर 25% टैरिफ़ के फ़ैसले को अमेरिका ने 30 दिन के लिए टाल दिया है. अब आगे का फ़ैसला दोनों देशों द्वारा वादे पर अमल को देखने के बाद ही होगा. क्या होगा ये अभी कोई नहीं कह सकता.
फिलहाल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कहा कि वो इन नतीजों से काफ़ी खुश हैं और शनिवार को घोषित टैरिफ़ तीस दिन के लिए टाल दिए गए हैं ये देखने के लिए कि कनाडा के साथ फाइनल आर्थिक डील होती है या नहीं...
ग्राफिक्स आउट
मैक्सिको, कनाडा तो सुलह के रास्ते पर आ गए लेकिन चीन ने अमेरिका के साथ किसी तरह की सुलह की कोशिश नहीं की है. उलटा चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी टैरिफ़ लगाने का एलान कर दिया. अमेरिका से आयात होने वाले कोयले और एलएनजी पर 15 फीसदी कर लगाने का एलान किया. कच्चे तेल और खेती के उपकरणों के आयात पर 10% कर लगा दिया. यही नहीं चीन ने फैंटानिल संकट को अमेरिका की समस्या बताया है.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि ड्रग्स पर रोक को लेकर चीन नीति और अमल के मामले दुनिया के सबसे सख़्त देशों में से एक है. फैंटानिल अमेरिका के लिए एक मुद्दा है. मानवता और भलमनसाहत की भावना में चीन ने इस मुद्दे पर अमेरिका की पहल को समर्थन दिया है.
फैैंटानिल के मुद्दे पर अमेरिका को चीन से शिकायत
दरअसल फैैंटानिल के मुद्दे पर अमेरिका को चीन से शिकायत ये है कि इस ड्रग्स को बनाने से जुड़ा कच्चा माल यानी रसायन वगैरह चीन से ही आते हैं और चीन पर उनपर सख़्ती दिखाए... लेकिन चीन अमेरिका की धौंस के आगे झुकता नहीं दिख रहा... ये भी ध्यान रखने की बात है कि चीन ट्रंप के पहले दौर में लगाई गए करों को पहले से ही झेल रहा था जिन्हें बाइडेन प्रशासन ने नहीं हटाया... नए टैरिफ़ उनके ऊपर लगाए गए हैं... इस पूरे मामले में व्यापारिक पहलू की बात हम फिर कभी करेंगे लेकिन अभी ड्रग्स के संकट की बात.
फैैंटानिल क्या है?
सबसे पहले तो ये फैंटानिल बला क्या है जिसे लेकर ट्रंप इतने आक्रामक हैं.ये दरअसल एक सिंथेटिक ड्रग है यानी कृत्रिम नशीली दवा.हेरोइन और कोकीन जैसे नशीले पदार्थ जहां पौधों से बनते हैं वहीं फैंटानिल को उन रसायनों से बनाया जाता है जिनसे कई वैध दवाओं का भी उत्पादन होता है.दवाओं को बनाने से जुड़े रसायनों को बनाने में चीन दुनिया में सबसे आगे है.ऐसे रसायनों का सबसे ज़्यादा उत्पादन वहीं होता है. फैंटानिल में जो रसायन इस्तेमाल होते हैं उनका इस्तेमाल दर्द की दवाएं बनाने में किया जाता है. चीन इन रसायनों का दूसरे देशों को निर्यात करता है.लेकिन दिक्कत ये है कि इन रसायनों का एक हिस्सा मैक्सिको के ड्रग कार्टल्स यानी संगठित ड्रग गिरोहों द्वारा ख़रीद लिया जाता है.ये ड्रग माफ़िया इसके बाद इन रसायनों का इस्तेमाल कर सिंथेटिक ड्रग फैंटानिल को अपनी लैब्स में बनाते हैं और फिर तस्करी से अमेरिका भेजते हैं जहां नशीली दवाओँ का सबसे बड़ा अवैध बाज़ार है.ख़ासतौर पर कैलिफ़ोर्निया और एरिज़ोना के जम़ीनी रास्तों से फैंटानिल अमेरिका पहुंचता है.फैंटानिल ड्रग बहुत ही ज़्यादा घातक है.हेरोइन से 50 गुना मादकता इसमें होती है.इसकी ख़ास बात ये होती है कि इसमें कोई गंध नहीं होती इसलिए इसका आसानी से पता नहीं लग पाता और इसे ज़ब्त करना चुनौती भरा काम हो जाता है.
