LGBTQ History Month: भारत में 2% इनकी आबादी, समाज क्यों नहीं करता इन्हें मानता

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Last Updated:February 02, 2025, 12:15 IST

Explainer- LGBTQ कम्युनिटी हमारे समाज का हिस्सा है लेकिन इस पर कभी खुलकर बात नहीं होती. दरअसल हमारा समाज ही अब तक इस कम्युनिटी को स्वीकार नहीं कर पाया है. साइंस मान चुकी है कि गे या लेस्बियन होना मानसिक बीमारी ...और पढ़ें

 भारत में 2% इनकी आबादी, समाज क्यों नहीं करता इन्हें मानता

1994 में अमेरिका में हिस्ट्री के गे टीचर रॉडनी विल्सन ने LGBTQ हिस्ट्री मंथ की शुरुआत की (Image-Canva)

LGBTQ यानी L लेस्बियन, G गे, B बायसेक्शुलअल, T ट्रांसजेंडर और Q क्वीर कम्युनिटी हमारी सोसाइटी का हमेशा से हिस्सा रही है. लेकिन समलैंगिकता को अधिकतर देशों ने नजरअंदाज किया. अगर परिवार को कोई बच्चा गे या लेस्बियन हो तो पैरेंट्स पहले तो यह बात छुपाते हैं और बच्चे के व्यक्तित्व को मानसिक बीमारी मान कर इलाज कराने लगते हैं. कानून ने भले ही इस समुदाय को स्वीकृति दे दी हो लेकिन समाज इन लोगों को स्वीकार नहीं कर पाता जबकि LGBTQ हमारे समाज का हिस्सा है. फरवरी का महीना LGBTQ हिस्ट्री मंथ के तौर पर मनाया जाता है. जानते है LGBTQ समुदाय क्या है और इनकी समस्याएं क्या हैं.

LGBTQ को समझें
LGBTQ कम्युनिटी में लेस्बियन का मतलब है एक महिला की दूसरी महिला में दिलचस्पी होना. गे यानी पुरुष की दूसरे पुरुष में रूचि. बाइसेक्शुअल का मतलब होता है कि एक इंसान की लड़का और लड़की दोनों में दिलचस्पी होना. ट्रांसजेंडर वह होते हैं जो अपना लिंग ही बदलवा देते हैं और क्वीर वह लोग होते हैं जो अपनी सेक्शुएलिटी को लेकर दुविधा में रहते हैं. वह समझ नहीं पाते कि वह पुरुष हैं या महिला.  

हजारों साल पुरानी है समलैंगिकता
1990 के बाद से LGBTQ समुदाय की चर्चा होने लगी है. इससे पहले लोग इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते थे लेकिन यह समुदाय हमेशा से हमारी सोसाइटी का अहम हिस्सा रहा. मेसोपोटामिया की सभ्यता में इसे सामान्य माना गया था. वहां मिले सबूतों से साबित होता है कि समलैंगिक लोग भगवान की एकसाथ पूजा भी करते थे. चीन में समलैंगिकता 600 ईसा पूर्व से अस्तित्व में है. खजुराहो के मंदिर में भी समलैंगिक जोड़ों को नक्काशियों के रूप में उकेरा गया है.

फ्रांस पहला देश बना जहां 1791 में समलैंगिकता को स्वीकार किया गया (Image-Canva)

अधिकतर होते शोषण का शिकार
ग्लोबल सर्वे 2021 के मुताबिक भारत में LGBTQ कम्युनिटी की संख्या केवल 2 प्रतिशत है. Ipsos के मुताबिक इनमें 3%  लोग गे और लेस्बियन हैं और 9%  बाइसेक्शुअल हैं. इनमें 23 साल से 40 साल की उम्र के लोग ही अपनी पहचान को खुलकर स्वीकार करते हैं. 2024 में यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के सर्वे में सामने आया कि 77% LGBTQ कम्युनिटी के लोग सेक्शुअल हैरेशमेंट का शिकार होते हैं. दरअसल बचपन से ही उन्हें भेदभाव का शिकार होना पड़ता है. वहीं ज्यादातर इस समुदाय से जुड़े लोग समाज के बर्ताव के कारण अकेलेपन और डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. 

