Last Updated:February 02, 2025, 14:00 IST
Airavatesvara Temple: ऐरावतेश्वर मंदिर का निर्माण राजा राज चोल द्वितीय ने 12वीं शताब्दी में करवाया था. इस मंदिर का नाम भगवान शिव के नाम पर हाथी ऐरावत रखा गया है.
हाइलाइट्स
- ऐरावतेश्वर मंदिर का निर्माण राजा राज चोल द्वितीय ने 12वीं शताब्दी में करवाया था.
- मंदिर की सीढ़ियों पर पैर रखने से संगीत की धुनें निकलती हैं।.
- 2004 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया.
Airavatesvara Temple: तमिलनाडु में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित ऐरावतेश्वर मंदिर भारतीय शिल्पकला का एक अद्भुत उदाहरण है. 12वीं सदी में चोल राजवंश द्वारा निर्मित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसकी अनूठी वास्तुकला और रहस्यमयी किले के लिए जाना जाता है. अपनी भव्य द्रविड़ वास्तुकला, रहस्यमयी संगीत उत्पन्न करने वाली सीढ़ियों और विशाल पत्थर के रथ के लिए यह प्रसिद्ध है. वैज्ञानिक भी इन रहस्यों को अब तक नहीं सुलझा पाए हैं. अक्टूबर से मार्च का समय यहां यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है.
वास्तुकला की भव्यता
ऐरावतेश्वर मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसकी वास्तुकला है. द्रविड़ शैली में निर्मित यह मंदिर अपना जटिल निर्माण स्थापत्य स्तम्भ और विशाल संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध है. मंदिर के मुख्य भाग में एक विशाल पत्थर का रथ है जिसे घोड़े खींचते हुए चलते हैं. यह दृश्य अत्यंत संक्षिप्त है और चोल साम्राज्य की शिल्पकला की उत्कृष्टता को दर्शाता है.
रहस्यमयी सीढ़ियां
भारत में एक ऐसा मंदिर है जो अपने आप में एक अद्भुत रहस्य समेटे हुए है. इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है इसकी सीढ़ियां. जी हां इस मंदिर के एक हिस्से में तीन सीढ़ियां बनी हैं जिन पर पैर रखने या हल्की सी ठोकर मारने पर संगीत की मधुर धुनें निकलती हैं. यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी संगीत वाद्य यंत्र से अलग-अलग राग और धुनें निकलती हैं.
इस मंदिर की इस अद्भुत विशेषता ने वैज्ञानिकों को भी हैरान कर दिया है. उन्होंने इस रहस्य को जानने के लिए काफी खोज की लेकिन 800 सालों बाद भी वे इस रहस्य से पर्दा नहीं उठा पाए हैं. वैज्ञानिकों के लिए यह आज भी एक अनसुलझी पहेली बनी हुई. इस मंदिर की तमाम खासियतों को देखते हुए यूनेस्को ने 2004 में इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था. इस मंदिर के इस रहस्य को देखने और समझने के लिए दुनियाभर से हजारों लोग यहां आते हैं.
ऐतिहासिक महत्व
ऐरावतेश्वर मंदिर का निर्माण राजा राज चोल द्वितीय ने 12वीं शताब्दी में करवाया था. इस मंदिर का नाम भगवान शिव के नाम पर हाथी ऐरावत रखा गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐरावत ने इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की थी जिसके कारण इस मंदिर का नाम ऐरावतेश्वर पड़ा.
वास्तुस्थिति का आकर्षण
ऐरावतेश्वर मंदिर की भव्यता, रहस्यमयी सीढ़ियां और ऐतिहासिक महत्व यह एक अनोखा पर्यटन स्थल है. आप भारतीय शिल्पकला और इतिहास में रुचि रखते हैं तो आपको एक बार इस मंदिर के दर्शन अवश्य करने चाहिए.
कैसे चलें
ऐरावतेश्वर मंदिर कुम्भकोणम के समीप स्थित है. आप यहां सड़क मार्ग, रेल मार्ग या हवाई मार्ग से पहुंच सकते हैं.
यात्रा का सबसे अच्छा समय
ऐरावतेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक है. इस दौरान मौसम सुखद रहता है और आप मंदिर की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं.
First Published :
February 02, 2025, 14:00 IST