कुछ ड्रग तस्कर कनाडा में भी फैंटानिल बनाते हैं जो तस्करी से अमेरिका पहुंचता है लेकिन ये मैक्सिको के मुक़ाबले काफ़ी कम मात्रा में है.
अमेरिका के कस्टम्स विभाग ने पिछले साल कनाडा के बॉर्डर से सिर्फ़ 19.5 किलोग्राम फैंटानिल ज़ब्त किया .जबकि इसके मुक़ाबले मैक्सिको की सीमा से 9570 किलोग्राम फैंटानिल ज़ब्त किया गया. अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति जो बाइडेन के दौर में फैंटानिल की ज़ब्ती दस गुना बढ़ गई. इससे ये पता चलता है कि इसे लेकर अमेरिका की एजेंसियों की सक्रियता काफ़ी बढ़ी है.
दरअसल नशीली दवाओं का जाल अमेरिका में कोई नई बात नहीं है. चालीस-पचास के दशक से अमेरिका की पीढ़ी की पीढ़ी इस जाल में फंसी रही हैं. अमेरिका में सक्रिय कई बड़े ड्रग कार्टल मैक्सिको, कोलंबिया और वेनेज़ुएला के जंगलों में अवैध लैब्स में ड्रग्स बनाते रहे हैं और अमेरिका में पहुंचाते रहे हैं. अमेरिका की आर्थिक प्रगति के पीछे का एक काला सच ये भी है कि प्रगति से आया अंधाधुंध पैसा नशीली दवाओं के ज़रिए ड्रग माफ़ियाओं को जाता रहा. ड्रग माफ़ियाओं का शिकंजा अमेरिका पर बढ़ता चला गया. उसकी युवा पीढ़ी उसका शिकार बनती गई.
इससे निपटने के लिए चालीस के दशक में पड़ोसी देशों में मारिजुआना और अफ़ीम की खेती नष्ट करने के लिए फौजी कार्रवाई की गईं. अस्सी के दशक में सबसे पहले अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन के दौर में ड्रग्स माफ़िया को आतंकवादी घोषित करने पर विचार किया गया था. ड्रग्स की तस्करी को तब अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरे के तौर पर देखा जा रहा था. उसके बाद से ही अमेरिका में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनोंं ने ही नार्को टेररिज़्म के विचार को बढ़ावा देना शुरू किया. इस मुद्दे पर पार्टी लाइन से ऊपर अमेरिका में एक राय बनती गई. हालांकि उससे निपटना कैसे है इस पर एक राय नहीं बन पाई.
अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन भी ऐसे मामलों में सैनिक दखल देने की प्रबल समर्थक थीं. लेकिन अमेरिका का ये रुख़ लेटिन अमेरिका के प्रति ज़्यादा आक्रामक और फौजी दखल से भरा था. डोनल्ड ट्रंप उसको ही और आक्रामक तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं.