परिवार वाले नहीं करते स्वीकार
एलजीबीटीक्यू एक्टिविस्ट हरीश अय्यर कहते हैं कि अगर किसी घर में कोई बच्चा LGBTQ से जुड़ा हो तो पहले तो अपने बच्चे को पैरेंट्स ही स्वीकार नहीं कर पाते. वह इसे रोग समझते हैं. वह अपने बच्चे की बात सुनने की बजाय उसका इलाज कराने में जुट जाते हैं और लोगों को उनसे दूर रखते हैं. अगर बच्चा उनकी बात नहीं मानता तो कभी-कभी उन्हें घर से बेदखल होना पड़ता है. यही वजह है कि अधिकतर LGBTQ कम्युनिटी से जुड़े लोग अपने परिवार के साथ नहीं रहते हैं. हरीश के अनुसार हाई सोसाइटी में LGBTQ को स्वीकार कर लिया गया है लेकिन अब भी मिडिल क्लास और लोर क्लास फैमिली इस बात को हजम नहीं कर पाई है. 

भारत में 10 में से 6 लोग LGBTQ समुदाय को स्वीकार नहीं करते (Image-Canva)

LGBTQ को नहीं मिलती नौकरी
नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन के एक्सपर्ट मेंबर आर्यन पाशा के अनुसार LGBTQ कम्युनिटी के लोगों की जिंदगी आसान नहीं होती. स्कूल में उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है. कई बार टीचर ही पैरेंट्स को कह देते हैं कि आपका बच्चा अलग है उसे दूसरे स्कूल में दाखिल करवा दें. उन्हें नौकरी जल्दी से नहीं मिलती. रोजगार ना हो तो किसी का भी जीवन आसान नहीं हो सकता है. वहीं ट्रांसजेंडर की बात की जाए तो सरकार कागजों में उन्हें काफी सुविधाएं दे रही हैं लेकिन ग्राउंड लेवल पर तस्वीर इसके उलट है. ट्रांसजेंडर के आईडी और सर्टिफिकेट बनाने में दिक्कत आती है क्योंकि वह अपने अधिकार के लिए जागरूक नहीं है. इसका सरकार प्रचार-प्रसार भी नहीं करती. कई लोगों के पैसे नहीं होते कि वह अपनी सेक्स चेंज सर्जरी करा सकें क्योंकि इसमें लाखों रुपए लग जाते हैं. इस सर्जरी के लिए कोई सरकारी मदद नहीं मिलती. ट्रांसजेंडर आईडी या सर्टिफिकेट नहीं होता तो उन्हें आयुष्मान भारत योजना के तहत टीजी प्लस कार्ड नहीं बनता. भारत सरकार ने इस कम्युनिटी के लोगों को स्किल सिखाने के लिए गरिमा गृह खोले थे लेकिन उन्हें फंड केवल एक ही बार मिला. 

सेम सेक्स मैरिज अपराध नहीं
भारत में आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिक रिश्ता अपराध नहीं है. 6 सितंबर 2018 तक इसे अपराध माना गया था. अमेरिका, ब्राजील, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, जर्मनी और फ्रांस में सेम सेक्स मैरिज अपराध नहीं है लेकिन सऊदी अरब, पाकिस्तान, युगांडा, यमन जैसे देशों में यह अपराध है. भारत में कई समलैंगिक कपल शादी कर चुके हैं. स्पेशल मैरिज एक्ट में ऐसे कपल शादी कर सकते हैं. इस एक्ट के सेक्शन 4 को जेंडर न्यूट्रल माना गया है क्योंकि इसमें पति-पत्नी जैसे शब्दों का जिक्र नहीं है. इस एक्ट के अनुसार दो व्यक्ति शादी कर सकते हैं. 

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Delhi,Delhi,Delhi

First Published :

February 02, 2025, 12:15 IST

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