अमेरिका में ड्रग्स की तस्करी को रोगने और ड्रग माफ़ियाओं पर निगाह रखने के लिए 1973 में एक विशेष एजेंसी बनाई गई जिसका नाम है DEA यानी Drug Enforcement Agency. इस एजेंसी के अधिकारी और जासूस अमेरिका के अलावा अन्य देशों में भी ड्रग्स माफ़िया पर निगाह रखते हैं, उनसे जुड़ी जानकारियां जुटाते हैं और निपटने की रणनीति बनाते हैं. ड्रग माफ़ियाओं के साथ उनकी हिंसक झड़पें अमेरिका की कई फिल्मों की कहानियों का हिस्सा रही हैं. लेकिन ड्रग्स के अवैध कारोबार में इतना पैसा है, कि उसके आगे अमेरिका की बड़ी बड़ी एजेंसियां भी नाकाम साबित होती रही हैं. ड्रग्स का ये पैसा अवैध हथियारों के व्यापार में भी इस्तेमाल होता है. दुनिया के कई देशों में अस्थिरता के पीछे इस पैसे का इस्तेमाल होता रहा है. अमेरिका के पड़ोसी मैक्सिको, वेनेज़ुएला और कोलंबिया इन ड्रग्स माफ़ियाओं का सबसे बड़ा अड्डा रहे हैं. अमेरिका उनका सबसे बड़ा बाज़ार रहा है. वहां की कई पीढ़ियां इसका शिकार हुई हैं. यही वजह है कि ट्रंप को इससे निपटने के लिए व्यापार युद्ध करने को तैयार होना पड़ा.
अमेरिका की Drug Enforcement Agency के इंटरनेशनल ऑपरेशन्स के पूर्व चीफ़ Mike Vigil के मुताबिक सिर्फ़ सीमा पर दस हज़ार सैनिकों की तैनाती से फैंटानिल की तस्करी नहीं रुकेगी. .एक बार फैंटानिल लैब से निकल जाता है तो उसे गाड़ियों के अंदर गोपनीय तरीके से या फिर बड़े कार्गो ट्रक्स में छुपाकर ले जाया जाता है.. इसका पता लगाने के लिए बेहतर detection exertion की ज़रूरत है. .उनका ये भी मानना है कि फैंटानिल के व्यापार से निपटने के लिए सिर्फ़ अमेरिका और उसके पड़ोसी देशों के बीच सहयोग से काम नहीं चलेगा. .अगर मैक्सिको, कनाडा और कुछ अन्य देश ड्रग्स के माफ़िया से पिंड छुड़ा भी लें तो भी ये दूसरे रास्तों से अमेरिका में आने का रास्ता ढूंढ लेगा.
ड्रग माफ़िया को आतंकवादी संगठन घोषित करने से ट्रंप सरकार को ज़िम्मेदार देशों पर आर्थिक पाबंदी, आने जाने पर पाबंदी और यहां तक कि दूसरे देश में सैनिक कार्रवाई करने से जैसे अधिकार मिल जाएंगे. लेकिन इसका एक पहलू ये भी है कि इसका असर ख़ुद अमेरिकी लोगों पर भी होगा.
अमेरिका द्वारा ड्रग तस्करों को नार्को टैररिस्ट घोषित करता है तो वो हज़ारों अमेरिकी भी इसकी जद में आएंगे जो इन नेटवर्क्स का हिस्सा हैं. इस कार्रवाई में बड़े ड्रग्स माफ़िया ही नहीं आएंगे .बल्कि तस्करी का पूरा नेटवर्क, हवाला, हथियारों की तस्करी और अन्य नेटवर्क आएंगे जो अमेरिका के अंदर ही काम कर रहे हैं. .ऐसे में ये तय करने में मुश्किल हो जाएगी कि ड्रग तस्करों की शुरुआत कहां होती है और ख़त्म कहां होती है. .अमेरिका में हुए कई अध्ययन बताते हैं कि फैंटानिल की तस्करी और उपभोग के पीछे सबसे ज़्यादा हाथ ख़ुद अमेरिका के लोगों का है. इसके अलावा अमेरिका के अंदर लोगों पर संगठित हमलों के ख़तरे बढ़ सकते हैं.
.जो भी हो ट्रंप के तेवर देख कर लगता है कि वो कुछ न कुछ तो करके रहेंगे. और दक्षिणी सीमा से लगे मैक्सिको को या तो वो इस लड़ाई में साथ लेंगे या फिर इस लड़ाई में निशाना बनाएंगे. दरअसल मैक्सिको के ड्रग कार्टल का नेटवर्क इतना बड़ा है कि वहां की सरकारों को भी बनाने गिराने की क्षमता रखता रहा है. इसका एक उदाहरण ये है कि पिछले साल तक मैक्सिको के राष्ट्रपति रहे Andrés Manuel López Obrador इस बात से इनकार करते रहे कि मैक्सिकों में फैंटानिल कभी बनाई भी गईं. जबकि उनका ये रुख़ उनके ही प्रशासन में अफ़सरों के रुख़ के उलट था.
अक्टूबर में Claudia Sheinbaum मैक्सिको की राष्ट्रपति बनीं तो मैक्सिको के सुरक्षा बल ड्रग तस्करी को लेकर ज़्यादा सक्रिय हो गए. दिसंबर में ही मैक्सिको में एक हज़ार किलो से ज़्यादा फैंटानिल की गोलियां ज़ब्त की गईं जो वहां के इतिहास में सिंथेटिक ड्रग्स की सबसे बड़ी ज़ब्ती रही. ये ज़ब्ती इसलिए भी सुर्ख़ियों में रही क्योंकि 2024 के बाद के छह महीनों में मैक्सिको में फैंटानिल की बरामदगी काफ़ी घट गई थी.
मैक्सिको भी जानता है कि अमेरिका के लिए अवैध आप्रवासी और ड्रग्स माफ़िया एक बड़ी चुनौती है और ये चुनौती उसकी ज़मीन से भी आ रही है. इसलिए मैक्सिको की राष्ट्रपति Claudia Sheinbaum इस मसले को अमेरिका के साथ बातचीत से सुलझाने की इच्छुक हैं. हालांकि किसी भी दूसरे देश की तरह वो अमेरिका के इस रिश्ते को सहयोग और बराबरी से सुलझाने की इच्छुक हैं. मैक्सिको अमेरिका के एक पुराना पारंपरिक सहयोगी रहा है. व्यापार के मामले में उसके सबसे बड़े सहयोगियों में से एक. ये रिश्ता टूटता है तो नुक़सान दोनों को ही होगा.
ड्रग्स का माफ़िया दुनिया में कहीं भी सक्रिय हो, उसकी हरक़तों का असर दुनिया के दूर दराज़ इलाकों तक दिखता है. फिलहाल हम अमेरिका की बात कर रहे हैं. जो लेटिन अमेरिका के ड्रग तस्करों से परेशान है. उसमें भी सबसे ज़्यादा मैक्सिको से जिसके साथ उसकी 3145 किलोमीटर सीमा लगती है. इस सीमा को पूरी तरह सील करना असंभव सा है और खूंखार ड्रग तस्कर इसी का फ़ायदा उठाते हैं. एक नज़र डालते हैं मैक्सिको के सबसे बड़े ड्रग कार्टल्स पर
इनमें से सबसे ताक़तवर है Sinaloa Cartel जो मैक्सिको के उत्तर पश्चिम के बड़े इलाके में फैला हुआ है. अमेरिका की सरकार ने सिनालोआ कार्टल को दुनिया के सबसे बड़े ड्रग तस्कर संगठनों में से एक बताया है. 80 के दशक में कुख्यात ड्रग लॉर्ड वॉकिन गुज़मान जिसे अल चापो नाम से जाना जाता था, दशकों तक सिनालोआ कार्टल का प्रमुख रहा. उसने ड्रग्स तस्करी से इतना पैसा कमाया कि एक ज़माने में उसे दुनिया का सबसे अमीर आदमी कहा जाता था. कई किताबें और टीवी सीरीज़ उस पर बन चुकी हैं. उसके दौर में ये कार्टल विरोधी गुटों के साथ हिंसा के लिए कुख्यात रहा. मैक्सिको के ड्रग कार्टल्स के बीच आपस में खूनी लड़ाइयां ख़ूब होती रही हैं. अल चापो के दौर में सिनालोआ अमेरिका में ड्रग्स तस्करी करने वाला सबसे बड़ा गुट था. आज भी अमेरिका ही नहीं यूरोप तक ये ड्रग कार्टल्स नशीली दवाओं की तस्करी करता है लेकिन उस पर लगाम नहीं लग पाई है.
2010 में बना जैलिस्को कार्टल ड्रग तस्करी में सिनालोआ कार्टल का सबसे बड़ा और ख़तरनाक प्रतिद्वंदी है. 2010 में बना ये ड्रग कार्टल बड़ी ही तेज़ी से उभरा और मैक्सिको के पश्चिमी इलाके में इसने पैठ बना ली. अल मेंचो नाम से कुख्यात एक पूर्व पुलिस अफ़सर रूबिन ओेसेगेरा इस कार्टल का प्रमुख है और मैक्सिको का सबसे वॉन्टेड अपराधी भी. उसके सिर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम है. जैलिस्को कार्टल अमेरिका में फैंटानिल जैसी सिंथेटिक ड्रग्स का बड़ा डिस्ट्रीब्यूटर है. इसके तार यूरोप और एशिया तक जुड़े हुए हैं. हिंसा के ज़रिए ये ग्रुप मैक्सिको में अन्य प्रतिद्वंदी गुटों पर हावी होता गया. सुरक्षा बल और सरकारी अधिकारी भी इस ड्रग कार्टल के अपराधियों का निशाना बनते रहे हैं.
मैक्सिको के उत्तर पूर्व में सीमांत इलाके में सक्रिय गल्फ़ कार्टल भी ऐसा ही एक ड्रग्स माफ़िया गैंग है. ये मैक्सिको के सबसे पुराने आपराधिक गुटों में से एक है जो अस्सी के दशक का है. उस दौर में ये अमेरिका में कोकीन और मारिजुआना की तस्करी के लिए जाना जाता था. कोलंबिया के कार्टल्स के साथ मिलकर ये नेटवर्क हेरोइन और amphetamines की तस्करी भी करता रहा. अफ़सरों को अपनी ओर रखने के लिए ये कार्टल घूसखोरी और राजनीतिक भ्रष्टाचार में भी शामिल रहा. इस कार्टल का शुरुआती मुखिया Juan García Abrego था जो पहला मैक्सिकन ड्रग लॉर्ड था जिसे FBI ने अपनी 10 मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में रखा. 1996 में वो गिरफ़्तार हुआ और अमेरिका में उसे उम्रक़ैद हुई.
मैक्सिको का एक और ड्रग कार्टल है Los Zetas Cartel. ख़ास बात ये है कि इसकी स्थापना 2010 में मैक्सिको की स्पेशल फोर्सेस की एलिट यूनिट के भ्रष्ट सदस्यों ने की. ये पूर्व सैनिक पहले एक गल्फ़ कार्टल के लिए काम करते थे लेकिन 2010 में अपना गैंग बना लिया. मैक्सिको के उत्तर पश्चिम में सक्रिय Zetas कार्टल अपनी दरिंदगी के लिए जाना जाता है. और अक्सर उसने अपने दुश्मनों को गला काट कर मारा है. 2012 में उन्हें मैक्सिको का सबसे बड़ा ड्रग गैंग घोषित किया गया. तब ये कहा गया कि आधे से अधिक मैक्सिको में ये कार्टल सक्रिय हो गया है.
तो आपने देखा कि मैक्सिको में किस तरह से सरकारें ड्रग कार्टल्स के आगे बौनी बनी रहीं बल्कि सरकारी भ्रष्टाचार और घूसखोरी उनके आगे बढ़ने का सबसे बड़ा ज़रिया बना रहा. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का सपना इन कार्टल्स को ख़त्म करने का है. देखते हैं वो कितने कामयाब होते हैं.